Rajwada-2-Residency
सिस्टम ने परेशान कर रखा है नब्ज पकडऩे वाले शिवराज को
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, अपने चित-परिचित अंदाज में मुख्यमंत्री नौकरशाही के खिलाफ मुखर होते जा रहे हैं। दरअसल शिवराज बड़े चतुर नेता हैं, वे जनता की नब्ज को पकडऩे में माहिर हैं। अलग-अलग स्तर से उन तक जो फीडबैक पहुंच रहा है, वह यह बता रहा है कि जनता सरकारी तंत्र से त्रस्त हो चुकी है।
बिना ‘सिस्टम’ के कोई काम नहीं हो पा रहे हैं। इससे लोगों में सरकार को लेकर आक्रोश पनपता जा रहा है और इसका खामियाजा भाजपा को ही उठाना पड़ेगा। यही कारण है कि शिवराज जहां भी जा रहे हैं, अफसरों को मंच पर ही बुलाकर वन-टू-वन करते हैं, जनता के सामने ही फटकारते हैं और हाथों-हाथ निलंबित भी कर डालते हैं।
आखिर क्यों फटी रह गई भाजपा के दिग्गजों की आंखें
‘सिस्टम’ की बात इन दिनों मध्यप्रदेश में हर जगह है। यह सिस्टम कई मंत्रियों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। जो फीडबैक भारतीय जनता पार्टी के सहसंगठन महामंत्री अजय जामवाल तक पहुंचा है, उसके दिल्ली पहुंचने के बाद म.प्र. में एक बार फिर अपनी सरकार बनने का सपना देख रहे भाजपा के दिग्गजों की आंखें फटी रह गई हैं।
प्रदेश मंत्रिमंडल के दो दर्जन से ज्यादा मंत्री अपने परिजन और स्टॉफ के माध्यम से जमकर वसूली कर रहे हैं। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि मंत्रियों में पैसा कमाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। हर काम के रेट फिक्स है, फर्क सिर्फ इतना है कि पहले जहां एक लाख रुपए लगते थे, वहीं अब पांच लाख रुपए देना पड़ रहे हैं।
देखते हैं कितने दिन चल पाती है हितानंद की संवादहीनता
एक ओर जहां अजय जामवाल मंडल स्तर तक जाकर कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा संवादहीनता की स्थिति में हैं। प्रदेशभर से भोपाल पहुंचने वाले भाजपा नेता और कार्यकर्ता इस संवादहीनता से सबसे ज्यादा परेशान हैं।
अरविंद मेनन, माखनसिंह और सुहास भगत के दौर में संगठन महामंत्री तक कार्यकर्ताओं की सीधी पहुंच थी और जो भी मुद्दे वे उठाते थे, उनका किसी न किसी स्तर से निराकरण हो जाता था। अब निराकरण तो दूर सुनवाई ही नहीं हो पा रही है। देखते हैं यह कितने दिन चल पाता है।
गहलोत राजस्थान तो कमलनाथ भी मध्यप्रदेश छोडऩा नहीं चाहते हैं
अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से लगभग बाहर होने के बाद फिर सबकी निगाहें कमलनाथ पर हैं। नेहरू-गांधी परिवार के प्रिय पात्र कमलनाथ अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए इसलिए सबसे मजबूत दावेदार के रूप में सामने आ रहे हैं, क्योंकि उन्हें सोनिया गांधी पसंद कर रही हैं, पर यहां भी राजस्थान जैसा ही मामला है।
दरअसल, यह माना जा रहा है कि 2023 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए थोड़ी ठीक संभावना है। कमलनाथ चुनावी चौसर बिछा चुके हैं, ऐसे में क्या वे मध्यप्रदेश छोड़कर दिल्ली में कांग्रेस का नेतृत्व करना पसंद करेंगे। हालांकि मध्यप्रदेश छोडऩे से इन्कार तो वे पहले भी कई मौकों पर कर चुके हैं।
कमरे में बैठने के बजाय मैदान में सक्रियता दिखा रहे हैं जेपी
कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल और भाजपा की कमान संभालने वाले अजय जामवाल ने एक समानता तो दिख रही है। दोनों कमरे में बैठकर आकलन करने की बजाय मैदान में ज्यादा समय दे रहे हैं। दिल्ली से तीन बार सांसद रह चुके अग्रवाल इन दिनों मध्यप्रदेश का सघन दौरा कर रहे हैं, बजाय भाषणबाजी और भीड़भरी बैठकों के वे पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के घर पहुंचकर उनसे संवाद कर रहे हैं। अग्रवाल को भी जो फीडबैक मिल रहा है, वह यही संकेत दे रहा है कि जिन्हें पार्टी ने मौका दिया, वे ठीक से काम नहीं कर पाए और जिन्हें मौका नहीं मिला वे इन्हें निपटाने में लगे रहे। यही खींचतान कांग्रेस के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकती है।
हार के बाद मिजाज तो बदला-बदला सा है संजय शुक्ला का
इन दिनों कांग्रेस की राजनीति में यक्ष प्रश्न यह है कि संजय शुक्ला कांग्रेस में ही रहेंगे या भाजपा में चले जाएंगे। प्रधानमंत्री के जन्मदिन के दिन अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों के साथ अयोध्या यात्रा पर जाने के पहले शुक्ला ने जो कुछ कहा उसके बाद इंदौर से दिल्ली तक यह हवा चल पड़ी कि वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा रहे हैं। सोशल मीडिया ने इस हवा को और गति दे दी। अलग-अलग स्तर पर पूछ-परख शुरू हुई और आखिरकार यात्रा से लौटने के बाद शुक्ला को स्पष्ट करना पड़ा कि वे कहीं नहीं जाएंगे, कांग्रेस में ही रहेंगे। वैसे नगर निगम चुनाव के बाद शुक्ला का मिजाज थोड़ा बदला-बदला सा तो है।
मुख्य सचिव का पद और विनोद कुमार और कंसोटिया की दावेदारी
अनुराग जैन और मोहम्मद सुलेमान के साथ मुख्य सचिव पद के लिए डॉ. राजेश राजौरा और एस.एन. मिश्रा का नाम सामने आना तो स्वाभाविक है, लेकिन विनोद कुमार और जे.एन. कंसोटिया जैसे अफसर भी मुख्य सचिव बनने के सपने देखने लगे हैं, यह कम चौंकाने वाला नहीं है। वैसे सपना देखने में कुछ गलत नहीं है। दोनों के लिए जमकर लॉबिंग भी हो रही है। वैसे केंद्रीय वाणिज्य सचिव पद पर जैन की ताजपोशी न होना, मध्यप्रदेश में उनके लिए अच्छी संभावना का संकेत माना जा रहा है।
चलते-चलते
अतिउत्साह और सबसे आगे रहने की आदत कभी-कभी सांसद शंकर लालवानी के लिए परेशानी का कारण बन जाती है। शास्त्री ब्रिज के मामले में महापौर और पार्टी के विधायकों व पदाधिकारियों से सलाह लिए बिना घोषणा करना उनके लिए जी का जंजाल बन सकता है। यह ठीक वैसा ही है, जब जनकार्य समिति का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने अपने मन की करके राजवाड़े के सामने की सड़क बंद करवा दी थी, जिसे बाद में तत्कालीन महापौर डॉ. उमा शशि शर्मा ने अपने सामने बुलडोजर चलवाकर खुलवाया था।
पुछल्ला
जूना पीठाधिश्वर अवधेशानंद गिरिजी और गौड़ परिवार यानि विधायक मालिनी गौड़ और उनके बेटे एकलव्य गौड़ के संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे। पिछले दिनों जूना पीठाधिश्वर की इंदौर यात्रा के दौरान गौड़ परिवार उपेक्षित सा रहा। संबंधों में खटास का कारण जूना पीठाधिश्वर के आग्रह के बावजूद नगर निगम चुनाव में राजसिंह गौड़ को मौका नहीं दिया जाना माना जा रहा है। गौरतलब है कि विधायक एवं उनके पुत्र की इन दिनों लोकेंद्रसिंह राठौर और राजसिंह से पटरी नहीं बैठ रही है। अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी ही।
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बात मीडिया की
– नईदुनिया इंदौर का एक बड़ा विकेट डाउन हो गया। सालों से इस संस्थान में पहले रिपोर्टर और बाद में सिटी चीफ के रूप में सेवाएं देने वाले धुरंधर पत्रकार अभिषेक चेंडके ने संस्थान को अलविदा कह दिया है। उनका अगला मुकाम कहां होगा, इस पर सबकी नजर है। हमने नईदुनिया में मची उथल-पुथल के संकेत पहले ही दे दिए थे।
– करीब डेढ़ साल के अंतराल के बाद अनुप्रिया ठाकुर की सिटी भास्कर में वापसी हो गई है। उन्हें यहां लाने में सिटी भास्कर की हेड अंकिता जोशी की अहम भूमिका रही है। अनुप्रिया के साथ ही मुक्ता भावसार भी दावेदार थी, लेकिन अंकिता की पसंद के कारण अनुप्रिया बाजी मार गई।
– स्वदेश इंदौर में बड़े बदलाव की खबर है। अभी प्रबंध संपादक का दायित्व संभाल रहे विवेक गौरे अब रेवा प्रकाशन के चेयरमैन हो गए हैं। ग्वालियर से आए यशवर्धन जैन अब प्रबंध संपादक की भूमिका में रहेंगे।
– पत्रिका में एक बड़ा आंतरिक बदलाव हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार नीतेश पाल अब पत्रिका के सांध्य संस्करण न्यूज टुडे में सेवाएं देंगे, जबकि यहां सेवाएं दे रहे वरिष्ठ साथी अनिल धारवा अब मुख्य अखबार पत्रिका का हिस्सा हो गए हैं।
– नईदुनिया इंदौर की रिपोर्टिंग टीम के एक मजबूत साथी देवेन्द्र मीणा ने भी संस्थान को अलविदा कहने का निर्णय ले लिया है। वे संभवत: दैनिक भास्कर डिजिटल का हिस्सा हो सकते हैं।
– कुछ दिन पहले ही हुई दैनिक भास्कर की सालाना पावर पार्टी में संपादकीय टीम के कुछ ही लोगों को तवज्जो मिल पाई। बाकी लोग क्यों पीछे रह गए यह कोई समझ नहीं पा रहा है। वैसे निमंत्रण देने में तो सभी की सक्रियता रही।