नीम हकीम खतरा ए जान

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नीम हकीम खतरा ए जान

मुकेश नेमा

हकीमों की जितनी भी किस्में पाई जाती है दुनिया में ,उसमे से नीम हकीम सबसे खतरा ए जान माने जाते हैं। माने क्या जाते हैं होते ही हैं। ये बस इसलिए हकीम है क्योंकि किसी दिन इन्होंने ख़्वाब देखा कि ये हकीम हैं। ये सुबह उठे और अपने घर के सामने इसका एलान करने वाला बोर्ड लगा लिया। बोर्ड लगा और ये हकीम हुए। अपने ख़्वाब पर इस कदर भरोसा इन्हें कि ये खुद भी खुद को हकीम मान लेते है।

आप मे ये कुछ इनकी बेइज़्ज़ती करने के हिसाब से इन्हें झोलाछाप डॉक्टर कहते हैं। कहते रहिए। इन्हें धेला भर भी फर्क नहीं पड़ता आपकी राय से। ये बनिस्बत सस्ते होते है। आसानी से मिल जाते है। तमीज़ से पेश आते है। मरीज आते है इनके पास। ये बाक़ायदा इलाज करते है और आने वालो मे से कुछ अपने आप ठीक हो जाते है। जो ठीक हो जाते है वो उनकी तारीफ़ करते है। और जो मर जाते है वो इनकी शिकायतें नही करते।

ऐसे नीम हकीम जो थोडा बहुत डरते है दीन इमान से वो मजबूरी मे होम्योपैथी आर्युवेद के डॉक्टर हो जाते है। यूनानी दवाखाना खोल लेते है। मरीज ठीक नही होते पर जिंदा बने रहते है। पर जिनके पास ज़िम्मेदारियाँ ज्यादा होती है। जिन्हें खुद पर भरोसा ज्यादा होता है वो एलोपैथिक में हाथ आजमाते है। आमतौर पर ये चतुर होते है और डॉक्टरी करने के पहले किसी सचमुच के डॉक्टर के कंपाउंडर होकर कुछ सीख समझ लेते हैं और बहुत बार सच्चे डॉक्टरों के भी कान काट लेते है।

नीम हकीम इसलिए हैं क्योंकि इनकी जरूरत है हमे। असली डॉक्टरों की मांग और पूर्ति में बडा अंतर। गांव देहातों की तरफ़ डॉक्टर रूख करते नही। सो बीमार आदमी इनकी तरफ देखते है और ये बहुत बार मरीज़ों को शहर पहुँचने तक ज़िंदा रहने में मददगार भी होते है।

मेरा यह मानना था अब तक कि ये नीम हकीम कभी भी ,धोखे से भी अपना या अपने घरवालों का इलाज नही करते। पर वृंदावन के बीबीए पास राजाबाबू मेरी ये ग़लतफ़हमी दूर कर चुके। राजा बाबू को अपेडिंक्स का दर्द था। महँगे डॉक्टरों के पास जाकर जेब कटवाना चाहते नही थे ये। सो इस काबिल और समझदार आदमी ने यूट्यूब से आपरेशन करना सीखा। नश्तर और टांके लगाने का सामान खरीदा और खुद का ऑपरेशन कर लिया। ये बात अलग की वो कायदे से ऐसा कर नही पाए और उन्हें अस्पताल जाना पड़ा।

राजाबाबू ने जो किया वो अभूतपूर्व है। ऐतिहासिक है। क्रांति है। सोचिए यदि ये वीर बालक कामयाब हो जाता तो क्या होता ? मेडीकल साइंस की दुनिया उलट पलट जाती। लोग आत्मनिर्भर हो जाते इलाज के मामले मे। महँगे और बददिमाग़ डॉक्टरों का दिवाला पिट जाता। घटी दरों पर चलती उनकी फिल्म। पूरी दुनिया को सस्ता इलाज हासिल होता फिर। क्या ही अच्छा होता यदि राजाबाबू इस इम्तिहान को पास कर जाते। खैर। भले ही वो इस बार राजाबेटा होने से चूक गए है पर मैं उम्मीद करता हूँ राजाबाबू हार नहीं मानेंगे रार नहीं ठानेंगे। तानों से शरमाएँगे नही। सर उठा कर चलेंगे। फिर कोशिश करेंगे और किसी न किसी दिन खुद का सफल ऑपरेशन करके दिखाएँगे।

 

इस लीक से हट कर सोचने वाले बालक का मजाक बनाना गलत बात। ये नीम हकीमों का अपग्रेड वर्जन है। हौसला अफ़ज़ाई और सार्वजनिक सम्मान के लायक़ हैं राजाबाबू और मुझे लगता है सरकार को जल्दी से जल्दी ऐसा करना चाहिए।