Raghav Chadha:10 मिनट की डिलीवरी जान का जोखिम, ये भी किसी के बेटे, पिता-पति हैं,गिग वर्कर’ को मैं भारतीय अर्थव्यवस्था का अदृश्य पहिया कहता हूं

51

Raghav Chadha :10 मिनट की डिलीवरी जान का जोखिम, ये भी किसी के बेटे, पिता-पति हैं, गिग वर्कर’ को मैं भारतीय अर्थव्यवस्था का अदृश्य पहिया कहता हूँ

आप सांसद राघव चड्ढा (AAP MP Raghav Chadha) ने शुक्रवार को राज्यसभा में बोलते हुए क्विक-कॉमर्स और ऐसे ही अन्य ऐप-आधारित डिलीवरी और सेवा व्यवसायों पर नियमन की मांग की। उन्होंने राज्यसभा में कहा, “हर दिन, हम अपने मोबाइल फोन ऐप पर एक बटन दबाते हैं और एक सूचना आती है- ‘आपका ऑर्डर रास्ते में है’… लेकिन इस सूचना के पीछे, अक्सर एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे हम पहचानते नहीं हैं।”

उन्होंने अपने संबोधन में गिग वर्कर्स के लाभ गिनाए। सांसद ने कहा कि गिग वर्कर्स की ज़िंदगी दिहाड़ी मज़दूरों और फ़ैक्टरी मज़दूरों से भी बदतर है।केंद्र सरकार ने पिछले दिनों में लेबर कोड में बड़े बदलाव किए। जिसके तहत अब गिग वर्कर्स को पीएफ, ESIC, इंश्योरेंस और दूसरे सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट्स मिलेंगे। साथ ही, उन्हें पेंशन भी मिलेगी। इस बीच गिग वर्गर्स का मुद्दा सदन में भी उठा। आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा  ने शुक्रवार, 5 दिसंबर को गिग वर्कर्स का मुद्दा राज्यसभा में उठाया और उनके तीन दर्द भी गिना डाले। सांसद ने Blinkit-Zepto, Zomato-Swiggy के गिग वर्कर्स से लेकर Ola-Uber के ड्राइवर और Urban Campany प्लंबर-ब्यूटीशियन तक का मुद्दा उठाया। राघव चड्ढा ने कहा कि इन प्लेटफॉर्म के कर्मचारियों की हालत दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर हो गई है। उन्होंने कहा कि डिलीवरी बॉय, राइडर, ड्राइवर और टेक्नीशियन सम्मान, सुरक्षा और उचित कमाई के हकदार हैं।

राज्यसभा में अपनी स्पीच के दौरान राघव चड्ढा ने कहा कि, “आए दिन हम मोबाइल फोन के एप पर बटन दबाते हैं और नोटिफिकेशन आता है- आपका ऑर्डर आ रहा है। ऑर्डर डिलीवर्ड। आपकी राइड आ गई है। लेकिन इस नोटिफिकेशन के पीछे अक्सर एक इंसान होता है, जिसे हम एक्नॉलेज नहीं करते। मैं बात कर रहा हूं- जोमैटो-स्विगी के डिलीवरी बॉयज की, ओला-उबर के ड्राइवर की, ब्लिंकिट-जेप्टो के राइटर की। और अर्बन कंपनी के प्लंबर और ब्यूटीशियन जैसे अन्य लोगों की। सरकारी भाषा में जिन्हें गिग वर्कर्स कहा जाता है। लेकिन मैं इन्हें इनविसिबल व्हील्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी यानी भारतीय अर्थव्यवस्था के अदृश्य पहिये बुलाता हूं।

पहला दर्द- स्पीड और डिलीवरी टाइम का जुल्म: आजकल 10 मिनट की डिलीवरी का खतरनाक ट्रेंड चल रहा है। डिलीवरी टाइम प्रेशर के चलते लाल बत्ती पर खड़ा डिलीवरी बॉय यही सोचता है कि लेट हुआ तो रेटिंग गिर जाएगी। इन्सेन्टिव कट जाएगा। एप लॉगआउट कर देगी, आईडी ब्लॉक कर देगी। इसलिए 10 मिनट की डिलीवरी के लिए वो ओवरस्पीडिंग करता है। लाल बत्ती जंप करता है। अपनी जान जोखिम में डालता है।

दूसरा दर्द- कस्टमर का गुस्सा: कस्टमर के हैरेसमेंट का परमानेंट डर भी इनके मन में होता है। जैसे ही ऑर्डर 5-7 मिनट लेट होता है तो ग्राहक फोन करके डांटता है और डिलीवरी बॉय सामान डिलीवर करता है तो उसे धमकाता है कि तेरी कंप्लेन कर दूंगा। उसके बाद एक स्टार की रेटिंग देकर उसके पूरे महीने की परफॉर्मेंस और बजट बिगाड़ देता है।

तीसरा दर्द- खतरनाक वर्किंग कंडीशन: इसमें कमाई कम और बीमारी ज्यादा है। 12-14 घंटे की डेली की शिफ्ट करते हुए, चाहें

चाहें धूप हो, गर्मी हो, ठंड हो, फॉग हो, पॉल्यूशन हो या फिर ट्रैफिक हो, ये लोग बिना किसी प्रोटेक्शन, बिना किसी बोनस और बिना किसी अलाउंस के काम करते रहते हैं।

इनकी स्थिति किसी फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारी से भी बदतर है। क्योंकि, न इन्हें परमानेंट एम्पलॉईमेंट मिलती है, न ही वर्किंग कंडीशन होती है और न ही हेल्थ एक्सीडेंटेल इंश्योरेंस मिलता है। फिरभी वे अपना दर्द छिपाकर ऑर्डर डिलीवर करते हैं तो मुस्कुराकर कहते हैं कि 5 स्टार रेटिंग दे दीजिएगा।