राजवाड़ा-टू-रेसीडेंसी: फिलहाल तो ‘सरकार’ फुलफार्म में है

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राजवाड़ा-टू-रेसीडेंसी: फिलहाल तो ‘सरकार’ फुलफार्म में है

-अरविंद तिवारी

 *फिलहाल तो ‘सरकार’ फुलफार्म में है* 

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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने मध्यप्रदेश की सियासत को गरमा दिया है। नतीजों के बाद मध्यप्रदेश में ‘सरकार’ की विदाई की बाट जोह रहे कई दिग्गजों को अब अपनी चिंता होने लगी है। निकट भविष्य में मंत्रिमंडल का फेरबदल तय है और इस फेरबदल में ‘सरकार’ हिसाब बराबर करने की स्टाइल में रहे तो चौंकने की जरूरत नहीं है। जो लोग उनके मिजाज को जानते हैं, वे यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि ‘सरकार’ को हल्का समझने वाले मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान या तो खुद हल्के हो जाएंगे या फिर भूतपूर्व की श्रेणी में आ जाएंगे। देखते हैं कौन किस पर भारी पड़ता है। फिलहाल तो ‘सरकार’ फुलफार्म में है।

*ठाकुर के हाथ फिर बंध गए हैं* 

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सालों पहले इंदौर में ही तब के मुख्यमंत्री की मौजूदगी में कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि ठाकुर के हाथ बंधे हुए हैं। लगभग 20 साल बाद फिर ऐसी स्थिति बनती नजर आई है। चार मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर चुके विजयवर्गीय इस बार बहुत ही असहाय नजर आ रहे हैं। परेशानी तो उन्होंने बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते भी महसूस की थी, लेकिन इस बार जो स्थिति है, उसमें वे ज्यादा परेशान नजर आ रहे हैं। हालात कुछ ऐसे हैं कि न निकलते बन रहा और न उगलते बन रहा है। खुद के विभाग में भी वे असहज हैं और मुख्यमंत्री के प्रभार के जिले इंदौर में अपनी मजबूती दिखाने के लिए कुछ तो सक्रियता दिखाना पड़ रही है।

*प्रभारी मुख्यमंत्री, फिर भी नुकसान में इंदौर* 

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मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इंदौर के प्रभारी हैं और जिस हिसाब से उनका इंदौर आना-जाना लगा रहता है, उससे तो ऐसा लगता है कि उज्जैन की बजाय इंदौर उन्हें ज्यादा रास आ रहा है। इधर, इंदौर की अपनी व्यथा है, प्रभारी तो मुख्यमंत्री हैं, पर शहर से जुड़े मामलों में गाड़ी पटरी से नीचे उतरती जा रही है। महीनों से जिला योजना समिति की बैठक नहीं हुई, सालभर से मेट्रो का मामला उलझा हुआ है। स्मार्ट सिटी के काम पैसे के अभाव में ठप्प पड़े हुए हैं। दो कैबिनेट मंत्री इसलिए इंदौर के मामलों में ज्यादा दखल नहीं देते क्योंकि मामला मुख्यमंत्री के प्रभार के जिले का है। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री के प्रभारी होने के बावजूद इंदौर तो नुकसान में ही है।

*सिंधिया : दिल्ली में असीमित – मध्यप्रदेश में सीमित* 

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दिल्ली में जबरदस्त सक्रियता के बीच मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा अपना दायरा सीमित करने की इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में बड़ी चर्चा है। कभी पूरे प्रदेश में सक्रिय रहने वाले सिंधिया इन दिनों गुना, शिवपुरी और अशोकनगर तक ही सीमित हैं। ग्वालियर में उनकी सक्रियता कभी-कभार रहती है। आखिर ऐसा क्यों? दरअसल कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया के पीछे भाजपा के कुछ दिग्गज हाथ धोकर पड़ गए हैं। इन नेताओं ने दिल्ली और भोपाल को यह जंचा दिया है कि यदि सिंधिया मध्यप्रदेश में ज्यादा सक्रिय रहे तो इसका नुकसान सरकार को उठाना पड़ सकता है। यही जंचत सिंधिया को भारी पड़ रही है और ज्यादा नुकसान से बचने के लिए वे इन दिनों मध्यप्रदेश के बजाय दिल्ली में ज्यादा सक्रिय हैं।

*पचमढ़ी में पटवारी की खिलाफत* 

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कांग्रेस के जिलाध्यक्षों के पचमढ़ी में 10 दिनी समागम ने मध्यप्रदेश के कुछ नेताओं की महीनों पुरानी मुराद पूरी कर दी। ये नेता कई दिनों से राहुल गांधी से मिलने का समय मांग रहे थे, पर मौका नहीं मिल रहा था। जिलाध्यक्षों से रूबरू होने जब राहुल पचमढ़ी पहुंचे और समय मिलने पर वरिष्ठ नेताओं से मिले तो ज्यादातर ने मन की बात कह ही दी। इसका लब्बोलुआब यह था कि हमारी तो सुनते नहीं, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को दरकिनार कर दिया, पुराने नेताओं को साईड लाइन कर रहे हैं। राहुल ने सबको तसल्ली से सुना पर बोले कुछ नहीं। पटवारी इस सबसे बेफिक्र से हैं और उनके समर्थक कह रहे हैं कि यह सब दिल्ली के इशारे पर हो रहा है।

*मध्यप्रदेश वापस आएंगे यादव* 

इंदौर में एसपी रहे अंशुमान यादव सीआरपीएफ में सात साल की प्रतिनियुक्ति पूरी करने के बाद इसी साल मध्यप्रदेश लौट आएंगे। सीआरपीएफ में रहते हुए वीवीआईपी सिक्युरिटी के प्रभारी रहे यादव की गिनती उन अफसरों में होती है, जो नियम-कायदे के पक्के हैं और सीधे काम से वास्ता रखते हैं। कामकाज की उनकी शैली जितनी शिवराजसिंह चौहान को पसंद थी, उतनी ही कमलनाथ को। यही कारण है कि चौहान के दौर में वे इंदौर सहित चार जिलों के एसपी रहे और कमलनाथ के दौर में रीवा और ग्वालियर के आईजी। अब एडीजीपी के रूप में उन्हें क्या भूमिका मिलती है, उस पर सबकी नजर है।

 *नया नियम करवाएगा देउस्कर की वापसी* 

मध्यप्रदेश काडर के शांत, सौम्य और शालीन आईपीएस अफसर मकरंद देउस्कर अगले साल मध्यप्रदेश वापस आ सकते हैं। दो साल पहले इंदौर में पुलिस कमिश्नर रहते हुए ही वे बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली गए थे। राजस्थान और आसाम में कुछ महीने बिताने के बाद उन्हें बीएसएफ ने बहुत अहम माने जाने वाले आईजी (कार्मिक) के पद पर पदस्थ किया गया। पूरे पांच साल दिल्ली रहने के मूड से गए देउस्कर को केंद्र सरकार के एक नए नियम के चलते समय पूरा होने के पहले ही मध्यप्रदेश आना पड़ सकता है। नया नियम यह है कि जिस भी अफसर ने एसपी या डीआईजी के रूप में पहले दिल्ली में काम नहीं किया है, उनका एडीजी पद पर इम्पेनलमेंट वर्तमान पद पर तीन साल पूरा होने के बाद ही हो पाएगा। अब भला एडीजीपी बन चुका कोई अफसर भला आईजी क्यों रहना पसंद करेगा।

पुछल्ला

18 नवंबर को कमलनाथ के जन्मदिन पर बधाई देने भोपाल पहुंचे कांग्रेस के नेता प्रवीण कक्कड़ को ज्यादा सक्रिय न देख चौंक गए। उनकी मौजूदगी लगभग गैर-मौजूदगी जैसी ही दर्ज हुई।

 

*चलते-चलते*

मध्य प्रदेश के कई आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जाने की कतार में है। देखते हैं मौका किसको मिलता है।

*अब बात मीडिया की*

– नई दुनिया के राज्य संपादक सतगुरु शरण अवस्थी और दैनिक जागरण बनारस के संपादक संजय मिश्रा अब समधी हो गए हैं। अवस्थी के बेटे का विवाह मिश्रा की बिटिया के साथ पिछले दिनों लखनऊ में संपन्न हुआ।

– भास्कर डिजिटल में अलग-अलग स्तर पर बड़े बदलाव की सूचना है। इसमें इंदौर के कुछ रिपोर्टर भी प्रभावित हो सकते हैं। भास्कर इन दिनों अपने डिजिटल सेक्शन पर बहुत फोकस कर रहा है।

– द सूत्र में कुछ समय रिपोर्टर की भूमिका में रहे विश्वनाथ सिंह पीपुल्स समाचार में रिपोर्टर की भूमिका में आ गए हैं। उनके साथ ही द सूत्र ज्वाइन करने वाली रीना शर्मा इन दिनों अग्निबाण में सेवाएं दे रही हैं।

– वरिष्ठ पत्रकार हेमंत उपाध्याय के सेवानिवृत्त होने के बाद अभी तक डिजिटल सेक्शन में सेवाएं दे रहे वरिष्ठ साथी अरविंद दुबे अब नईदुनिया इंदौर में इनपुट हेड की भूमिका में आ गए हैं।

– मुख्यमंत्री के बड़े भाई नंदलाल यादव उज्जैन प्रेस क्लब के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए।