राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी:
विस्तार की आहट- संघ और सिंधिया के पसंदीदा मंत्री है निशाने पर
दिसंबर का दूसरा पखवाड़ा आते-आते प्रदेश के कई मंत्रियों की किस्मत का फैसला हो जाएगा। मंत्रिमंडल विस्तार की आहट के बीच अलग-अलग स्तर पर हुई एक्सरसाईज के बाद भाजपा के कोर ग्रुप के सामने परिदृश्य स्पष्ट हो चुका है और गुजरात व हिमाचल के नतीजों के बाद विस्तार आकार ले सकता है।
चौंकाने वाली जानकारी यह सामने आ रही है कि जिन मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना है, उनमें से कुछ को संघ की पसंद पर और कुछ सिंधिया की सिफारिश पर मंत्री बनाए गए थे। मजेदार बात यह है कि नए मंत्रियों के रूप में जिन्हें मौका मिलना है, उनमें से ज्यादातर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के खासमखास बताए जा रहे हैं। यानि यहां भी फायदे में शिवराज ही रहेंगे।
अब भाजपा कांग्रेस दोनों के निशाने आदिवासी वोट और 60 सीटे
चुनावी साल में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने आदिवासी मतों को साधने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। यह सब उस स्थिति में करने पड़ रहा है, जब पिछले 18 साल से प्रदेश में भाजपा की सरकार है और इसके पहले कांग्रेस सालों तक सत्ता में रह चुकी है।
दरअसल सत्ता में रहते हुए चाहे कांग्रेस हो या भाजपा किसी का भी ध्यान इस वर्ग के लोगों की ओर नहीं रहता है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाते हैं, यह वर्ग दोनों दलों के लिए माई-बाप की भूमिका में आ जाता है। कारण साफ है, प्रदेश की 60 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका रहते हैं और ये जिसका साथ दे देते हैं, उसी की सरकार बन जाती है। दोनों दलों की ताजा कवायद भी इसी का हिस्सा है।
75 पार का मामला, जटिया के बोल वचन के बाद फिर नई बहस
बमुश्किल भारतीय जनता पार्टी की मुख्यधारा की राजनीति में आप पाएं सत्यनारायण जटिया एक तरह से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को ही चुनौती देते नजर आ रहे हैं। 75 पार के ज्यादातर नेताओं से मुक्ति पा रही भाजपा में जटिया के उस बयान के बाद फिर गहमागहमी शुरू हो गई है जिसमें वे यह बोल गए थे कि ऐसा कोई फैसला पार्टी में हुआ नहीं है। प्रतिक्रिया सबसे पहले कुसुम महेदेले की आती और वे बोली यदि ऐसा नहीं है तो फिर मेरा टिकट क्यों काटा गया।
स्वाभाविक है कमलनाथ का दर्द, ऊपर पाट, नीचे सपाट जैसे हालात है कांग्रेस में
कमलनाथ का दर्द स्वाभाविक है। उम्र के इस पड़ाव पर भी कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में जो मेहनत वे कर रहे हैं, उसकी कांग्रेस के दिग्गज भी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। लेकिन नीचे यानि जिला, शहर और ब्लाक स्तर पर सपाट जैसी स्थिति है।
जब जिले और शहर के अध्यक्ष कमलनाथ के सामने बैठते हैं तो हां में हां मिलाते हुए यह संदेश देते हुए नजर आते हैं कि जैसा प्रदेश कांग्रेस ने कहा था, वैसा ही उन्होंने कर दिया। हकीकत इसके विपरीत रहती है, यही कारण है कि पिछले दिनों इंदौर में होने वाला संभाग के जिलों के सेक्टर, मंडलम के पदाधिकारियों का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। इसकी तैयारी में लगे नेताओं को जब पता चला कि सारी कवायद कागजों पर हुई है, तो उन्होंने कमलनाथ से ही कहकर इसे निरस्त करवाया।
विक्रांत युवक कांग्रेस को मजबूत करने में लगे, वानखेडे पदाधिकारी बंनवाने में जुटे
मध्य प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ विक्रांत भूरिया भले ही संगठन को मजबूत करने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं लेकिन उनके सामने लड़कर अध्यक्ष का चुनाव हारे आगर के विधायक विपिन वानखेड़े उन्हें कमजोर करने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं।
युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष से अपनी नजदीकी का फायदा उठाकर वानखेडे इन दिनों सीधी नियुक्तियां करवा रहे हैं। इनमें ज्यादातर वे लोग हैं जो वानखेड़े के एनएसयूआई का प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए उनके सहयोगी की भूमिका में थे। यह पदाधिकारी विक्रांत के लिए परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं।
पलड़ा फिर सुलेमान की तरफ ही झुक रहा है
किस्मत हो तो मोहम्मद सुलेमान जैसी। हालांकि मध्यप्रदेश के नए मुख्य सचिव को लेकर अभी भी असमंजसता बरकरार है। अभी सारे विकल्प खुले हुए हैं, लेकिन ‘सरकार’ के खास अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान फिर फायदे में रह सकते हैं।
खबर यह आ रही है कि मुख्य सचिव पद के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे अनुराग जैन को केंद्र सरकार छोडऩा नहीं चाहती। वर्तमान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को सेवावृद्धि मिलने की संभावना भी नगण्य होती जा रही है। इस सबमें फायदा सुलेमान का ही होना है। हालांकि जे.एन. कंसोटिया ने समिधा में दस्तक देने के बाद यह मानकर चल रहे हैं कि किस्मत उनका साथ दे सकती है, क्योंकि चुनावी साल में एससी, एसटी भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर हो गया है।
अब पुलिस में बड़े बदलाव की आहट, कई आईजी और एसपी निशाने पर
आईएएस अफसरों के बड़ी संख्या में तबादले के बाद अब आईपीएस अफसरों की बारी है। कई आईजी और डीआईजी का बदलना तय है। डीआईजी बनने के कगार पर खड़े कई एसएसपी बड़े रेंज में भेजे जा रहे हैं। रेंज में पदस्थ एडीजी और आईजी भी निशाने पर है। इनका स्थान पाने के लिए पीएचयू में बैठे कई अफसर भी सक्रिय हो गए हैं। जिलों में एसपी बनने वालों की तो लंबी सूची है और इसी कारण निर्णय भी नहीं हो पा रहा है। इस सबके बीच सबसे ज्यादा चर्चा इंदौर के नए पुलिस कमिश्नर को लेकर है। देखते हैं किसे मिलता है मौका।
चलते-चलते
कमलनाथ की मौजूदगी में हुए स्वप्निल कोठारी के सफल और गरिमामय आयोजन के बाद अब सत्यनारायण पटेल अपनी ताकत दिखाने के लिए राहुल गांधी की मौजूदगी में बड़ा कार्यक्रम करना चाह रहे हैं। हालांकि पटेल ने प्रदेश के प्रभारी जे.पी. अग्रवाल की मौजूदगी में जो यात्रा निकाली थी, वह बुरी तरह विफल रही थी।
पुछल्ला
नए कलेक्टर इलैया राजा टी. पर दोहरी चुनौती है। उन्हें अपनी प्रशासनिक पकड़ तो दिखाना ही है, लेकिन खुद को एक अच्छा मैनेजर भी साबित करना है। इंदौर कलेक्टर के लिए यह एक अतिरिक्त योग्यता जैसा मामला है। कठिन दौर में अपने मैनेजमेंट के बूते पर ही निवर्तमान कलेक्टर मनीष सिंह पूरे प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हुए थे।
बात मीडिया की
अलग-अलग भूमिका में रहते हुए दैनिक भास्कर के म.प्र. संस्करणों में लंबे समय से मनमानी कर रहे अवनीश जैन की रवानगी का बड़ा कारण उस खबर को माना जा रहा है, जिसे भोपाल संस्करण की संपादक उपमिता वाजपेयी की जानकारी के बिना जैन ने पहले पन्ने पर छपवाने की कोशिश की थी। इसमें सफल नहीं होने पर वे वाजपेयी को तेवर दिखाने लगे थे और यही तेवर उन्हें भारी पड़ गए।
नई दुनिया के स्टेट एडिटर सद्गुरु शरण अवस्थी और अभी द सूत्र में
इंदौर प्रभारी की भूमिका देख रहे सीनियर रिपोर्टर संजय गुप्ता की लगातार मुलाकात नई दुनिया की रिपोर्टिंग टीम के बीच चर्चा का विषय बन चुकी है।
एक समय जिस नई दुनिया में नौकरी के लिए नए पुराने पत्रकारों की कतार लगी रहती थी उस अखबार को अब तमाम कोशिशों के बावजूद अच्छे रिपोर्टर और सब एडिटर मिल नहीं रहे हैं। आने वाले समय में प्रेम जाट और विनय यादव नई दुनिया की रिपोर्टिंग टीम का हिस्सा हो सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार पंकज भारती और डेस्क के वरिष्ठ साथी मनोज दुबे टीम मातरम इंडिया का हिस्सा हो गए हैं। पंकज दैनिक भास्कर, पत्रिका और नईदुनिया में भी सेवाएं दे चुके हैं। मनोज भी नईदुनिया और भास्कर सहित कई अखबारों में रह चुके।
दैनिक स्वदेश की तकनीकी शाखा यानि कम्प्यूटर विंग अब नई टीम के जिम्मे हो गई है। लंबे समय से यह काम अश्विनी खरे और चंद्रेश गौड़ की टीम संभाल रही थी।