Rajasthan Bypoll: दिलचस्प स्लॉगनों के साथ विवादास्पद एवं आपत्तिजनक बयानों की भी आई बाढ़

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Rajasthan Bypoll: दिलचस्प स्लॉगनों के साथ विवादास्पद एवं आपत्तिजनक बयानों की भी आई बाढ़

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

नई दिल्ली। राजस्थान में तेरह नवम्बर को सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों के लिए प्रचार अभियान अब अंतिम चरण में है और महज़ एक दिन बाद सोमवार की शाम को प्रचार अभियान का शोर थम जायेगा। राजस्थान में इस बार उपचुनाव की जंग में प्रचार अभियान के दौरान बहुत ही दिलचस्प घटनाओं के साथ विवादास्पद और आपत्तिजनक माने जाने वाले वाक़ये भी देखने को मिल रहें है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उम्मीदवारों और उनके समर्थक नेताओं की संभावित चुनाव परिणामों की बौखलाहट और चुनाव में काँटे की टक्कर की स्थिति को भी प्रदर्शित कर रहें हैं।

इस बार चुनाव प्रचार में सबसे दिलचस्प वाक़या भजनलाल मन्त्रिपरिषद के सबसे वरिष्ठ मंत्री और भाजपा के कद्दावर मीणा नेता डॉ किरोड़ी लाल मीणा द्वारा अपने छोटे भाई रिटायर्ड आरएएस अधिकारी जगमोहन मीणा के लिये अपने गले में “भिक्षाम देहि” की तख़्ती लगा कर जनता के बीच जाना हैं। अपने अनुज के लिए वोटों की भीख माँगना तथा उनकी धर्मपत्नी पूर्व मन्त्री गोलमा देवी का भी अस्वस्थ होने के बावजूद पट्टी बांध कर अपने देवर के लिए गली-गली घूमने के दृश्य दौसा विधान सीट के उप चुनाव को न केवल दिलचस्प बना रहें है वरन् उस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के मध्य काँटे की टक्कर की बानगी भी प्रस्तुत कर रहें हैं।
‘भवति भिक्षां देहि’ का अर्थ है, ‘हे महिला, कृपया मुझे भिक्षा दें’। हिंदू परंपरा में, जब भोजन के लिए किसी महिला सदस्य से अनुरोध किया जाता था, तो छात्र ‘भवति भिक्षां देहि’ कहता था। वहीं, पुरुष सदस्य से अनुरोध करने के लिए ‘ओम, भवं भिक्षाम ददातु’ कहा जाता था। इसका मतलब था, ‘हे सज्जन, कृपया मुझे भिक्षा दें’। डॉ किरोड़ी लाल मीणा द्वारा अपने छोटे भाई जगमोहन मीणा के लिये वोटो की भीख माँगने पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने कटाक्ष करते हुए सार्वजनिक मंच से जनता को सलाह दी है कि वे डॉ मीणा को राजनीति से सन्यास लेकर “आराम देहिम“ का वरदान प्रदान करें।

इधर अशोक गहलोत मंत्रिपरिषद में लाल डायरी से चर्चा में आये झुंझुनूं विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार राजेंद्र सिंह गुढ़ा अपने एक बयान के ज़रिए अपनी सीमाएं लांघने वाले नेताओं में पीछे नहीं रहे। अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों की खातिर उन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे को लगाया जाना भी उचित बता दिया। गुढ़ा बोले, किस संविधान या कानून में लिखा है कि पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा नहीं लगा सकते। गुढ़ा ने एक चुनावी सभा में सवालिया लहजे में पूछा कि संविधान में ऐसा कहां लिखा है कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे नहीं लगा सकते। उनके इस बयान के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस पर कड़ा विरोध जताया है। अपने भाषणों से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले गुढ़ा का यह वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया। सत्तारूढ़ भाजपा के फायरब्रांड नेता और शिक्षा मंत्री मदन दिलावन ने कहा कि यह देशद्रोह की श्रेणी में आता है और पुलिस को इस मामले में जांच कर कार्रवाई करनी चाहिए। भाजपा नेताओं का कहना है कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है और गुढ़ा का बयान देशद्रोह है। वहीं कांग्रेसी नेता भी इस बयान को गलत और देश विरोधी बता रहे हैं। वायरल वीडियो में गुढ़ा को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि, ‘संविधान में कहां लिखा है कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ नहीं बोल सकते?’ उन्होंने आगे कहा, ‘पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है। 14 अगस्त 1947 को हमने उसे पड़ोसी के रूप में स्वीकार किया है। पाकिस्तान की एंबेसी हमारे हिंदुस्तान में दिल्ली में है। हमारी एंबेसी पाकिस्तान में है। 15 अगस्त को पाकिस्तान में भारत का झंडारोहण किया जाता है, भारत जिंदाबाद के नारे लगते हैं। दिल्ली में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते हैं। इसलिए कौन से संविधान में लिखा है कि पाकिस्तान जिंदाबाद नहीं कह सकते?’ यह घटना 29 अक्टूबर को झुंझुनूं जिले के सुलताना कस्बे में गुढ़ा की चुनावी सभा के दौरान हुई। उन्होंने जनता के सामने सवाल उठाया कि आखिर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहना संविधान में कब से मना हो गया? गुढ़ा के इस बयान ने सियासी गलियारों में जोरदार हलचल मचा दी । आगामी चुनावों में इसका क्या असर होगा यह तो वक्त ही बताएगा।

दूसरी ओर उपचुनावों की तारीख नजदीक आने के साथ ही राजनीतिक नेताओं के सियासी तेवर भी तल्ख होते दिख रहे हैं। चुनाव प्रचार में नेताओं की भाषा व्यक्तिगत टिप्पणियों से लेकर अभद्रता तक जाती हुई दिखाई दे रही है। कई नेताओं ने मर्यादा की सीमा तक तोड़ दी है। ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे नेताओं में क्या बीजेपी, क्या कांग्रेस, सभी पार्टियों के नेता बदजुबानी पर आमादा दिखाई दे रहें हैं। सवाई माधोपुर से कांग्रेस के सासंद हरीश मीणा ने बिना नाम लिए निर्दलीय चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के बागी नरेश मीणा पर निशाना साधते हुए सार्वजनिक रूप से कहा, हमे ऐसे चोरों और उठाईगीरों से ईमानदारी का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए वरन कांग्रेस और जनता से चाहिए। ये भाड़े के लोग हैं। कौन हैं ये जो किसी पार्टी के सगे नहीं। नरेश मीणा ने कांग्रेस से बगावत करके उनियारा देवली सीट से ताल ठोंक रखी है।

इसी तरह नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी खींवसर सीट के उपचुनाव में अपनी पत्नी और आरएलपी पार्टी प्रत्याशी कनिका बेनीवाल के प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता दिव्या मदेरणा पर जमकर हमला बोला। हनुमान ने तो दिव्या और उनके पिता महिपाल मदेरणा समेत पूरे परिवार को ही निशाने पर ले लिया। बेनीवाल और दिव्या की अदावत लंबे समय से है। हनुमान बेनीवाल ने कहा, सुबह चार बजे आकर तुम्हारा दरवाजा खटखटाया क्या? मेरे क्षेत्र में घूमूंगा, तुम भी घूमो। क्या था तुम्हारा? याद करते ही सीडी चलाते हैं छोरे। क्या किया तुम्हारे पिताजी और दादाजी ने? एक ने जोधपुर और दादाजी ने नागौर को बर्बाद करके छोड़ दिया। दिव्या के पिता महिपाल मदेरणा का नाम भंवरी देवी कांड में शामिल था और उनकी कई अश्लील सीडी इस मामले में चर्चा में आई थी। बेनीवाल सीडी कांड का जिक्र कर दिव्या पर हमलावर हो गए।
इसके अलावा राजस्थान के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेसी नेता रघु शर्मा भी चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जुबान काबू नहीं रख पाए। रघु ने कहा कि 13 नवंबर के बाद बीजेपी प्रदेश में कत्ले आम मचाएगी। इस तरह की भाषा के इस्तेमाल पर सीनियर पार्टी नेताओं ने ऐतराज जताया है। बीजेपी नेता और भजनलाल सरकार में कैबिनेट मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा कि ऐसी भाषा बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। प्रचार के दौरान गलत शब्दों के इस्तेमाल पर कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी कहा कि नेता किसी भी पार्टी का हो, उसे भाषा की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। मैने कभी भी किसी नेता को इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हुए नहीं देखा और सुना। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं को ध्यान रखना चाहिए कि हमारे लोकतंत्र की दुनिया में एक अलग ही पहचान है।

इधर राजस्थान में हो रहें उपचुनाव में भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिए नारे ‘बटोगे तो कटोगे’ को आगे बढ़ाते हुए हिंदुत्व वाले एजेंडे को भी धार दे रही है। योगी के इस नारे को भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं ने आगे बढ़ाया है। महाराष्ट्र की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस नारे का जिक्र कर संजीदा ढंग से एकजुटता शब्द का प्रयोग किया । दरअसल, योगी ने कुछ समय पूर्व आगरा की एक सभा में बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए कहा था कि बटोगे तो कटोगे, इसलिए एक जुट रहें। फिर हरियाणा चुनाव में भी योगी ने अपने भाषणों में बटोगे तो कटोगे पर ही फोकस रखा। योगी ने जिस जिस सीट पर सभाएं की पार्टी ने वे सभी सीटें जीती थीं। इससे पार्टी के हौसले बुलंद हुए हैं। लोकसभा चुनाव में प्रतिपक्ष ने जाति का कार्ड खेल हिंदुओं को अगड़े और पिछड़े में बांटने की कोशिश की थी। विपक्ष के इस जाति कार्ड की काट के रूप में योगी ने बटोगे तो कटोगे की बात कह फिर से हिंदुत्व के मुद्दे को धार दी। शुरू में योगी के इस नए स्लोगन से पार्टी में भ्रम की स्थिति बनी थी, लेकिन बाद में सभी ने नारे को स्वीकार लिया। यह भी सही है कि चुनावों में नारों का अपना महत्व है। इनके माध्यम से विभिन्न दल अपनी बात मतदाता तक पहुँचाते है। इन्दिरा गांधी ने भी गरीबी हटाओं का नारा देकर चुनाव जीते थे। ये नारे कार्यकर्ताओं में जोश भर देते हैं, हालांकि नारे कभी कभार उल्टे भी पड़ जाते हैं ।लेकिन कुछ नेता प्यार और जंग में सब जायज है की तर्ज पर इसका इस्तेमाल करने से नहीं चूकते ।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़ा झटका राजस्थान में लगा था। यहां दो आम चुनावों में लगातार जीत के बाद भाजपा 25 में से 11 सीटों पर हार गई थी। इस हार की बड़ी वजह जातीय राजनीति ही थी। चुनाव में जाट, गुर्जर और मीणा समुदाय ने भाजपा को वोट नहीं किया था। तब कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग और जातीय राजनीति कारगर रही थी । हरियाणा चुनाव के परिणाम आने से पूर्व तक राजस्थान में कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले सही स्थिति में दिख रही थी, लेकिन अब हालत बदलते दिख रहे है। हरियाणा की जीत ने भाजपा को बड़ी आक्सीजन दे दी है। केंद्र से लेकर राज्यों में कार्यकर्ता रिचार्ज हो गया है। पड़ोसी राज्य में जीती हुई बाजी के हार में बदलने से कांग्रेसियों में मायूसी है।

भाजपा के रणनीतिकार जानते हैं कि जातीय समीकरण में वह कमजोर हैं। ऐसे में हिंदुत्व ही ऐसा एजेंडा है, जिसमें सभी नाराज जातियां एकजुट हो वोट कर सकती हैं। राजस्थान में सात सीटों पर उप चुनाव होने है। दो सीटों पर विधायकों के निधन के चलते चुनाव होगा,जबकि पांच पर लोकसभा में चुनकर जाने वाले विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई सीट है। इनमें देवली उनियारा, दौसा, झुंझुनू और रामगढ़ की सीट कांग्रेस की थी जबकि चौरासी और खींवसर कांग्रेस के सहयोगियों की थी। भाजपा की एकमात्र सीट सलूंबर थी जहां सीटिंग विधायक के असामयिक निधन से रिक्त सीट पर चुनाव हो रहें है। अब इन सात सीटों का चुनाव भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे लोकसभा की हार का जवाब दिया जा सकेगा। लिहाजा सभी दलों के नेताओं की बयानबाजी में तल्खी है और कुछ नेताओं ने अपने भाषणों से सीमाएं भी लांघ दी हैं। अब इन सभी बातों का मतदाताओं पर क्या असर रहता है ? यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही सामने आयेगा।

देखना है राजस्थान जैसे समृद्ध कला,संस्कृति और गौरवशाली इतिहास से भरपूर राजस्थान में उप चुनाव वाले क्षेत्रों की जनता अमर्यादित व्यवहार करने वाले नेताओं को कौन सा पाठ पढ़ाती है?