
राजा भभूत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के समय तत्या टोपे की मदद की, सतपुड़ा की वादियों में आजादी की मशाल जलाई
चंद्रकांत अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
नर्मदापुरम/ पचमढ़ी। राजा भभूत सिंह ने जल जंगल जमीन एवं अपने क्षेत्र को बाहरी आक्रांताओं तथा अंग्रेजों से अपने क्षेत्र के निवासियों को बचाए रखने हेतु सभी को एकजुट किया और अग्रेजी शासन का मुकाबला किया। राजा भभूत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम के समय तत्या टोपे की मदद की। राजा भभूत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे के आव्हान पर देश की आजादी की मशाल लेकर सतपुड़ा की सुरम्य वादियों में निकल पड़े। उन्होंने सतपुड़ा की वादियों में आजादी की मशाल जलाई। राजा भभूत सिंह ने अंग्रेजों की आँख में धूल झोंकते हुए अक्टूबर 1858 के अंतिम सप्ताह में तात्याटोपे ने ऋषि शांडिल्य की पौराणिक तपोभूमि साँडिया के पास नर्मदा नदी पार की। भभूत सिंह और तात्या टोपे ने नर्मदांचल में आजादी के आंदोलन की योजना बनाई। पचमढ़ी में सतपुड़ा की गोद में तात्या टोपे अपनी फौज के साथ भभूत सिंह से मिलकर आठ दिनों तक पड़ाव डाला और आगे की तैयारी करते रहे। हर्राकोट के जागीरदार भभूत सिंह का आदिवासी समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था। उन्होनें आदिवासी समाज को स्वतंत्रता आंदोलान के लिए तैयार किया।
राजा भभूत सिंह को सतपुड़ा के घने जंगलों एवं पहाड़ियों के चप्पे चप्पे की जानकारी थी जहाँ उन्होंने लोगों को आदिवासी समाज को एकजुट कर उनके साथ मिल कर गोरिल्ला युद्ध पद्धति से अंग्रेजों का मुकाबला किया। राजा भभूत सिंह का रणकौशल ज़बरदस्त था। वह पहाड़ियों के चप्पे चप्पे से वाकिफ थे। उधर अंग्रेज़ फौज पहाड़ी रास्तों से परिचित नहीं थी। भभूत सिंह की फौज अचानक उन पर हमला करती और गायब हो जाती। इससे अंग्रेज बहुत ज्यादा परेशान रहने लगे।
ऐतिहासिक संदर्भों से ज्ञात होता है कि राजा भभूत सिंह का रण कौशल शिवाजी महाराज की तरह था। शिवाजी महाराज की तरह राजा भभूत सिंह सतपुड़ा पर्वतों के हर पहाड़ी मार्ग के चप्पे चप्पे से वाकिफ थे। जबकि अंग्रेज इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों से परिचित नहीं थे। जब देनवा घाटी में अंग्रेजी मिलिटरी सेना और मद्रास इन्फेंट्री की टुकड़ी के साथ राजा भभूत सिंह का युद्ध हुआ तो अंग्रेजी सेना बुरी तरह पराजित हो गई। इस संबंध में एलियट लिखते हैं कि भभूत सिंह को पकड़ने के लिए ही मद्रास इन्फेंट्री को बुलाना पड़ा था। राजा भभूत सिंह अपनी सेना के साथ 1860 तक लगातार अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करते रहे। अंग्रेज पराजित होते रहे। वे सन 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले के रूप में भी जाने जाते हैं। राजा भभूति सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तात्या टोपे के सहयोगी थे। आज का बोरी क्षेत्र राजा भभूत सिंह की जागीर में ही आता था।





