Rajendra Shukl: विंध्य के कायांतरण के पटकथाकार, जिन्हें आज दिया जा रहा ‘‘ब्रह्मरत्न’’ सम्मान

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Rajendra Shukl: विंध्य के कायांतरण के पटकथाकार, जिन्हें आज दिया जा रहा ‘‘ब्रह्मरत्न’’ सम्मान

  डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चंन्द्र

विंध्य में पढे-लिखे, और अपने भविष्य का सपना देखने वाले युवा प्रोफेनल्स का एक समूह है ‘‘ब्रह्मशक्ति’’, जिसने इस वर्ष से एक भावपूर्ण सम्मान की परिपाटी शुरू की है, ‘‘ब्रह्मरत्न’’। इस धारणा के पीछे यह कि जो व्यक्तित्व विंध्य की यश व कीर्ति की पताका को मध्यप्रदेश और उसके बाहर फहरा रहा है, उसे यह सम्मान दिया जाए। इस हेतु सर्व सम्मति से प्रथमत: जो नाम एक स्वर से उठता है, वह है, प्रदेश के यशस्वी उपमुख्यमंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल का। 8 सितम्बर 2024 को रीवा में एक गरिमामय समारोह में ब्रह्मकुल के श्रेष्ठ महापुरुषों, विद्वानों की उपस्थिति में यह सम्मान प्रदान किया जाएगा।

 

विंध्य गौरवान्वित व अभिभूत है अपने आंगन में ऐसे ‘रत्न’ को पाकर जिसके व्यक्तित्व के आलोक में भौतिक नैतिक और सांस्कृतिक कायान्तरण की नई इबारत लिखी जा रही है।

 

विंध्य रीवा की जनता सौभाग्यशाली है कि उसे एक ऐसा राजनेता मिला है जो उसके लिये योजनाएं बनाता है, शासन से स्वीकृत कराता है और उसे जमीन पर उतारते हुए निरंतर उसकी मॉनीटरिंग करता है, उसे पूरी तरह प्रशासन के मत्थे नहीं छोड़ता। प्रशासन भी ऐसे टेक्नोक्रेट मंत्री को बर्गला नहीं पाता। प्रशासन को यदि कोई दिक्कत आती है, उसका समाधान वह करता है। राजेन्द्र शुक्ल एकमात्र ऐसे योजनाकार जनप्रतिनिधि हैं जिनका मस्तिष्क हर समय कुछ न कुछ नया सोचता है।

 

कितने ही कथित दैव और चाणक्य जन प्रतिनिधि रीवा-सीधी में हुए जिन्होंने बदवार की पहाड़ों को आते-जाते देखा होगा। सेना की एक बड़ी टुकड़ी को अभ्यास करते कई घंटे बस यात्रियों ने मोहनिया और गुढ़ में प्रतीक्षा की होगी। उस वीरान पहाड़ी को राजेन्द्र शुक्ल ने भी देखा। उन्होंने इसमें भी एक बड़ी संभावना देखी। म.प्र. के ऊर्जा मंत्री थे। 7 अप्रैल 2017 को उत्पादन कंपनी से रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट का म.प्र. शासन का अनुबंध हुआ।

 

राजेन्द्र जी के सतत निरीक्षण से निर्धारित अवधि से पहले महान प्रोजेक्ट पूरा हुआ। चौदह महीने में 750 मेगा वाट बिजली का उत्पादन शुरू हो गया। विश्व की सबसे कम बिजली दर 2.97 प्रति यूनिट देश को समर्पित की। इसके लिये उन्होंने जर्मनी, स्विटजरलैंड और देश की अनेक कार्य शालाओं में व्यक्तिगत साझेदारी की।

 

पानी से तेल निकालना और रेगिस्तान में धान की खेती करने का गुर उन्होंने अपने पिता से सीखा है जो बिना डिग्री के महान इंजीनियर थे। इसे बिडम्बना ही कहेंगे कि जिस दिन 10 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री जी ने सोलर प्लांट का वर्चुअल लोकार्पण किया उन दिनों वे अपनी सरकार में मंत्री नहीं थे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि रीवा की पहचान नर्मदा और सफेद बाघ से है, अब इसमें एशिया का सबसे बड़ा सोलर प्लांट भी जुड़ गया है, प्रधानमंत्री का यह कहना अप्रत्यक्ष रूप से राजेन्द्र जी के कार्य पर मुहर थी। रीवा की पहचान अब सोलर प्लांट से भी है।

 

विश्व मेेें रीवा की पहचान सफेद बाघ से है जिसे महाराजा रीवा मार्तण्ड सिंह ने सीधी के एक वनक्षेत्र से पकड़ा था। विश्व के इस पहले बाघ का नाम उन्होंने मोहन रखा। गोविन्दगढ़ किले का एक भाग सफेद बाघों की नर्सरी बन गया। महाराजा ने उनके प्रजनन की व्यवस्था की। बाघों का अहेर खेलने वाले राजा ने शिकार न खेलने का व्र्रत लिया। आज विश्व में जितने भी सफेद बाघ हैं, सभी मोहन के वंशज हैं। सफेद बाघों को जब भी कहानी लिखी जायेगी उसमें मोहन और मार्तण्ड सिंह का नाम होगा।

 

महाराजा के किले से 8 जुलाई 1976 को सफेद बाघ दिल्ली चिडिय़ाघर ले जाया गया और रीवा से यह संज्ञा छीन ली गई कि वहां सफेद बाघ है। महाराजा सांसद हुए, कुंवर अर्जुन सिंह जैसे शक्तिशाली मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री हुए लेकिन छीनकर ले गया बाघ वापस नहीं आया। राजेन्द्र जी छात्र थे उन्होंने छात्र जीवन में गोविन्दगढ़ के किले में बाघ को देखा था। कहते हैं एक बार बाघ गुम होकर मुकुन्दपुर के मनोरम वन में चला गया जहां झरना था, घने वृक्षों की छाया थी। राजेन्द्र जी ने वन पर्यावरण के वैज्ञानिकों और वन विभाग के अधिकारियों से बात की। सरकार के पास कार्य योजना भेजी और मुकुन्दपुर में टाइगर सफारी का निर्माण करवाया।

 

किसी भी योजना को जुनून की तरह भीतर एक महसूस करने वाली राजेन्द्री प्रवृत्ति ने 8 जुलाई 1976 से सफेद बाघ विहीन रीवा को 9 नवम्बर 2015 को मुकुन्दपुर जू में विन्ध्या सफेद बाघिन की उपस्थिति दर्ज कराकर सफारी का नाम महाराजा मार्तण्ड सिंह के नाम पर रखा। सफेद बाघ की कहानी, जयराम शुक्ल की जुबानी प्रत्येक दर्शक चिडिय़ा घर की दीवारों और लिखित पुस्तक में देख-पढ़ सकते हैं।

 

आज के शहर की बीहर नदी के तट पर 8वीं सदी में आदिशंकराचार्य आये थे। बीसवीं सदी के पांचवें दशक में भितरी (सीधी) से एक संस्कृत अध्यापक ऋषि कुमार जी इसी तट की खोह (गुफा) में समाधिस्थ हुए उन्हें बोध प्राप्त हुआ वे ऋषि कहलाए, उन्होंने मठ बनाया और वह चार मठों से अलग पंचमठ के रक्षार्थ ऋषि कुमार जी ने भी विद्यार्थियों को तैयार किया परन्तु शासन धर्मनिरपेक्ष था और सनातन के लिये कोई वफ्फ बोर्ड नहीं होता। मठ की जमीन पर अतिक्रमण होता रहा। जमीन बिना पट्टे की थी, मठ ने अपनी सीमा बना ली थी। शहर भर का कचरा नदी के किनारे मठ के आसपास जमा होता रहा।

ऋषि कुमार जी ब्रम्हलीन हो गये लड़ते-लड़ते।

 

लोग नाक दबाकर वहां से निकलते इतनी बदबू थी। किसी कर्मवीर नेता की निगाह उस तरफ नहीं गई। राजेन्द्र जी ने बीहर और मठ की पीड़ा अंतस्तल में महसूस की और आज हरेक का मन पंचमठ में बैठने और बीहर की संध्या आरती हर की पौड़ी तर्ज पर देखने के लिये लालायित रहता है। चार मठों का इतिहास वहां घूमघूम कर देखा जा सकता है। जिस स्थल को निहारने का मन नहीं करता था वहां से हटने-उठने का मन नहीं करता। बड़ी पुल से राजघाट तक का रिवर फ्रंट उनकी कार्य योजना का हिस्सा है।

 

सत्ता और व्यक्ति के सपनों का अद्भुत मणिकांचन योग का नाम राजेन्द्र शुक्ल है। पिछले 15-20 वर्षों में राजेन्द्र जी ने रीवा का नक्शा बदला है। उन्होंने गुर्गे और चाटुकार नहीं पाले। किसी अपने के कहने पर नहीं चले। उन्होनें अपना रास्ता बनाया उसी पर चल रहे हैं, यह सुखद है। रानी तालाब का सौन्दर्यीकरण, चिरहुला तालाब-मंदिर का पुनरुद्धार उनकी कार्य योजना के केन्द्र में हैं। रतहरा तालाब गंदगी और राहजनी का अड्डा था। बीस-पच्चीस बरस पहले रतहरा में घर बनाने वाले को शहरी अभिशप्त नागरिक कहकर व्यंग करते थे, तालाब-पार्क, शिवाजी पार्क और विंध्यारिट्रीट देखने के लिये शाम को हजारों की भीड़ होती है। यह सब है एक विजनरी राजनेता की, क्षेत्र की जनता के लिये सौगात-बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।

 

रीवा अब फ्लाई ओवरो का शहर है। बीहर का वह टापू जो अपराधियों के छिपने और अपराध करने का स्थल था। प्रकृति का वरदान है। राजेन्द्र जी ने उसे पर्यटन स्थल और मनोरंजन का केन्द्र बना दिया। जहां आने वाला वृद्ध सभी जाकर आनंद प्राप्त करते हैं। अनेक कार्य योजनाएं प्रगति पर है, कृष्णा राजकपूर ऑडोटोरियम जो देश के सबसे बड़े शोमैन को रीवा से जोड़ता है राजेन्द्र जी की देन है। देश के राजाओं एवं राजनेताओं को उनके चाटुकारों ने तबाह किया, सुखद है कि राजेन्द्र जी ने अपने चाटुकारों को गले नहीं लगाया, सिर पर नहीं बैठाया। उन्होंने उनकों तरजीह दी जो कुछ विजन लेकर आए। माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के परिसर की परिकल्पना लेकर पत्रकार जयराम शुक्ल आए। राजेन्द्र जी ने सबसे सुन्दर, भव्य और प्रदेश का सर्वोत्तम पत्रकारिकता विश्वविद्यालय परिसर दिया।

रीवा के विकास के मायने हैं राजेन्द्र जी की कर्मठता, सपनों को मूर्त करने का भागीरथी संकल्प। इस डेढ़ पसली के आदमी के सामने रीवा के पिछले और वर्तमान के भरे पूरे जनप्रतिनिधि कैसे दिखते हैं यह इस क्षेत्र की जनता और परदेश गये रीवा वासी जानते समझते और महसूस करते हैं। वे दीर्घजीवी हों, यही हम सबकी दुआ है।

(लेखक: लोक संस्कृति के ख्यातिलब्ध अध्येता व साहित्यकार हैं)