राज-काज: शिवराज जी! मध्यप्रदेश में यह कैसा कानून का राज….
– सीधी पेशाब कांड के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो रोल निभाया, उससे लगा था कि इससे अपराधियों को सबक मिलेगा। आरोपी पर एससी-एसटी एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज कर रासुका की भी कार्रवाई की गई। उसके मकान पर बुलडोजर पर चला दिया गया। मुख्यमंत्री ने पीड़ित आदिवासी को सीएम हाउस बुलाकर उसके पैर धोए और पानी अपने सर माथे पर लगाया। उससे माफी मांगी और साथ खाना खाया। इसके साथ उसे साढ़े 6 लाख रुपए की आर्थिक मदद भी दी गई। उम्मीद थी यह कार्रवाई देखकर अपराधी वारदात करने से पहले दस बार सोचेंगे, लेकिन हो इसके उलट रहा है। प्रदेश में सीधी जैसे अमानवीय अपराधों की बाढ़ जैसी आ गई है। हर रोज एक नया वीडियो वायरल हो रहा है।
शिवपुरी में दलितों को गंदगी पिलाने का मामला सामने आया तो इंदौर में पीट-पीट कर पीड़ित से अपने तलवे चटवाए गए। सागर में एक युवक को न्यूड कर बुरी तरह पीटने का वीडियो सामने आया तो गुना में एक बुजुर्ग के प्रायवेट पार्ट में टार्च डाल दी गई। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के गृह जिले डबरा सहित कई अन्य शहरों से भी इससे मिलते- जुलते अपराध सुर्खियां बन गए। ऐसे हालात में क्या कांग्रेस का यह सवाल जायज नहीं है कि शिवराज जी! मध्यप्रदेश में यह कैसा कानून का राज है?
मोदी-शाह के मिस्टर भरोसेमंद की राह आसान नहीं….
– केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव जब संगठन में थे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृह मंत्री के भरोसेमंद थे, अब केंद्रीय मंत्रिमंडल में हैं तब भी उनके विश्वासपात्र। भूपेंद्र ने उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में अपने संगठन कौशल से सब को कायल किया है। वे पार्टी के लिए संकट मोचक की भूमिका भी निभाते रहे हैं। मोदी-शाह ने अपने इस मिस्टर भरोसेमंद को मप्र का चुनाव प्रभारी बनाया है।
उत्तर भारत के जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उनमें मप्र को भाजपा के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेस यहां अच्छे मुकाबले में है। साफ है कि यहां भूपेंद्र की राह आसान नहीं होगी। मप्र में भूपेंद्र की संगठन क्षमता की परीक्षा तो होगी ही, उनके जरिए भाजपा प्रदेश में यादव मतदाताओं को साधने की भी कोशिश करेगी। यादव मतदाता इस बार भाजपा से नाराज दिखता है। समाज से जुड़े कई भाजपा नेता कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। कांग्रेस ने समाज के बड़े नेता अरुण यादव को प्रदेश के यादव बाहुल्य इलाकों का प्रभारी बनाकर भी चुनौती खड़ी की है। भाजपा में लोधी समाज को साधने के लिए उमा भारती, प्रहलाद पटेल जैसे नेता हैं लेकिन यादव नेताओं की कमी है। भूपेंद्र के जरिए भाजपा इस कमी को पूरा कर एक तीर से कई निशाने साधेगी।
बच गए वीडी या अब भी लटकी खतरे की तलवार….!
– मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जितने भाग्यशाली हैें, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा उससे कम नहीं। पहले शिवराज को बदलने की अटकलें लगती थीं, अब वीडी की विदाई की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। कुछ समय से शिवराज को बदले जाने की चर्चाओं पर विराम लग गया है। भाजपा नेतृत्व से उन्हें अभयदान मिल चुका है।
वे फ्री स्टाइल में काम भी कर रहे हैं। वीडी शर्मा को लेकर ऐसा नहीं है। दिल्ली में हाल की बैठकों के बाद जिन प्रदेश अध्यक्षों को बदले जाने को लेकर खबरें थीं, उनमें सबसे ऊपर वीडी शर्मा का नाम था। ये खबर दिल्ली से छनकर आ रही थीं। नतीजा आया तो देश के चार राज्यों में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बदल गए, लेकिन वीडी पर कोई आंच नहीं आई। उसी दिन ये खबर भी चली कि कुछ और प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने वाले हैं, इनमें मप्र के वीडी का भी नाम है। बहरहाल, इसके बाद अब तक कोई सूची नहीं निकली। राजनीतिक हलकों में सबसे बड़ा सवाल यही चल रहा है कि वीडी बच गए या अब भी उन पर खतरे की तलवार लटकी है। सूत्र बताते हैं कि वीडी के नाम पर एक बार फिर आरएसएस ने बीटो लगा दिया है। दूसरी खबर है कि वीडी अभी खतरे के जोन से बाहर नहीं आए हैं। पर वीडी हैं तो शिवराज की तरह भाग्यशाली, तभी पद पर बरकरार हैं।
भोपाल में पचौरी किनारे, दिग्विजय ने मारी बाजी….
– कांग्रेस में हुई ताजा नियुक्तियों से साफ हो गया है कि वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह सब पर भारी पड़ रहे हैं। सुरेश पचौरी तन-मन से कमलनाथ के साथ हैं, पर वे भी किनारे हो गए और दिग्विजय ने बाजी मार ली। चुनाव की दृष्टि से हर नेता या तो जिला अध्यक्ष बनना चाहता है या अपने समर्थक को बनवाना चाहता है। भोपाल शहर अध्यक्ष पद पर पचौरी के खास कैलाश मिश्रा काबिज थे। अचानक उन्हें हटा दिया गया और दिग्विजय के खास पार्षद मानू सक्सेना को जिलाध्यक्ष बना दिया गया। इतना ही नहीं, इंदौर में कमलनाथ अपना अध्यक्ष चाहते थे, यहां भी दिग्विजय बाजी मार ले गए। उनके समर्थक सुरजीत सिंह चड्डा इंदौर शहर कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त हो गए। कमलनाथ को खंडवा से संतोष करना पड़ा। वहां अपने से जुड़े मनीष मिश्रा को शहर अध्यक्ष बनाने में वे सफल रहे।
कमलनाथ ने इनकी नियुक्ति पहले ही कर दी थी लेकिन अधिकार को लेकर सवाल उठे थे, अब दिल्ली की सूची में भी उनका नाम आ गया। खंडवा जिला ग्रामीण अध्यक्ष अरुण यादव समर्थक अजय ओझा बनाए गए हैं। अरुण यादव की टीम में वे प्रदेश महामंत्री हुआ करते थे। अरुण खंडवा का ग्रामीण अध्यक्ष भी अपना चाहते थे लेकिन उनकी नहीं चली। ये नियुक्तियां असंतोष का कारण बन सकती है।
सरकार से भिड़ी ‘निशा’ थामेंगी कांग्रेस का हाथ….
– सरकार को चुनौती देने वाली डिप्टी कलेक्टर निशा भांगरे अब चुनावी मैदान में भाजपा से दो-दो हाथ करने की तैयारी में हैं। इसके लिए वे कांग्रेस का हाथ थाम सकती हैं। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से मुलाकात की है। पार्टी के प्रदेश महामंत्री चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी उनसे पहले से संपर्क में थे।
छतरपुर जिले के लवकुश नगर की एसडीएम रहते निशा ने चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर दी थी लेकिन वे किस दल से मैदान में उतरेंगी, यह तय नहीं था। एसडीएम रहते वे सीधे सरकार से भिड़ गई थीं। विभाग के प्रमुख सचिव पर आरोप लगाते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद पहले उन्हें भोपाल का सरकारी आवास खाली करने का नोटिस मिला। इसके बाद बैतूल में आयोजित एक कार्यक्रम को लेकर भी। आरोप लगाया गया कि उन्होंने भोपाल के सरकारी आवास पर अनाधिकृत कब्जा कर रखा है और बैतूल में प्रशासन की बिना अनुमित धार्मिक कार्यक्रम कर रही हैं। सरकार की बिना अनुमति विदेश प्रतिनिधि बुलाने का आरोप भी उन पर लगा था। नोटिसों से बेपरवाह निशा ने बैतूल में कार्यक्रम आयोजित किया। इसके बाद उन्होंने सरकारी आवास खाली कर दिया। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा था कि वे सरकार के सामने झुकेंगी नहीं, संघर्ष जारी रखेंगी।