त्वरित टिप्पणी :आखिर क्यों मची है कांग्रेस में भगदड़?
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेताओं के पार्टी छोड़ने को लेकर जो भगदड़ मची थी। अब स्थिति उसके ठीक उलट हो गई। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के नेता भाजपा के दरवाजे पर खड़े हैं। पिछले करीब एक महीने में कांग्रेस के कई छोटे-बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए। बरसों तक कांग्रेस के बड़े नेता रहे सुरेश पचौरी और इंदौर के पूर्व विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेल ने भी आज भाजपा का झंडा थाम लिया। इसे सिर्फ राजनीतिक विचारधारा में बदलाव नहीं कहा जा सकता, इसके अलावा भी बहुत से ऐसे कारण हैं, जिस वजह से ये नेता कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर हुए।
इन तीन नेताओं में सुरेश पचौरी का नाम भले ही बड़ा हो, लेकिन उनके पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, संजय शुक्ला और विशाल पटेल जैसे नेता इंदौर में कांग्रेस की रीढ़ माने जाते थे। उनका पार्टी में रहना वे हर दृष्टि से कांग्रेस के लिए फायदेमंद था। इन दोनों नेताओं के पार्टी छोड़ने से इंदौर में कांग्रेस लगभग खत्म सी हो जाएगी। क्योंकि, संजय शुक्ला और विशाल पटेल को कांग्रेस के भविष्य के रूप में देखा जा रहा था। पूर्व विधायक हर तरह से समृद्ध थे। इनमें संजय शुक्ला ने तो अपने विधायक कार्यकाल में पूरे पांच साल अपने क्षेत्र के लोगों को अयोध्या की यात्रा कराई।
सवाल उठना है कि ऐसे हालात क्यों बने कि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में जिन अपार संभावनाओं को देखा जा रहा था, वे अचानक खत्म हो गई। सुरेश पचौरी जैसे पार्टी के ही प्रतिबद्ध नेता भाजपा का दमन के थामने लगे। इसका एक ही कारण नजर आता है कि कांग्रेस ने राम मंदिर का निमंत्रण ठुकरा कर कई लोगों को निराश किया। खासकर पार्टी में जो स्थिति बनी है, उसका मूल कारण वही बताया जा रहा है। भगवान राम के प्रति श्रद्धा हर भारतीय में है, ऐसे में कांग्रेस ने राम मंदिर के लोकार्पण का निमंत्रण ठुकराकर उसे जिस तरह राजनीतिक रंग देने की कोशिश की, इसका खामियाजा उन्हें पार्टी में ही भुगतना पड़ा। निश्चित रूप से कांग्रेस को इस सच का अनुमान नहीं था कि निमंत्रण की अवहेलना उन्हें कितनी महंगी पड़ेगी। अभी भी कहा नहीं जा सकता कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस में लोकसभा चुनाव से पहले कितने नेता बचेंगे!
कुछ दिनों पहले कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ के भी भाजपा में शामिल होने की ख़बरें गर्म थी। उनके सभी समर्थक विधायक और नेताओं ने भी मन बना लिया था। यहां तक कि सोशल मीडिया पर अपने पहचान से भी कांग्रेस का पंजा हटा दिया था। लेकिन, अचानक स्थितियां बदली और कमलनाथ एंड पार्टी को यू-टर्न लेना पड़ा। राजनीतिक सुर्ख़ियों का कहना है कि भाजपा के सिख नेताओं के विरोध ने कमलनाथ और साथियों का रास्ता रोक दिया। ऐसी स्थिति में भाजपा को भी झुकना पड़ा। अभी भी संभावनाओं के दरवाजे बंद नहीं हुए। भाजपा ने छिंदवाड़ा से लोकसभा उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। कहा तो यह भी जा रहा कि ऐनवक्त पर नकुलनाथ भाजपा उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। क्योंकि, भाजपा येन-केन-प्रकारेण मध्यप्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतना चाहती है और छिंदवाड़ा उसमें रोड़ा बन सकता है। उसका एक ही हल है कि नकुलनाथ को ही भाजपा का झंडा थमा दिया जाए।
राजनीतिक रूप से यह पार्टी बदल भाजपा के हित में देखा जा रहा हो, लेकिन इसका भविष्य में क्या परिणाम होगा उसका अनुमान भी लगाया जा सकता है। निश्चित रूप से वह भाजपा के लिए नुकसान हो होगा। क्योंकि, इससे मूल भाजपा के प्रतिबद्ध नेता हाशिये पर चले जाएंगे और पार्टी में उनकी उपयोगिता लगभग ख़त्म हो जाएगी। कांग्रेस से गए नेता भाजपा में हावी हो जाएंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पूरे गुट के भाजपा में जाने के बाद प्रदेश के उन इलाकों में भाजपा के नेता हाशिये पर चले गए, जहां सिंधिया-गुट का दबदबा था।
इसका एक और अच्छा उदाहरण महाराष्ट्र में शिवसेना को देखा जा सकता है, जहां शिंदे गुट ने शिवसेना को इस हद तक तोड़ दिया कि शिवसेना के पास उसका नाम और सिंबल तक नहीं बचाने के लाले पड़ने लगे। यह भले ही एक राज्य का मामला हो, लेकिन यह स्थिति भाजपा में भी आ सकती है। कांग्रेस के बड़े नेताओं का भाजपा में जाना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह हो, लेकिन भाजपा के भविष्य के लिए फायदे की बात नहीं है। लेकिन, राजनीति में दूरगामी परिणामों को अकसर नजरअंदाज किया जाता है। तात्कालिक रूप से भाजपा को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को खत्म करने का मौका मिल रहा है, तो वह उसे चुकेगी भी नहीं। अब देखना है कि लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी बदल के कितने दौर चलते हैं!