सरकार हमेशा ही गलत नहीं करती । कभी -कभी सही भी करती है। केंद्र सरकार ने खरमास में जब तमाम शुभ काम बंद हो जाते हैं तब दो अच्छे और पुरसुकून फैसले किये है। पहला लड़कियों की विवाह की उमर 18 से बढाकर 21 करने का फैसला किया है और दुसरे आधार नंबर बच्चे के जन्म के साथ देने की व्यवस्था की जा रही है।भारत में शादी की उमर बढ़ाये जाने के विधान से जनसंख्या नियंत्रण पर आंशिक नियंत्रण पाने में मदद मिल सकती है।
भारत में बाल -विवाह एक बड़ी समस्या रही है। बाल विवाह के पीछे अनेक कारण रहे है। कुछ पुरानी मान्यताएं और कुछ परिस्थितियां। सनातनियों में विवाह के लिए लड़की का रजस्वला होना ही सबसे बड़ा पैमाना था । इसीलिए विवाह 9 ,11 और 13 वर्ष की उमर में कर दिए जाते थे ।
बाद में बाल -विवाह को लम्बे मुगलकाल ने भी बढ़ावा दिया। मेरी दादी बतातीं थीं कि उनका विवाह 9 वर्ष की उमर में हुआ थ। उनकी 05 संतानें थीं। बाल विवाह के कारण पिछली सदी में परिवारों में एक दर्जन बच्चों की पैदाइश आम बात थी। िनमने से कुछ बच्चे मुपोषण की भेंट चढ़ जाते थे और कुछ जीवित रहते थे। तब बच्चे भगवान की देन थे।
बढ़ती जनसंख्या को नाथने के अनेक उपाय कालांतर में किये जाते रहे हैं,उनके सुफल भी हासिल हुए हैं लेकिन उन्हें बहुत प्रभावी नहीं माना जा सकता। चीतसिय उपायों के बावजूद भारत की जनसंख्या बढ़कर 140 करोड़ की सीमा को पार कर चुकी है। वास्तविक आंकड़े to अगली जनगणना के बाद ही सामने आएंगे ,देश में लड़कियों की विवाह की उमर बढ़ाने की सिफारिश नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में साल 2020 में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी. इस टास्कफोर्स को “मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों,खरमास की खरी खबर ,बाढ़ गयी बाली उमर
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सरकार हमेशा ही गलत नहीं करती । कभी -कभी सही भी करती है। केंद्र सरकार ने खरमास में जब तमाम शुभ काम बंद हो जाते हैं तब दो अच्छे और पुरसुकून फैसले किये है। पहला लड़कियों की विवाह की उमर 18 से बढाकर 21 करने का फैसला किया है और दुसरे आधार नंबर बच्चे के जन्म के साथ देने की व्यवस्था की जा रही है।भारत में शादी की उमर बढ़ाये जाने के विधान से जनसंख्या नियंत्रण पर आंशिक नियंत्रण पाने में मदद मिल सकती है।
भारत में बाल -विवाह एक बड़ी समस्या रही है। बाल विवाह के पीछे अनेक कारण रहे है। कुछ पुरानी मान्यताएं और कुछ परिस्थितियां। सनातनियों में विवाह के लिए लड़की का रजस्वला होना ही सबसे बड़ा पैमाना था । इसीलिए विवाह 9 ,11 और 13 वर्ष की उमर में कर दिए जाते थे ।
बाद में बाल -विवाह को लम्बे मुगलकाल ने भी बढ़ावा दिया। मेरी दादी बतातीं थीं कि उनका विवाह 9 वर्ष की उमर में हुआ थ। उनकी 05 संतानें थीं। बाल विवाह के कारण पिछली सदी में परिवारों में एक दर्जन बच्चों की पैदाइश आम बात थी। िनमने से कुछ बच्चे मुपोषण की भेंट चढ़ जाते थे और कुछ जीवित रहते थे। तब बच्चे भगवान की देन थे।
बढ़ती जनसंख्या को नाथने के अनेक उपाय कालांतर में किये जाते रहे हैं,उनके सुफल भी हासिल हुए हैं लेकिन उन्हें बहुत प्रभावी नहीं माना जा सकता। चीतसिय उपायों के बावजूद भारत की जनसंख्या बढ़कर 140 करोड़ की सीमा को पार कर चुकी है।
वास्तविक आंकड़े to अगली जनगणना के बाद ही सामने आएंगे ,देश में लड़कियों की विवाह की उमर बढ़ाने की सिफारिश नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में साल 2020 में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी. इस टास्कफोर्स को “मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों, … एमएमआर (मातृ मृत्यु दर) को कम करने, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों” की जांच करने के लिए गठित किया गया था.
काशी,मथुरा में उलझी सरकार ने नींद टूटते ही देश में लड़कियों के लिए विवाह की उम्र को 18 साल के बढ़ाकर 21 किया जा रहा है. इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी है. इसके लिए सरकार मौजूदा कानून.में संशोधन करेगी. देश में पहले के कानून के अनुसार अभी पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और महिलाओं की 18 साल है. नए प्रस्ताव के मंजूर होने के बाद अब.सरकार बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करेगी. मुझे लगता है कि ये एक ऐसा फैसला है जिसके ऊपर संसद के किसी सदन में हंगामा नहीं होगा।
एक हकीकत ये भी है कि ये कानून बनने से पहले ही देश में नयी पीढ़ी ने अपने आप विवाह की उमर बढ़ा ली है । कैरियर के दबाब में लड़के -लड़कियां अब 21 क्या 35 वर्ष की उमर तक विवाह करने को राजी नहीं होते। लेकिन ये संख्या फिर भी बहुत ज्यादा नहीं ह। देश के ग्रामीण अंचलों में आज भी लड़की की शादी कि उमर 18 से 21 के बीच ही है।
बाल -विवाह के लिए बदनाम राजस्थान में तमाम क़ानून आज भी पूरी तरह से प्रभावी नहीं है । सर्वमान्य तथ्य है कि विवाह में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. उल्लेखनीय है कि 1929 के तत्कालीन शारदा अधिनियम में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी. अब 43 साल बाद यह अहम बदलाव होने जा रहा है.
दुर्भाग्य ये है कि हमारे देश में सब कुछ काम कानूनों के जरिये किये जाते हैं। समाज सुधार भी इसमें शामिल है। क़ानून बनाने और उनमने संशोधन करने का काम भी हमारे यहां बहुत धीमी रफ़्तार से होता है। आजादी से पहले साल 1927 में शिक्षाविद, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक राय साहब हरबिलास शारदा ने बाल विवाह रोकने के लिए संसद में विधेयक पेश किया जिसमें लड़कों के लिए शादी की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 तय की गई.
शारदा एक्ट के तहत बहुत कम सजा का प्रावधान था. कानून तोड़ने वाले को केवल 15 दिन जेल या .हजार रुपये जुर्माना या दोनों हो सकते थे.1929 में ये कानून बना तो इसे शारदा एक्ट कहा गया. इसके बाद 1978 इसमें संशोधन हुआ तो लड़कों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों के लिए 18 तय की गई. फिर भी बाल विवाह पूरी तरह नहीं रुका तो साल 2006 में इसकी जगह बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया. इसमें दंड का प्रावधान किया गया. अब कानून तोड़ने वाले को दो साल की सजा और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.
दूसरी अच्छी खबर ये है की भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) जल्द ही अब अस्पताल में जन्में नवजात शिशुओं को आधार कार्ड उपलब्ध कराने की तैयारी कर रही है। इसके लिए जल्द ही अस्पतालों को आधार एनरोलमेंट की सुविधा दी जाएगी जिसके जरिए वो हाथोहाथ नवजात शिशुओं का आधार कार्ड बना देंगे।
प्राधिकार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सौरभ गर्ग ने कहा, ‘यूआईडीएआई नवजात शिशुओं को आधार नंबर देने के लिए बर्थ रजिस्ट्रार के साथ टाइअप करने की कोशिश कर रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘देश में अभी तक 99.7 फीसदी वयस्क आबादी को आधार नंबर जारी किया जा चुका है। इसके लिए करीब 131 करोड़ आबादी को पंजीकृत किया गया है और अब हमारा प्रयास नवजात शिशुओं के नामांकन करने का है।’अमेरिका में एसएसएन देने की कमोवेश यही व्यवस्था है। उम्मीद है कि इन उपायों कि सुफल सामने आएंगे।
राकेश अचल
राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।