Rajasthan Vidhan Sabha Elections: राजस्थान के रण के लिए बिछने लगी शतरंज की चौसर, लाल डायरी बनाम लाल सिलेण्डर

ऐसे ही अन्य मामलों के रहस्यों के साये में होंगे राजस्थान विधान सभा के चुनाव?

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Rajasthan Vidhan Sabha Elections: राजस्थान के रण के लिए बिछने लगी शतरंज की चौसर, लाल डायरी बनाम लाल सिलेण्डर

राजस्थान से गोपेंद्र नाथ भट्ट की विशेष रिपोर्ट

नई दिल्ली /जयपुर।राजस्थान में विधानसभा चुनाव ज्यों ज्यों नजदीक आ रहें है,इसके साथ ही प्रदेश में सियासी हलचल भी तेज हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले नौ महीनों में आठ बार राजस्थान का दौरा कर चुके है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा पिछले एक पखवाड़ा में दूसरी बार राजस्थान आ चुके है। नड्डा 13 दिन में दूसरी बार जयपुर आए है।वे 16 जुलाई को भी आये थे। इसके अलावा भाजपा के केन्द्रीय मन्त्रियों और पदाधिकारियों की फोज तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद सी पी जोशी भी अपनी टीम के साथ राजस्थान के किले को फ़तह करने के लिए पूरी ताकत से जुट गए है। लाख टके का सवाल पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की भूमिका पर टिका हुआ है। अब तक हाशिये पर रहीं राजे की ताकत और लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अब उन्हें जन सभाओं में महत्व देने लगा है।

हालाँकि सभी को इस बात का इन्तज़ार है कि आने वाले विधान सभा चुनाव में उनकी भूमिका क्या रहेंगी? क्या उन्हें चुनाव कैंपेन कमेटी अथवा अन्य किसी प्रमुख चुनावी कमेटी का अध्यक्ष बनाया जायेगा या नहीं ? इस पर से अभी पर्दा उठना बाकी है।हालाँकि उन्हें हाल ही पुनर्गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने पुनः राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। सभी इस सच्चाई से अवगत है कि राजस्थान में भाजपा की जीत और हार का दारोमदार वसुन्धरा राजे पर निर्भर है क्योंकि राज्य में उनके कद और मुक़ाबले तथा लोकप्रियता रखने वाला कोई नेता नहीं है जोकि सत्ता विरोधी लहर बिना कांग्रेस सरकार को रीपिट कराने में जोरशोर से जुटे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सामना कर सकें।राजनीतिक जानकारों का भी आँकलन है कि वसुन्धरा राजे को आगे किए बिना प्रदेश में भाजपा की विजय असम्भव नहीं तों मुश्किल अवश्य है।

इधर कांग्रेस अपने नेता राहुल गाँधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को विश्व आदिवासी दिवस पर राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित बाँसवाड़ा जिले के प्रसिद्ध मानगढ धाम पर लाकर एक बहुत बड़ी रैली कराने की तैयारियों में जुटे हुए हैं। मानगढ पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गुजरात विधानसभा चुनाव से पहलें एक विशाल जन सभा कर राजस्थान गुजरात और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती इलाक़ों में बड़ी आबादी में बसे आदिवासी वोटरों को साधने का प्रयास किया था।

प्रदेश में भाजपा की तुलना में कांग्रेस की चुनावी तैयारियों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दोनों पैरों में चौंट लगने से थोड़ा धक्का लगा है। गहलोत ने उदयपुर संभाग के आदिवासी अँचलों सहित पूरे प्रदेश में तूफ़ानी दौरें कर महँगाई राहत शिविरों के माध्यम से करोड़ों लोगों को अपनी दस लोकप्रिय योजनाओं के गारण्टी कार्ड देकर जो समा बांधा था उसकी धार को बर्खास्त मन्त्री राजेन्द्र गुढा की लाल डायरी की नजर लगी है लेकिन गहलोत व्हील चेयर से ही लाल डायरी का जवाब एवं निशाना लाल घरेलु गैस सिलेण्डर की राजस्थान के मुक़ाबले तीन गुणा अधिक क़ीमतों का ज़िक्र कर लगा रहें हैं। अब चूँकि विधानसभा चुनाव में बमुश्किल चार महीनों से भी कम समय शेष हैं,ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री गहलोत की पैरों की पट्टियाँ खुलने का इंतजार है ताकि उनके नेतृत्व में फिर से जोरशोर से चुनावी समाँ बांधा जा सकें।

उधर पूरे प्रदेश में भाजपा ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ अभियान चला रही है।
जेपी नड्डा इससे पहले 16 जुलाई को जयपुर आए थे। बीलवा में आयोजित सभा में उन्होंने प्रदेश बीजेपी के ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ अभियान की शुरुआत की थी।
एक अगस्त को जयपुर में बड़े प्रदर्शन के साथ यह अभियान समाप्त होगा। इसके बाद भाजपा प्रदेश में धार्मिक स्थलों से परिवर्तन यात्राएं निकालने का विचार कर रहीं है। यें यात्राएं डूंगरपुर के बेणेश्वरधाम, हनुमानगढ़ के गोगामेड़ी और सवाई माधोपुर के त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथम्भोर से शुरू की जा सकती है। यह कार्यक्रम 9 और 10 जुलाई को सवाई माधोपुर में बीजेपी की विजय संकल्प बैठक में तय हुआ था।

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष, राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भूपेन्द्र यादव,अश्विनी वैष्णव,अर्जुन राम मेघवाल ,कैलाश चौधरी, राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल,सचिव अल्का गुर्जर समेत राजस्थान बीजेपी के आला नेता चुनावी व्यूह रचना तैयार कर रहें हैं।

बीजेपी ने हाल ही राष्ट्रीय पदाधिकारियों की घोषणा की है। इसमें राजस्थान से तीन नेता शामिल किए गए हैं। तीनों नेताओं को पुराने पदों पर बरकरार रखा गया है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सुनील बंसल को राष्ट्रीय महामंत्री और डॉ. अल्का सिंह गुर्जर को राष्ट्रीय सचिव के पद पर बरकरार रखा गया है। जेपी नड्डा ने संगठन की नई टीम को लेकर कहा- पार्टी के जो संगठन पदाधिकारी चुनाव लड़ना चाहते थे, उनको ठीक ढंग से चुनाव लड़ने के लिए फ्री किया गया। साथ ही नए लोगों को चांस दिया गया हैं। नड्‌डा के इस बयान की सियासी हलकों में काफ़ी चर्चा हो रही है। इस बयान के यह मायने भी निकाले जा रहे हैं कि संगठन पदाधिकारियों को चुनाव नहीं लड़ाने का नियम भी लागू किया जा सकता है। यह भी संयोग है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के जयपुर में चुनावी बैठक लेने के ठीक पहले राष्ट्रीय टीम घोषित की गई है। वसुन्धरा राजे को राष्ट्रीय टीम में उपाध्यक्ष बरकरार रखकर पार्टी नेएक सियासी मैसेज दिया है।

बीजेपी ने यह भी संकेत दिए हैं कि जनाधार वाले नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय किया जाएगा। वसुंधरा को पिछले दिनों झारखंड भेजा गया था। वे राजस्थान विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में भी वे कई सभाएं कर रही हैं। पिछले दिनों कोटा में उनकी एक बड़ी सभा हुई थीं। राजे को अब राजस्थान के साथ दूसरे राज्यों में भी चुनावी टास्क दिए जाने की संभावना है। बीजेपी अपने जनाधार वाले नेताओं को एक ही राज्य तक सीमित रखने के बजाय उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी सक्रिय करना चाहती है।

वसुंधरा राजे की गिनती बीजेपी में जनाधार वाले नेताओं में की जाती है। राजस्थान में वे दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा को दोनों बार ऐतिहासिक बहुमत मिला था । वर्ष 2003 में वसुंधरा राजे की अगुवाई में लड़े गए चुनाव में बीजेपी ने 200 में से 120 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी।हालाँकि 2008 में राज्य में बीजेपी हार गई, लेकिन उसे 78 सीटें मिली। 2013 में फिर वसुंधरा राजे की अगुवाई में भाजपा ने राजस्थान के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा 163 सीटों पर जीत दर्ज की लेकिन 2018 के चुनावों में बीजेपी फिर से चुनाव हारी, लेकिन विधान सभा में उसकी 73 सीटें थीं।प्रदेश में वसुंधरा की लीडरशिप में अब तक चार चुनाव लड़े गए, जिनमें दो बार बीजेपी की सरकार बनी और दो बार बीजेपी पराजित हुई, लेकिन उसकी सीटें विपक्ष में रहते हुए भी हमेशा 70 से कम नहीं हुई। यह भी तथ्य है कि वसुन्धरा राजे की अगुवाई में लड़े गए चुनावों में दो बार बीजेपी की सरकार बनी और उस दौरान कांग्रेस की बुरी तरह हार हुईं। 2003 में कांग्रेस 56 सीटों पर और 2013 में 21 सीटों पर सिमट गई थी।

राजस्थान बीजेपी में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अब भी अंदरखाने खींचतान जारी है। इस खींचतान को दूर करने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने सामूहिक लीडरशिप में चुनाव लड़ने का संकेत दिया गया है। राजस्थान में पार्टी चुनाव से पहले किसी तरह के चेहरे के विवाद को टालने के लिए वरिष्ठ नेताओं को संकेत दे चुकी है।

बीजेपी में अब चुनाव कमेटियों के गठन का इंतजार है। वसुंधरा राजे को किस चुनाव कमेटी का प्रमुख बनाया जाता है। इससे उनकी भूमिका को लेकर बहुत कुछ साफ हो जाएगा। राजे के समर्थक भी इस बात के इंतजार में ही हैं। राजनीतिक पण्डितों का मानना है कि राजे को चुनाव कैंपेन कमेटी या अन्य प्रमुख चुनावी कमेटी का अध्यक्ष बनाया जाना भाजपा के हित में होंगा।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी सी एम चेहरों की लड़ाई को रोककर चुनावी तैयारियों पर ध्यान लगाने की रणनीति में जुट गई है। पार्टी अध्यक्ष नड्‌डा ने सामुहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की सियासी लाइन तय कर मैसेज साफ कर दिया है। जिस पर पार्टी को आगे बढ़ना है। शीघ्र ही विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान भी बहुत कुछ संकेत मिल जाएंगे।

जयपुर में हाल ही पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा की उपस्थिति में हुई कोर कमेटी की बैठक के बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने राजस्थान की गहलोत सरकार पर जमकर निशाना साधा है। जोशी ने कहा कि राजस्थान कांग्रेस की काली हकीकत लाल डायरी में कैद है। इसे कांग्रेस सरकार के अपने ही मंत्री ने जग जाहिर किया है। उन्होंने कांग्रेस के अंतर कल, पेपर लीक प्रकरण, महिला सुरक्षा, क़ानून व्यवस्था, किसानों के ऋण माफी सहित अन्य कई मुद्दे उठा कर गहलोत सरकार को घेरने का प्रयास किया।
इधर कांग्रेस का दावा है कि भाजपा के पास कोई मुद्दा नही है। साथ ही गहलोत सरकार की जनप्रिय योजनाओं का भी कोई तोड़ नही है। ऐसे में आने वाले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा ही भारी रहने वाला है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राजस्थान के रण के लिए जो शतरंज की चौसर बिछने लगी है उसमें लाल डायरी बनाम लाल सिलेण्डर का मुद्दा हावी रह सकता है और लाल डायरी और ऐसे ही अन्य मामलों के रहस्यों के साये में राजस्थान विधान सभा का चुनाव होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।