राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी: जुबां पर आ ही गया शिवराज का दर्द

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राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी: जुबां पर आ ही गया शिवराज का दर्द

मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का दर्द भी वाजिब है। हाल ही में संपन्न नगरीय निकाय चुनाव में नतीजे भाजपा के पक्ष में करने के लिए मुख्यमंत्री सहित भाजपा के नेताओं ने नतीजा अपने पक्ष में करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। लेकिन धार जिले में पार्टी को करारी शिकस्त खाना पड़ी।

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पिछले दिनों संपन्न भाजपा की प्रबंध समिति की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री का दर्द फूट पड़ा। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष जी हम धार में चुनाव अपनों के कारण ही हारे। यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि कहां, कैसे उम्मीदवार खड़े कर अधिकृत उम्मीदवारों को शिकस्त दिलवाई गई। वे यहीं नहीं रुके बोले अध्यक्ष जी ऐसे लोगों के खिलाफ तो कड़ी कार्रवाई करिए। देखते हैं जो सीएम ने कहा उसका कितना असर संगठन पर पड़ता है।

 *विस्तार नड्ढा को मिला, संभावना वीडी को दिखने लगी* 

राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्ढा के कार्यकाल को विस्तार मिलने के बाद अब प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को भी अपने पक्ष में अच्छी संभावना दिखने लगी है। शर्मा का तीन साल का कार्यकाल भी समाप्त होने वाला है और नए अध्यक्ष को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है। एक-दो केंद्रीय मंत्रियों से लेकर पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं के साथ ही प्रदेश के कुछ दिग्गजों के नाम भी नए अध्यक्ष के रूप में चर्चा में आ गए हैं।

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इनमें से कुछ दिल्ली दरबार की पसंद भी बताए जा रहे हैं। हालांकि इस सबसे कोई वास्ता न रखते हुए संघ के दिग्गजों का वरदहस्त प्राप्त शर्मा यह मानकर चल रहे हैं कि मध्यप्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते ही होंगे।

 *सिंधिया का ठप्पा नहीं, परफार्मेंस से होगा टिकट का फैसला* 

2023 में फिर से सत्ता पाने के लिए भाजपा की जो मशक्कत चल रही है वह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक, मंत्रियों और विधायकों के लिए परेशानी का बड़़ा कारण बन सकती है।

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अभी तक सिंधिया के ठप्पे पर टिकट हासिल करने वाले मंत्रियों और विधायकों को यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि अब मंत्रियों की उम्मीदवारी का फैसला परफार्मेंस और विधायकों के टिकट का फैसला पार्टी के सर्वे के आधार पर होगा। अभी जो हालात हैं उसमें इस खेमे के चार मंत्री और आधा दर्जन से ज्यादा विधायक उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर निकलते नजर आ रहे हैं। देखना है इनकी उम्मीदवारी के मामले में इस बार सिंधिया का जोर कितना चल पाता है।

 *हकीकत तो प्रवीण कक्कड़ ही बता पाते हैं*

कमलनाथ के दरबार में इंदौर के कई नेता अहम भूमिका में हैं। चंद्रप्रभाष शेखर, सज्जन सिंह वर्मा, शोभा ओझा, केके मिश्रा की राय को अलग-अलग मामलों में तवज्जो दी जाती है। किसको कहां उठाना, कहां नीचे लाना और कितना सुनना इस कला में कमलनाथ बेजोड़ हैं।

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लेकिन इन सबसे हटकर प्रवीण कक्कड़ का मामला है। इसका भी कारण है। जब भी इंदौर के किसी मामले में निष्पक्ष आकलन की बात आती है तो फिर कक्कड़ ही तलब किए जाते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि उनका फीडबैक किसी पूर्वाग्रह या दुराग्रह से परे सिर्फ कांग्रेस का हित और हकीकत बताने वाला होता है।

 *अब ये मजबूती से हमारी बात आगे बढ़ाते हैं* 

कांग्रेस से भाजपा में जाने का सिलसिला तो लंबे समय से चल रहा है, लेकिन कमलनाथ के मीडिया सलाहकार की भूमिका छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नरेन्द्र सलुजा को जो तवज्जो मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष दे रहे हैं, उससे कइयों को जलन होना स्वाभाविक है।

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पिछले दिनों प्रवासी भारतीय सम्मेलन के दौरान जब मुख्यमंत्री फ्रेंड्स ऑफ एमपी के कार्यक्रम में पहुंचे और वहां उनकी नजर सलुजा पर पड़ी तो उन्होंने उन्हें मंच पर बुलाया, वहां मौजूद लोगों से उनका परिचय करवाया और पीठ थपथपाते हुए बोले यह हमारे प्रवक्ता हैं और बहुत मजबूती से हमारी बात को आगे बढ़ाते हैं।

 *तब बचे तो अब फंसे संजय चौधरी* 

अपनी पूरी नौकरी के दौरान संजय चौधरी ज्यादातर मलाईदार पदों पर रहे। इन पदों का दोहन करने में भी उन्होंने और उनके परिजनों ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। जब वे प्रदेश के खेल संचालक थे, तब भी एक बड़ा घोटाला हुआ था और इसके सारे प्रमाण कागजों पर भी आ गए थे। विधानसभा में भी यह मामला गूंजा था और लोकायुक्त तक भी शिकायत पहुंची थी, लेकिन तब चौधरी ने अपने संबंधों का फायदा उठाते हुए मामले को दबवा दिया था। मामले दबे जरूर लेकिन दफन नहीं हुए और जैसे ही चौधरी रिटायर हुए उनके कारनामों के कागज अलग-अलग जगह दस्तक देने लगे। एक सेवानिवृत्त पुलिस अफसर ने चौधरी के मामले में बिलकुल सटीक टिप्पणी करते हुए कहा कि इन्होंने हमेशा अपने पद और पावर का उपयोग भ्रष्टाचार के लिए किया।

 *चलते-चलते* 

नर्मदा जयंती के दिन वी डी शर्मा के गले में हाथ डालकर जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान ने मां नर्मदा का अभिवादन किया उसके बाद कईयों का चौंकना स्वाभाविक है।

मालवा के एक जिले में अपर कलेक्टर रहने के बाद कुछ महीने पहले ही एक जिले की कमान संभालने वाले कलेक्टर का अपने ही जिले की एक महिला अधिकारी के साथ छुट्टियां मनाने गोवा पहुंचना इन दिनों प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले में घर का भेदी लंका ढहाए की तर्ज पर ही काम हुआ है। जिस व्यक्ति के जिम्मे तमाम व्यवस्थाएं थी, वही इस गोवा ट्रिप को प्रसारित करने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया।

 *पुछल्ला* 

इसे संयोग तो नहीं दुर्योग ही कहा जाएगा। धार जिले की राजनीति में कद्दावर नेता विक्रम वर्मा की कभी भी पार्टी के ही जिलाध्यक्ष से नहीं पटी। प्रभु राठौर से लेकर राजीव यादव तक अध्यक्षों की लंबी फेहरिस्त है, जो पहले वर्मा के खास सिपहासालार रहे और बाद में उनके धुर विरोधी हो गए। वैसे वर्मा के बारे में भी अब पार्टी में यह कहा जाता है कि वे केवल एक विधानसभा क्षेत्र यानि धार के नेता होकर रह गए हैं। पीथमपुर में भाजपा की हार भी वर्मा के लिए करारा झटका है।

 *बात मीडिया की* 

बिना सुधीर अग्रवाल की जानकारी के उनके निजी स्टाफ के एक व्यक्ति ने सुधीर जी के किसी परिचित को कोई काम बता दिया। काम करने के बाद जब कम्प्लांस के तौर पर संबंधित व्यक्ति ने सुधीर जी को ही फोन लगा दिया तो उनका चौंकना स्वाभाविक था। उसे तत्काल दफ्तर बुलवाया, स्टॉफ के व्यक्ति से रूबरू करवाया और फिर स्टॉफ को यह हिदायत देते हुए दायित्वविहीन कर दिया कि अब तुम यहां बस बैठे रहो।

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