Rajendra Mathur: पत्रकारों का तीर्थ बनेगा राजेन्द्र माथुर का बदनावर!

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Rajendra Mathur: पत्रकारों का तीर्थ बनेगा राजेन्द्र माथुर का बदनावर!

जयराम शुक्ल की खास रिपोर्ट 

धार के पत्रकार मित्रों ने जब यह शुभ सूचना दी कि बदनावर में राजेन्द्र माथुर की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा सुनिश्चित की गई है तो इतनी खुशी मिली..इतनी खुशी मिली कि उस भावना को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। इस हेतु पूर्व मंत्री राजवर्धन सिंह जी दत्तीगाँव का जितना भी आभार व्यक्त करें वह कम ही है, क्यों कि मंत्री रहते हुए यह उन्हीं के प्रयासों का सुफल है।

परदे पर गत्ते की तलवार भाँजने वाले सदी के महानायक और मंचों पर भाषणों की भीषण बमबारी मचाने वाले महाबलियों के दौर में इस सदी के संपादक राजेन्द्र माथुर की उनकी जन्मस्थली बदनावर में प्रतिष्ठित किया जाना पवित्रता भरा अहसास है। इतिहास में बदनावर की जगह वैसे ही सुरक्षित रहनी चाहिए जैसे कि सिमरिया में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की, लमही में कथासम्राट प्रेमचंद की।

मैं दो वर्ष पूर्व में बदनावर तहसील के नागदा कस्बे में धार पत्रकार संघ के एक आयोजन में वहां गया था। मुझे माथुर साहब पर व्याख्यान देना था। समारोह में राजवर्धन सिंह जी मुख्य अतिथि थे। मैंने भी धार जिले के पत्रकार साथियों के स्वर में स्वर मिलाते हुए बदनावर में राजेन्द्र माथुर जी की भव्य मूर्ति बनाने का निवेदन किया था। राजवर्धन जी ने माथुर साहब के बारे में समारोह जो कुछ कहा गया उसे संजीदगी से सुना था। मैंने अपने बोलने के क्रम में कहा था- नए युग की भारतीय पत्रकारिता की गंगा बदनावर से निकलकर हिमालय तक जाती है..।

राजवर्धन सिंह जी के लिए यह चकित कर देने वाला वाक्यांश नहीं था। वे भी पत्रकारिता के ही छात्र रहे हैं तथा अखिल भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली से ग्रेजुएशन किया है। उन्होंने तब यह आश्वस्ति दी थी कि बदनावर को राजेन्द्र माथुरमय करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ेंगे। बदनावर के पत्रकार साथी गोवर्द्धन डोडिया जी व धार जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष छोटू शास्त्री ने बताया कि राजवर्धन जी ने वहां के एसडीएम व सीएमओ को नगर में कोई उपयुक्त स्थल चयन करने के लिए निर्देशित किया है। धार के पत्रकार साथियों ने राजेन्द्र माथुर जी की स्वाभिमानी परंपरा का निर्वाह करते हुए यह संकल्प लिया है कि मूर्ति के निर्माण में वे सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं लेंगे अपितु सभी पत्रकारगण अपने अर्थार्जन के हिस्से को जोड़कर यह काम करेंगे। मैंने साथियों से अपेक्षा व्यक्त की है कि मूर्ति स्थापना रस्मी न रहे वरन् अर्थवान बने। इस हेतु कम से कम तीन हजार वर्गफुट जगह का चयन है जहाँ.. एक खूबसूरत बगिया के बीच राजेन्द्र माथुर की भव्य मूर्ति लगे। नेता अपनी सरकार से नाराज होते हैं तो गाँधी की मूर्ति के सामने बैठकर विरोध या अनशन करते हैंं। आखिर हम पत्रकारों का भी अधिकार बनता है कि ऐसा स्थल हमें भी मिले और वह राजेन्द्र माथुर स्मृति के सिवाय अन्य हो नहीं सकता।

यह विश्वास करके चल रहा हूँ कि बदनावर को पत्रकारों का तीर्थस्थल बनाने व माथुर साहब जैसे हिमालयीन व्यक्तित्व की स्मृति को अक्षुण्य रखने में धार के पत्रकार साथी रंचमात्र भी पीछे नहीं रहेंगे।

आरंभकाल में अँग्रेजी का प्राध्यापकी और अंशकालिक पत्रकारिता से वृत्तियात्रा करने वाले राजेन्द्र माथुर..अब भी सबसे ज्यादा उद्धृत व स्मरण किए जाने वाले संपादक हैं। 1955 से 1991 के बीच उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह संदर्भ इतिहास की मोटी किताबों पर वजनी है। एक आदर्श संपादक के तौरपर माथुर साहब पर सबसे ज्यादा लिखा गया व पुस्तकें छपीं। इंदौर प्रेस क्लब प्रतिवर्ष उनके जन्म व पुण्यतिथि पर व्याख्यान आयोजित करता है। उनसे जुड़े बाद की पीढ़ी के हर पत्रकार मेंं कहीं न कहीं माथुर साहब की आभा झलकती है..। राजेश बादल उनमें से एक हैं..जिन्होंने माथुर साहब की आभा को और भी आलोकित करने का काम कर रहे हैं।

हाल ही मैंने जब माथुर साहब और बदनावर में उनकी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा योजना की सूचना साझा की तो उनकी प्रफुल्लता समझ में आई। राजेश जी माथुर साहब के सानिध्य में कोई पंद्रह साल पत्रकारिता की है। उन्हें निकट से पढ़ा और समझा है। राज्यसभा टीवी के कार्यकारी निदेशक रहते हुए..सदी के संपादक: राजेन्द्र माथुर..वृत्तचित्र बनाया। बादलजी की एक पुस्तक नेशनल बुक ट्रस्ट से आ रही है जिसमें माथुर साहब के वे दुर्लभ आलेख हैं जो अब तक प्रकाशित नहीं हुए। राजेश के अनुसार कश्मीर समस्या पर उनके कई लंबे आलेख हैं जो किसी करणवश प्रकाश में नहीं आ सके थे। उनकी यह कोशिश है कि माथुर साहब की प्रतिमा के अनावरण के पहले तक यह सब संग्रहीत होकर पुस्तक के रूप में आ जाएं। वे कुछ मित्रों के साथ मिलकर राजेन्द्र माथुर फाउंडेशन की दिशा में प्रयत्नशील हैं जिससे पत्रकारों को शोध अनुसंधान के लिए फेलोशिप व पुरस्कार दिए जा सकें।

इंदौर उत्सवी शहर है। वह माथुर साहब को अपना वैसे ही मोरमुकुट मानता है जैसे कि लता मंगेश्कर, राहुल बारपुते व अन्य महापुरुषों को। इंदौर प्रेस क्लब का मुख्य सभागार माथुर साहब को ही समर्पित है। पलासिया में राजेन्द्र माथुर की मूर्ति है और मार्ग का नाम भी। यहां प्रभाष जोशी और राहुल जी के नाम भी स्मारक और मार्ग है। काश भोपाल समेत प्रदेश के अन्य नगर भी इंदौर से प्रेरणा लें और नेताओं की जगह मूर्धन्य साहित्यकारों, पत्रकारों व संस्कृतिकर्मियों को अपना सिरमौर मुकुट बनाएं। भारत में इस मामले कोलकाता अग्रगण्य है। वहाँ के प्रायः सभी प्रमुख मार्ग और चौराहे साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों व वैज्ञानिकों के नाम समर्पित है। ऐसे ही व्यक्तित्व वहाँ के महानायक हैं। इधर दिल्ली को देखिये तो आप सीधे स्वयं को मुगलकाल में खड़ा पाऐंगे। बाबर से लेकर बहादुरशाह जफर तक के जिन्न लुटियन जोन में भटकते मिल जाएंगे। दिल्ली के वक्षस्थल पर इतने मकबरे खड़े हैं कि बकौल डा. विद्यानिवास मिश्र ..यह तो भरापूरा महकता कब्रिस्तान है। यमुनाजी के कूल किनारों में श्रृंखलाबद्ध श्मशानघाट हैं जिन्हें नाना प्रकार के स्मृति स्थल के नाम से जाना जाता है।

देश के महानगरों, नगरों में अब नया चलन आना चाहिए.. जहाँ के गली, मोहल्ले, चौक-चौराहे सृजनधर्मियों के नाम से जाने जाना चाहिए। नई पीढ़ी के सांस्कृतिक हीरो, टैगोर, निराला, माखनलाल, प्रेमचंद, दिनकर और राजेन्द्र माथुर जैसे लोग हों न कि परदे पर गत्ते की तलवार भाँजने वाले कथित सदी के ‘महानायक’।