रियासत के बाद विरासत पर कब्जे के लिए राहुल गाँधी के बदले तेवर

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रियासत के बाद विरासत पर कब्जे के लिए राहुल गाँधी के बदले तेवर

राहुल गाँधी को कांग्रेसी परम्परा वाले कुर्ते पाजामे में आपने पहले कब देखा होगा? पुराने फोटो तो मिल जाएंगे, लेकिन जब से यात्राएं शुरु की हैं, वे सफ़ेद टी शर्ट और जींस या पेंट पहने देख रहे होंगे। इस बार अमेठी रियासत से पलायन कर फिरोज गाँधी इंदिरा गाँधी की विरासत वाली रायबरेली के चुनाव मैदान में उतरने के लिए वह एक प्राइवेट विमान से उसी तरह की मॉडर्न टी शर्ट पहने उतरे और उसी रुप में अपना चुनाव नामांकन दाखिल करने गए। हवाई अड्डे पर भी वह ऐसी मस्ती में अपनी बहन प्रियंका के गले में हाथ डाल आगे बढ़ते रहे, जैसे कोई यात्री अपने परिवार के साथ घूमने फिरने या शादी ब्याह में शामिल होने आया हो। स्वाभाविक है प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा, मम्मी श्रीमती सोनिया गाँधी और पार्टी के नेता अशोक गेहलोत और सुरक्षाकर्मी साथ थे। उधर स्थानीय कांग्रेसी नेता कार्यकर्ता दो दिन से जयकार करके स्वागत कर रहे थे। हाँ, अमेठी में कुछ निराशा और रायबरेली में कुछ उत्साह दिख रहा था। लेकिन तेज गति में विश्ववास करने वाले राहुल को सामान्य कार्यकर्ता या माइक कैमरे लेकर उनके पीछे घंटों तक भाग रहे मीडिया कर्मियों को चार लाइन में प्रसन्नता या धन्नावाद कहने का समय नहीं मिल सका | आखिरकार, उन्हें तेज चलने, स्ट्रीमिंग, बॉक्सिंग और पेरा ग्लाइडिंग का गहरा शौक है। इसलिए पेरा ग्लाइडर स्ट्राइल से रायबरेली उतर गरीब जनता को दर्शन देकर धन्य करना काफी था। सचमुच इंदिरा मैया से लेकर राहुल बाबा के

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अवतार से क्या इस इलाके और कांग्रेस पार्टी में क्रांतिकारी बदलाव हो रहे हैं? इस बात को उठाने का कारण यह है कि एक पत्रकार के नाते 1972 से मैं इंदिरा गाँधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गाँधी, अरुण नेहरु और प्रियंका गांधी के रायबरेली अमेठी के साथ कांग्रेस के राजनीतिक उतार चढ़ाव देखता लिखता बोलता रहा हूँ। अमेठी राज परिवार और नेहरु परिवार के पुराने संबर्धा के कारण फिरोज गाँधी और संजय गाँधी के चुनावी दौर से इस क्षेत्र को राहुल एन्ड कंपनी अपनी विरासत मानती है। संजय गाँधी ने जून जुलाई 1976 में युवक कांग्रेस के श्रमदान शिविर लगा सड़क निर्माण के काम से अपने लिए राजनीतिक आधार तैयार करने का प्रयास किया था। मैंने स्वयं इस श्रमदान गतिविधि की रिपोर्टिंग की थी। संजय 1977 का चुनाव हारे, लेकिन 1980 में वह और 1981 के बाद राजीव गाँधी परिवार या नजदीकी 2014 तक विजयी होते रहे। संजय राजीव और राहुल गाँधी पहले कांग्रेस के खादी कुर्ते पाजामे में ही इस इलाके या पार्टी कार्यक्रमों में दिखते रहे। 2019 की चुनावी पराजय के बाद राहुल गाँधी ने पार्टी के पदों की किसी जिम्मेदारी के बजाय अपनी पसंद के सहयोगियों और सलाहकारों के बल पर मॉडर्न और कट्टर कम्युनिस् विचारों और बॉक्सर के हमलावर तेवर के साथ राजनीतिक यात्री का रुप दिखाया है। कांग्रेस के अधिकृत संविधान में सदस्यों के लिए निर्धारित शर्ट के अनुसार ” सदस्य को धर्म जाति के भेदभाव रहित एक सूत्र में विश्वास रखकर काम करना है, लेकिन पिछले दो वर्षों से राहुल गाँधी जातिगत जनगणना और मुस्लिमों को अलग से आरक्षण का अभियान इस हद तक चला रहे हैं कि यह उनके जीवन का लक्ष्य है। उनके सहयोगी और समर्थक उन्हें भावी प्रधान मंत्री के रुप में बताकर अब रायबरेली और देश का सबसे बड़ा दावेदार दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी तरह पार्टी संविधान में अब भी मद्यनिषेध की नीति अपनाने की बात दर्ज है, लेकिन राहुल कांग्रेस शराब की अधिकाधिक बिक्री से जुड़े शराब घोटाले के आरोपी अरविन्द केजरीवाल की पार्टी से गठबंधन करके सत्ता की लड़ाई लड़ रही है। यों 2014 में कांग्रेस पार्टी को दिल्ली तथा केंद्र से हटाने के आंदोलन की प्रमुख भूमिका केजरीवाल पार्टी की ही थी।

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अमेठी की रियासत में भारतीय जनता पार्टी की नेता स्मृति ईरानी की पिछली चुनावी विजय से विचलित राहुल गांधी ने इस क्षेत्र का रास्ता ही छोड़कर सुरक्षित विरासत रायबरेली में चुनाव लड़ना आवश्यक समझा, जबकि वह केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं। सोनिया गांधी द्वारा रायबरेली में चुनाव लड़ने के बजाय राज्य सभा की सदस्य बनने के बाद प्रियंका गाँधी के इस क्षेत्र में चुनाव लड़ने पर बहुत मंथन हुआ। सही बात यह है कि प्रियंका 1999 से रायबरेली अमेठी में परिवार और पार्टी के प्रचार कार्य में सक्रिय रही हैं। इसलिए वह और उनके पति राबर्ट वाड्रा रायबरेली और अमेठी में चुनाव लड़ने के दावेदार रहे। लेकिन राहुल और उनकी टीम इस विरासत पर अपना कब्ज़ा चाहते हैं। राहुल गांधी ने तो 2014 के चुनाव से पहले एक अखबार के संपादक से इंटरव्यू में साफ कह दिया था कि “प्रियंका मेरी बहन और दोस्त है। साथ ही कांग्रेस की कार्यकर्ता है। इस नाते मुझे और संगठन के लिए मदद कर रही हैं। मुझे नहीं लगता कि उनकी कोई चुनावी भूमिका होगी। परिवार और पार्टी ने इस बार अमेठी में अपने पुराने वफादार निजी सहायक किशोरीलाल शर्मा को अमेठी का उम्मीदवार बना दिया। वह राजीव काल से परिवार की तरफ से इस इलाके में आते जाते रहे थे। लेकिन 2009 के बाद राहुल ने उनके बजाय अपने अन्‌ सहायकों को अमेठी का जिम्मा दिया और शर्माजी कभी कभार रायबरेली आते जाते रहे। लेकिन अब स्मृति ईरानी के विरुद्ध स्वयं मोर्चा संभालने या पार्टी के किसी अनुभवी क्षेत्रीय या राष्ट्रीय नेता के बजाय किशोरीलाल शर्मा को मैदान में उतार दिया। मतलब पार्टी में कोई दूसरा प्रभावी नेता नहीं दिखा। पराकाष्ठा यह है कि 3 मई को जिस समय किशोरीलाल शर्मा ने चुनाव का नामांकन पत्र दाखिल किया, तब परिवार का कोई सदस्म या प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष तक साथ में नहीं दिखाई दिया। जबकि इसी दिन पूरा गाँधी परिवार, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्ध्र बड़े नेता सिर्फ 20 किलोमीटर दूर रायबरेली में राहुल के पर्चा जमा करते वक्त मौजूद थे। हाँ, सुबह के वक्त प्रियंका गाँधी ने एक गाड़ी पर खड़े होकर समर्थकों को यह आश्वासन दिया था कि वह स्यूयं बाद में प्रचार करने आएंगी। मतलब परिवार और पार्टी जनता को अपने आप उनकी जयकार करने का अधिकार मानती है। आखिरकार अमेठी राजा महाराजाओं की परम्परा वाला क्षेत्र है। गाँधी परिवार और कांग्रेस दुवारा जनता की अनदेखी का ही नतीजा है कि

 

स्मृति ईरानी ने 2014 से लगातार सक्रिय रहकर और विकास कार्यों को प्रथमिकता डेकर लोकप्रियता प्राप्त कर ली है। उनसे चुनावी मुकाबले की हिम्मत राहुल नहीं दिखा सके।

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।