Rajasthan Assembly Elections: रिकार्ड मतदान के बावजूद कांग्रेस और भाजपा की जीत की उम्मीदें हैं ज़िन्दा !

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Rajasthan Assembly Elections: रिकार्ड मतदान के बावजूद कांग्रेस और भाजपा की जीत की उम्मीदें हैं ज़िन्दा !

गोपेंद्र नाथ भट्ट की विशेष रिपोर्ट

चुनाव आयोग ने राजस्थान विधानसभा चुनाव में हुए मतदान के अंतिम आँकड़े जारी कर दिए है। निर्वाचन आयोग के अनुसार राजस्थान में इस बार 75.45 प्रतिशत वोटिंग हुई है। इस आंकड़े में पोस्टल वोटिंग का आंकड़ा भी शामिल है।इस तरह पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में राजस्थान में इस बार 0.74 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ हैं। चुनाव के नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। बताया जा रहा है कि प्रदेश में इस बार हुए मतदान ने पिछले 56 वर्षों के इतिहास को तोड़ा है।

प्रदेश में देव प्रबोधनी एकादशी के बाद बड़ी संख्या में हुई शादियों के बावजूद मतदाताओं की मतदान में रुचि से हुई इस ऐतिहासिक वृद्धि से सत्ताधारी कांग्रेस और प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा दोनों में उत्साह देखा जा रहा है तथा यह दोनों प्रमुख दल अपनी-अपनी जीत की प्रबल संभावनाएँ बता रहे है। इधर विभिन्न मीडिया समूहों द्वारा भी अपने-अपने कयास लगायें जा रहें है तथा वे तीस नवम्बर को शाम तेलंगाना में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान समाप्त होते ही अपने एग्जीट पोल दिखाने की तैयारियों में जुट गए हैं।

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राजस्थान में पिछलें विधान सभा चुनाव की तुलना में मतदान प्रतिशत में हुई मामूली बढ़ोतरी को देखते हुए कांग्रेस तथा भाजपा दोनों पार्टियाँ अपनी-अपनी जीत के प्रति आशान्वित है। कांग्रेस को गहलोत सरकार की गारंटियों और पिछलें पाँच वर्षों में किए गए कार्यों पर यकीन है तथा भाजपा को पीएम मोदी और उनकी सेना के आक्रामक और तूफ़ानी चुनाव प्रचार के साथ ही कांग्रेस से बेहतर संगठन शक्ति पर चुनाव जीतने का पूरा भरोसा हैं।
प्रायः यह माना जाता है कि जब-जब प्रदेश में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है, उसका लाभ विपक्षी दल को मिलता रहा है लेकिन इस बार पिछले चुनाव के मुक़ाबले मतदान की मामूली वृद्धि राजनीतिक पण्डितों को भी किसी सटीक भविष्यवाणी को करने नही दे रही है,लेकिन रिकार्ड मतदान के बावजूद कांग्रेस और भाजपा की चुनाव जीतने की उम्मीदें ज़िन्दा हैं !

राजस्थान में इस बार विधानसभा चुनाव पिछलें सभी चुनावों से अलग, रोचक और दिलचस्प रहें। इसका सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रदेश के चुनाव में एंट्री करना था। राज्य में अब तक प्रदेश के हर चुनाव में मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के मध्य ही मुक़ाबला होता रहा है लेकिन इस बार यह परम्परा टूटी है और इसका असर पूरे चुनाव अभियान में दिखाई दिया है । फलस्वरूप पूरा चुनाव पीएम नरेन्द्र मोदी बनाम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बन कर रह गया।

सांसद सी पी जोशी को प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष बनाने से पहले राज्य में भाजपा कई गुटों में बिखरी हुई दिखाई दे रही थी। कांग्रेस भी इसका अपवाद नही थी लेकिन कांग्रेस हाई कमान की दख़ल के बाद प्रदेश में भाजपा के मुक़ाबले कांग्रेस अधिक संगठित और नियोजित तरीके से चुनाव लड़ने की तैयारी करते हुए दिखी थी लेकिन पीएम मोदी और उनके चाणक्य अमित शाह द्वारा प्रदेश की चुनाव कमान सम्भालने के बाद स्थितियाँ तेजी से बदली और सिरे से किनारे की जाती रही पूर्व सीएम वसुन्धरा राजे सहित पार्टी के सभी प्रादेशिक नेता एक साथ आने लगे और भाजपा ने न केवल कांग्रेस से पहलें अपने उम्मीदवारों की सूची निकाली वरन श्राद्ध पक्ष में निकली सात सांसदों वाली उस सूची से बचे बवाल के बाद भाजपा ने अपनी अगली सूचियों में भूल को सुधारते हुए ज़मीनी हकीकत को स्वीकारने में भी देरी नही की। इधर कांग्रेस नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गाँधी,प्रियंका गाँधी आदि ने भी गहलोत सरकार की लोकप्रिय योजनाओं, महँगाई राहत शिविरों और घोषित गारण्टियों के साथ धुँआधार प्रचार करने में कोई कसर नही रखी और गहलोत भी भाजपा के धारदार हमलों का मूँहतौड जवाब देने में पीछे नही रहें।

इस बार के चुनावों में दोनों दलों के बाग़ियों और अन्य दलो के साथ निर्दलियों ने भी कांग्रेस तथा भाजपा की साँसें फुलाने में कोई कसर बाकी नही रखी है। काँटे की टक्कर वाले इस विधान सभा चुनाव के परिणामों का अब सभी को बेसब्री से इन्तज़ार है।

राजनीतिक पर्यवेक्षेकों के अनुसार एक प्रतिशत से कम मतदाता भी राजस्थान में सरकार को बदल देते हैं। इसी प्रकार प्रदेश की राजनीति में मतदान का प्रतिशत 60 प्रतिशत रहे अथवा 70 प्रतिशत से भी ऊपर रहें लेकिन स्पष्ट बहुमत उसी दल को मिलता है जिसे कम से कम 41 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हो। इसके साथ ही एक अजीब बात ये भी है कि 39 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाला दल सत्ता की तरफ बढ़ तो जाता है, लेकिन बहुमत नहीं ला पाता। जब भी कोई दल 39 प्रतिशत का आंकड़ा थोड़ा सा भी पार कर आगे निकला है ,भले ही यह प्रतिशत 0.20 से लेकर 0.30 का ही क्यो ना हो वो सरकार बनाने में कामयाब रहा है।

1952 से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी को 31 प्रतिशत से कम वोट कभी नहीं मिले है । 1977 के सबसे मुश्किल वक्त में भी कांग्रेस को 31.5 प्रतिशत वोट मिले थे।इसी तरह 2013 में 21 सीटों तक सिमट जाने के बावजूद कांग्रेस को 33 प्रतिशत वोट मिले थे।

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 39.30 प्रतिशत वोट मिले थे तथा एक सहयोगी दल के समर्थन से 100 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार बनायी थी।

यू तों प्रदेश में 1952 के पहले विधानसभा चुनावों से लेकर 1977 तक कांग्रेस निरन्तर प्रदेश में सबसे बड़ा सत्ताधारी दल रहा है लेकिन, 1977 में पहली बार पूरे देश के साथ राजस्थान में भी कांग्रेस ने जनता का विश्वास खो दिया था और कांग्रेस 31 प्रतिशत मतों के साथ सिर्फ 41 सीटें ही जीत पाई थी। दूसरी तरफ तत्कालीन जनता पार्टी ने रिकॉर्ड 51 प्रतिशत मत हासिल कर 151 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी।

इसी तरह जनता पार्टी से अलग होकर भाजपा का गठन के बाद प्रदेश के पार्टी का वोट बैंक करीब तैंतीस प्रतिशत रहता आया है ।वर्ष 1990, 2003 और 2013 में भाजपा को राजस्थान में पूर्ण बहुमत मिला था। 1990 में भाजपा को कुल मतों के 46.90 प्रतिशत मत मिले थे तथा 140 सीटें जीतकर ने पार्टी ने भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई में सरकार बनायी थी। वर्ष 2003 में भी 39.20 प्रतिशत मतों से भाजपा को प्रदेश में 120 सीट मिली थी।वर्ष 2013 में एक बार फिर भाजपा ने 45 प्रतिशत मत प्राप्त कर 163 सीटें जीती और भाजपा ने वसुंधरा राजे ने के नेतृत्व में सरकार बनाई थी जबकि 1985 में 39 प्रतिशत मतों की प्राप्ति के बाद भी भाजपा को सिर्फ 76 सीटें ही मिली थी।

पिछलें2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 73 सीटों पर जीत मिली थी और उसका वोटिंग प्रतिशत 38.77 प्रतिशत था। राजस्थान में मतों के प्रतिशत के रिकार्ड्स पर एक नजर डाले तो साफ हो जाता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के पास 32 प्रतिशत मत हमेशा फिक्स वोट बैंक के रुप में रहता आया है। इसके बाद दोनों ही दलों की आगे की गिनती शुरू होती है। प्रदेश की जनता का मूड भी कभी भी लगातार एक जैसा नहीं रहा है।

विधानसभा चुनावों का इतिहास देखने से साफ हो जाता है कि प्रदेश में जिस दल को 39 प्रतिशत वोट मिलते है वो बहुमत की तरफ बढ़ता है, लेकिन इससे अधिक मिलने पर वह दल सरकार बना लेता है।

लेकिन, इसमें वर्ष 2003 में हुआ विधानसभा चुनाव एक अपवाद रहा है। जब 39.20 प्रतिशत मतों के साथ भाजपा 120 सीटें जीतकर बहुमत में आई थी।

राजस्थान में विधान सभा चुनाव की खास बात ये भी है कि 40 प्रतिशत मत के करीब पहुंचने वाला दल जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने में तों कामयाब हों जाता है, लेकिन बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता है।

1993 में 38.69 प्रतिशत मत के साथ भाजपा को 95 सीटें ही मिली थीऔर उसे निर्दलियों के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी थी। यही हाल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के भी रहे जब कांग्रेस को कुल 39.30% वोट हासिल हुए और उसे 99 सीटों पर ही जीत मिली और अपने चुनाव पूर्व समझोते में विजयी रहे आरएलडी विधायक के कारण उसके पास 100 विधायकों का आँकड़ा हुआ , लेकिन सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को निर्दलियों का साथ लेना पड़ा।

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ( 39.30 प्रतिशत) और बीजेपी ( 38.77 %) के मध्य जीत-हार का अंतर बहुत कम था। यानी कि 2018 के विधानसभा चुनाव में महज 0.53 प्रतिशत अधिक मत ही कांग्रेस को सत्ता में लाने का कारण बने थे जबकि दोनों के मध्य सीटों का अंतर 27 सीटों का था।

अब यह यह देखना दिलचस्प होगा कि राजस्थान में 1993 से हर पाँच वर्ष में सरकारें बदलने का रिवाज इस बार भी बरकरार रहता है अथवा एक ही दल के राज के दुबारा क़ायम रहने की नई परम्परा नए वर्ष में नई सरकार को दावत देतीं दिखाई देंगी?