

Question on Administrative Dignity: हरदा में आपातकाल की बरसी पर प्रशासनिक गरिमा पर सवाल: कलेक्टर की कुर्सी पर विराजे भाजपा जिलाध्यक्ष
– राजेश जयंत
मध्य प्रदेश के हरदा जिले में आपातकाल की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम ने इस बार संविधान और लोकतंत्र की चर्चा के साथ-साथ प्रशासनिक प्रोटोकॉल की अनदेखी को लेकर भी जबरदस्त जन चर्चा छेड़ दी है।
मध्य प्रदेश सरकार के निर्देश पर हर जिले की तरह हरदा में भी यह कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें संयुक्त कलेक्टर की मौजूदगी में संविधान की रक्षा, आपातकाल की याद और लोकतांत्रिक मूल्यों की बात की गई। लेकिन कार्यक्रम के दौरान जो हुआ, उसने प्रशासनिक मर्यादाओं को सवालों के घेरे में ला दिया।
कार्यक्रम स्थल पर कलेक्टर की कुर्सी खाली थी- यह वही कुर्सी है, जिस पर कलेक्टर की गैर मौजूदगी में कोई अन्य व्यक्ति नहीं बैठ सकता।यहां तक कि जब कलेक्टर खुद मौजूद नहीं होते, तब भी प्रोटोकॉल के तहत अपर कलेक्टर को मुख्य कुर्सी पर बैठने की अनुमति नहीं होती। लेकिन उक्त कार्यक्रम में भाजपा के जिला अध्यक्ष राजेश वर्मा बेझिझक जाकर उसी कुर्सी पर बैठ गए जो केवल कलेक्टर के लिए निर्धारित है जबकि संयुक्त कलेक्टर, जो कार्यक्रम की जिम्मेदारी संभाल रहे थे, खुद साइड में छोटी कुर्सी पर बैठे थे।
इस संबंध में जारी सरकारी प्रेस नोट के अनुसार उक्त कार्यक्रम में नगर पालिका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष,जिला पंचायत उपाध्यक्ष भी मौजूद थे। सरकार के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी समाचार में जिला भाजपा अध्यक्ष राजेश वर्मा के नाम का उल्लेख भी है लेकिन ना तो वे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे और नहीं अध्यक्षता कर रहे थे। ऐसे में तो उन्हें कलेक्टर के लिए निर्धारित कुर्सी पर बैठने का वैसे भी कोई हक कदापि नहीं बनता था।
*ना रोक सके, ना टोक सके संयुक्त कलेक्टर*
इस घटना को लेकर शहर में चर्चा है कि आखिर संयुक्त कलेक्टर चाहकर भी भाजपा जिलाध्यक्ष को रोक-टोक नहीं कर सके। राजनीतिक दबाव और माहौल ऐसा था कि प्रशासनिक अधिकारी भी असहाय नजर आए। नगर पालिका अध्यक्ष, जो नगर की प्रथम नागरिक हैं, उन्हें भी मुख्य कुर्सी नहीं दी गई, जबकि प्रोटोकॉल के मुताबिक उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी।
जनता के बीच सवाल उठ रहे हैं- क्या यह वही लोकतंत्र है, जिसकी रक्षा की बातें मंच से की जा रही थीं..? क्या प्रशासनिक गरिमा और प्रोटोकॉल अब सिर्फ किताबों तक सिमट गए हैं..? कई लोग इसे प्रशासनिक लाचारी का उदाहरण बता रहे हैं।
*जनसंपर्क ने जारी किया फोटो*
इस मामले को और दिलचस्प बना दिया जिला जनसंपर्क विभाग ने, जिसने इस कार्यक्रम का प्रेस नोट जारी किया। प्रेस नोट में भाजपा जिलाध्यक्ष की कलेक्टर की कुर्सी पर बैठने का कोई जिक्र नहीं था, लेकिन विभाग द्वारा जारी की गई फोटो ने पूरी कहानी उजागर कर दी। फोटो में साफ दिख रहा है कि कलेक्टर की कुर्सी पर भाजपा नेता बैठे हैं और अधिकारी साइड में हैं। अब यह फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और लोग प्रशासनिक प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाने वाले इस दृश्य पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।
एक बात और यह प्रेस नोट बयां कर रही है। सामान्यतः सरकारी समाचार में पार्टी पदाधिकारी का उल्लेख नहीं होता है। इसका उदाहरण जनसंपर्क विभाग का मुख्यालय है, जहां से जारी शासकीय समाचारों में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के नाम का उल्लेख सांसद के रूप में किया जाता है,न कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में।
हरदा के कलेक्टर कार्यालय में हुए कार्यक्रम को लेकर हर गली-मोहल्ले में चर्चा है कि क्या लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के नाम पर हो रहे कार्यक्रमों में भी अब राजनीतिक दबाव हावी हो गया है? क्या प्रशासनिक अधिकारी अब सिर्फ दर्शक बनकर रह गए हैं..?