अरविंद जोशी: एक गुमनाम और बदनाम मौत

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अरविंद जोशी नहीं रहे,लेकिन उनके बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया.आखिर एक बदनाम आदमी के बारे में कौन लिखे ? बदनाम आदमी के बारे में लिखने से लिखने वाले की बदनामी का अंदेशा जो होता है ,लेकिन मुझे अरविंद जोशी के बारे में लिखने में कोई खतरा नहीं दिखाई देता .सचमुच प्रदेश के एक पूर्व आईएएस की गुमनाम और बदनाम मौत का दुःख मुझे है .

अरविंद जोशी को मै ही नहीं बल्कि मेरे जैसे तमाम पत्रकार बहुत अच्छे से जानते होंगे/ उनके पिता ग्वालियर में जब डीआईजी हुआ करते थे तब से मैं उन्हें जानता था .वे कविहृदय थे .मिलनसार थे .अरविंद का भाप्रसे में चयन और फिर उनका टीनू जोशी से विवाह भी मुझे याद है. उनके निजी जीवन के सुख-दुःख मुझे मालूम हैं .वे अलग-अलग भूमिकाओं में हमारे सामने रहे. मुरैना कलेक्टर से लेकर सचिवालय में बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हुए तमाम लोगों ने उन्हें देखा लेकिन उनकी तमाम प्रतिष्ठा एक दशक पहले एक छापे के साथ धूमल हो गयी .वे एक दबंग अधिकारी से एक भ्र्ष्ट ही नहीं महाभ्रष्ट अधिकारी के रूप में चर्चित हो गए .चर्चित होना बुरा नहीं होता,वे बदनाम हो गए .

मुझे याद है कि जोशी दंपति के सरकारी आवास पर आयकर विभाग का छापा 4 फरवरी 2010 को पड़ा था। इसमें 3.6 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। अगले ही दिन राज्य सरकार ने जोशी दंपति को निलंबित कर दिया था . । अरविंद जोशी देश के ऐसे पहले आईएएस अफसर हैं, जिन्हें राज्य सरकार की सिफारिश पर बर्खास्त किया गया था। आयकर विभाग से लेकर ईडी तक की जांच में उन्हें आरोपी बनाया गया था। दोनों पीटीआई-पत्नी जेल गए,जमानत पर बाहर आये लेकिन आखरी सांस तक खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाए .

जोशी दंपति को लेकर प्रवर्तन निदेशालय ने 2018 में 7.11 करोड़ रुपये की काली कमाई को सफेद करने का खुलासा किया था। दंपति ने अपने रिश्तेदारों और नजदीकी लोगों के नाम पर बीमा योजनाएं और अचल सम्पत्तियां खरीदी थी, जिसमें से अधिकांश नगदी में थी। ईडी की विज्ञप्ति के मुताबिक पीएमएलए के तहत जोशी दंपति के खिलाफ 1,552 पेज का आरोप पत्र पेश किया गया था। बर्खास्त आईएएस दंपति के साथ ही उनके तीन नजदीकी रिश्तदारों, एसपी कोहली, उनके बेटे सीमांत कोहली और एक निजी बीमा कंपनी की प्रबंधक सीमा जायसवाल पर आरोप लगाए गए थे। ईडी की जांच में सामने आया था कि जोशी ने बीमा योजनाओं में अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर तीन करोड़ से अधिक का निवेश किया है।

तमाम बदनामी के बाद भी ये अरविंद का ही जीवट था कि वे एक ओर अपने आपको निष्कलंक घोषित कराने के लिए कानूनी लड़ाइयां लड़ते रहे और दूसरी तरफ जानलेवा कैंसर से भी जूझते रहे .लोकनिंदा के बाद उनका साथ उन तमाम राजनीतिक और अराजनीतिक लोगों ने छोड़ दिया था .वे नितांत अकेले थे ,इतने अकेले कि शायद उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती .जोशी का जो सीना पहले गर्व से तना रहता था वो न जाने कहाँ खो गया .

अपने बुरे दिनों में भी वे मेरे साथ फेसबुक के जरिये जुड़े हुए थे .वे कभी सार्वजनिक रूप से मेरी पोस्ट पर प्रतिक्रिया नहीं करते थे लेकिन जो पोस्ट उनके मन को अच्छी लगती तो वे निजी तौर पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर देते .मैंने उनके बारे में अपनी पत्रिका भोपाल महानगर में जमकर लिखा लेकिन उन्होंने एक बार भी इस बारे में अपनी आपत्ति दर्ज नहीं कराई .उनके पिता का पुलिस में खासा नाम था .आयकर छापे के बाद उसपर भी आंच आयी .मुमकिन है कि अरविंद जोशी अपने कृत्य के लिए पछताते भी रहे हों किन्तु उन्होंने सारा दर्द अकेले पिया.अपने किसी राजनीतिक संरक्षक का नाम उजागर नहीं किया .

अरविंद जोशी की गुमनाम और बदनाम मौत कुछ-कुछ पूर्व मंत्री लक्ष्मी कान्त शर्मा की तरह हुयी. शर्मा भी एक गुमनाम और बदनाम मौत मरे . वे भी जेल गए .उन्होंने भी अपने राजनितिक आकाओं का नाम उजागर नहीं होने दिया .अरविंद जोशी और लक्ष्मीकांत शर्मा जैसे तमाम लोग हमारी नौकरशाही और सियासत में आज भी मौजूद हैं लेकिन बदनाम वो ही होता है जो रंगे हाथ पकड़ा जाता है .बाकी लोग ताउम्र जूझते रहते हैं ,लेकिन उन्हें शर्म नहीं आती .अरविंद जोशी में लाख बुराइयां रहीं लेकिन हजार विशेषताएं भी थीं जो बुराइयों की आग में जलकर भस्म हो गयीं. वे न अच्छे पुत्र साबित हो पाए और न अच्छे पति ,अच्छे पिता होते हुए भी वे अपने पीछे छोड़ गए बदनामियों के काले बादल .

अपने चार दशक से भी अधिक के कार्यकाल में मैंने तमाम अरविंद जोशी और लक्ष्मीकांत शर्मा देखे हैं लेकिन सबका अंत वैसा नहीं हुआ जैसा अरविंद जोशी और लक्ष्मीकांत शर्मा का हुआ .इन दोनों का अंत नौकरशाही और सिआयासत में काम करने वाले उन तमाम लोगों के लिए सबक है जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित नहीं कर पाते और एक बार गलत रास्ते पर जाते हैं तो वापस नहीं लौट पाते .भले ही जिस दलदल में वे उतरते हैं उस्मने पहले से तमाम लोग ,मौजूद होते हैं .
अरविंद जोशी की गुमनाम और बदनाम मौत का मुझे रंज है ,क्योंकि मै एक लम्बे समय तक उस अरविंद जोशी को जानता था जो एक कठोर प्रशासक था,जिसकी ईमानदारी असंदिग्ध थी ,जो अप्रत्याशित रूप से भ्र्ष्टाचार के आवरण में विलुप्त हो गयी .जोशी की आत्मा को मरकर भी शान्ति मिलेगी या नहीं ,लेकिन मै चाहता हूँ कि उनकी आत्मा को शांति मिले .उन्हें इंसानों के क़ानून से ज्यादा भगवान के क़ानून ने सजा दे दी थी .काश वे जीते जी अपने आपको निर्दोष साबित कर पाते,किन्तु सब कुछ आदमी के काबू में नहीं होता .