Rahul Gandhi:जातिवाद का जहर बुझा तीर पलटवार न कर दे 

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Rahul Gandhi:जातिवाद का जहर बुझा तीर पलटवार न कर दे 

कहने को यह सामाजिक न्याय का मुद्दा है, लेकिन इसकी अंतरधारा जहां बह रही है, वह भारत के सामाजिक ताने-बाने को सुरंग की तरह खोखला कर सकती है। पता नहीं, राहुल गांधी को इसका थोड़ा-सा भी अंदाज है या नहीं ? लोकसभा चुनाव 2024 में मिले अपेक्षित परिणामों से उत्साहित होकर वे आजकल कहीं भी, किसी भी विषय में जातिवाद का बघार लगा देते हैं। यह समूचे भोजन को बेस्वाद भी कर सकता है,इस खतरे से भी वे अनजान हैं। हाल ही में ऐसे ही एक मसले पर उनका बयान खासा चर्चा व विवाद का विषय बन चुका है, जब वे बोले कि आज तक किसी दलित,पिछड़े को विश्व सुंदरी व भारत सुंदरी का खिताब नहीं मिला। क्या इस तरह की बातें करने वाले व्यक्ति की बुद्धिमता,व्यावहारिक सोच व जानकारी पर संदेह खड़ा नहीं होगा?

 

आइये,पहले तो इस पर ही बात कर लेते हैं कि दलित-पिछड़े वर्ग की महिलाओं को यह सम्मान मिला या नहीं। अब बताइये कि इस तरह की किसी भी स्पर्धा में जाति का कोई संबंध है भी? क्या खेल,विज्ञान,तकनीक,ज्ञान,समाज सेवा,दान-धर्म,अमीर-गरीब जैसे मामलों में कोई आरक्षण चलता है क्या ? आपको नहीं लगता कि इस तरह की सोच कितनी घातक,विभाजनकारी और असहनीय है। संभवत इसीलिये ऐसे व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक बड़ा तबका पप्पू प्रचारित-संबोधित करता है । राहुल गांधी यदि जातिवाद के इस सिलसिले को इसी रफ्तार और नियत से आगे बढ़ाते रहे तो समझ लीजिये कि इसका अंत तो नहीं है और सुखद तो बिल्कुल भी नहीं । यदि उनके सलाहकारों ने ऐसी मंदबुद्धि साबित करने वाली सलाहें बंद नहीं की तो नुकसान केवल राहुल का ही नहीं,कांग्रेस का व लोकतंत्र का भी होगा।

 

अब इसी मसले का दूसरा पहलू। जब राहुल गांधी ने दलित सुंदरी न होने का जिक्र किया, तब से ही सोशल मीडिया पर इस तरह की जानकारी भर-भर कर दी जा रही है। जिसमें यह बताया जा रहा है कि भारत की सबसे पहली विश्व सुंदरी रीटा फारिया पारसी याने अल्प संख्यक थी। डायना हेडन ईसाई(अल्पसंख्यक) हैं।अब तक घोषित छह में से देश की सबसे आखिरी विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर जाट है याने ओबीसी। ऐश्वर्या राय, युक्ता मुखी व प्रियंका चोपड़ा अवश्य सामान्य वर्ग से रही हैं। हालांकि ऐश्वर्या को भी कर्नाटक का ओबीसी बताया जा रहा है। ऐसे ही भारत सुंदरी में अनेक नाम गिनाये जा रहे हैं, जैसे जीनत अमान व नायरा मिर्जा(अल्पसंख्यक),रिया एक्का(आदिवासी) आदि। रिया तो छत्तीसगढ़ के पिछड़े जिले जशपुर की रहने वाली है, जो 2022 में मिस इंडिया चुनी गई। जाहिर-सी बात है कि इन तथ्यों के बाद राहुल गांधी की बोलती बंद है। दरअसल,किसी माहिर खिलाड़ी की एक गलत चाल भी उसे मात दे सकती है,ऐसा ही कुछ इस बार तो राहुल के साथ भी हुआ है।

 

यहां राहुल के कुछ अन्य बयानों व क्रियाकलापों का उल्लेख करना भी आवश्यक है। जैसे भारत न्याय यात्रा को बीच में छोड़कर वे लोकसभा चुनाव से पहले इंग्लैंड गये थे, जहां देश के खिलाफ काम करने वाले कतिपय लोगों के साथ उनकी गोपनीय बैठक के तथ्य अब बाहर आ रहे हैं, जो बताते हैं कि वे चुनाव जीतने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। बांग्लादेश में हुए विद्रोह, तख्ता पलट और उसके बाद वहां बसे अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हुए जुल्म-ज्यादतियों पर अभी तक भी राहुल,कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दलों की ओर से कोई प्रतिक्रिया न आना भी संदेह के घेरे में है। आखिरकार क्या मजबूरी है कि वे बांग्लादेश के मुस्लिमों के खिलाफ कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं? देश की मामूली-सी घटनाओं को पहाड़ बनाकर पेश करने वाले नेताओं,मीडियाकर्मियों,

फिल्मकारों,बुद्धिजीवियों तक ने अपना मुंह नहीं खोला, जिसका स्पष्ट संदेश भारत की जनता तक पहुंचा ही है कि ये लोग अल्पसंख्यक समर्थक तो हैं ही, भारत के बहुसंख्यक वर्ग के खिलाफ भी हैं। साथ ही यह भी साफ हुआ कि वे विश्व के किसी भी कोने में मनुष्यता के खिलाफ किसी आचरण का विरोध नहीं करते, बल्कि भारत के अल्पसंख्यक या कहें कि मुस्लिमों से संबंधित कुछ हुआ तो हल्ला मचाना इनका धर्म हो जाता है।

 

जातिगत जनगणना के मुद्दे को भी राहुल गांधी पकड़ कर बैठे हैं, लेकिन आज तक उन्होंने एक बार भी ये नहीं बताया कि 1947 से 2014 तक उन्होंने जातिगत जनगणना न होने की आलोचना क्यों नहीं की? 2009 से 2014 तक तो मनमोहन सिंह उनके रबर स्टांप थे, तब उन्हें क्यों सांप सूंघ गया था? याने देश में जातिगत जनसंख्या को जानना उनका मकसद कतई नहीं है, बल्कि वे वर्ग संघर्ष को भड़काने के लिये उन आंकड़ों का उपयोग करने की मंशा रखते हैं, ऐसा जान पड़ता है। राहलु गांधी यह क्यों भूल रहे हैं कि हम 21वीं सदी में बैठे हैं, जहां जाति,वर्ग,ऊंच-नीच,अमीर-गरीब जैसी कोई बात करने की बजाय विकास,समृद्धि,समभाव,वसुधैव कुटुंबकम जैसी बातें की जाना चाहिये।

 

जानने में तो यह भी आया है कि राहुल के सलाहकारो में एक आरक्षित वर्ग का व्यक्ति भी है, जो राहुल के भाषण तैयार करता है,मुद्दे बताता है,बयान जारी करता है। चूंकि किसी भी असंगत,विवादित और विभाजनकारी बातों से मीडिया में चर्चा-बहस छिडती है तो राहुल यह मानते हैं कि उनकी कही-बोली बातें असर करती हैं और वे बार-बार वे ही बातें दोहराते रहते हैं। भस्मासुर जैसे अपने ही सिर पर हाथ रखने से स्वाहा हुआ था, कहीं राहुल का हश्र भी अपनी बयानबाजी की वजह से वैसा ही न हो?