

Ram Navami Special: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम-नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का शाश्वत स्रोत
डॉ तेज प्रकाश पूर्णानन्द व्यास
भारतवर्ष की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का स्थान सर्वोच्च है। उनका जीवन, चरित्र और आदर्श न केवल प्राचीन काल में बल्कि आज की आधुनिक पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा का अक्षय स्रोत हैं। तुलसीदास की रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों में श्री राम के उदात्त गुणों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जो हमें धर्म, नैतिकता, दया , करुणा ,प्रेम , परहित, माता पिता गुरु की आज्ञा पालन और उच्च उदात्त गुणों के अनुकरणीय मानवीय मूल्यों का पालन करने का मार्ग दिखाते हैं। श्री राम का जन्मोत्सव हमें उनके दिव्य जीवन और शिक्षाओं को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है, ताकि नई पीढ़ी उनके पदचिन्हों पर चलकर एक श्रेष्ठ और सार्थक जीवन जी सके।
1. मर्यादा पालन: व्यक्तिगत और सामाजिक आदर्श: वचनबद्धता और सत्यनिष्ठा का अनुपम उदाहरण
श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विख्यात हैं, जिसका अर्थ है मर्यादाओं का सर्वोत्तम पालन करने वाला। उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में व्यक्तिगत और सामाजिक मर्यादाओं का पालन किया। पिता दशरथ के वचन को सत्य करने के लिए उन्होंने सहजता से राज त्याग दिया और चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। यह घटना उनकी वचनबद्धता और सत्यनिष्ठा का अद्वितीय उदाहरण है।
तुलसीकृत रामचरितमानस में कहा गया है:
> रघुकुल रीति सदा चली आई।
> प्राण जाई पर बचन न जाई।।
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इस चौपाई का अर्थ है कि रघुकुल की यह सनातन रीति रही है कि प्राण भले ही चले जाएँ, पर वचन भंग नहीं होना चाहिए। श्री राम ने इस आदर्श को अपने जीवन में चरितार्थ करके दिखाया। नई पीढ़ी को श्री राम के इस गुण से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने वचनों का पालन करने तथा सत्य के मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ संकल्पित रहना चाहिए।
2. त्याग और समर्पण: व्यक्तिगत सुख से परे कर्तव्य: लोक कल्याण और पारिवारिक मूल्यों के लिए आत्म-बलिदान
श्री राम का जीवन त्याग और समर्पण की भावना से ओतप्रोत है। उन्होंने न केवल राजपाट का त्याग किया, बल्कि वनवास के कठिन जीवन को भी सहजता से स्वीकार किया। सीता और लक्ष्मण ने भी स्वेच्छा से उनके साथ वनवास जाना स्वीकार किया, जो उनके परस्पर प्रेम, सम्मान, आदर्शता और समर्पण को दर्शाता है। भरत ने राजसिंहासन को अस्वीकार कर श्री राम के प्रति अपनी निष्ठा और त्याग का परिचय दिया।
वाल्मीकि रामायण में त्याग के अनेक प्रसंग मिलते हैं। एक श्लोक में कहा गया है:
> न राज्यं न सुखं न वित्तं न भोगं
> न दारान् प्रार्थये नो च जीवितम्।
> प्रार्थयेऽहं भगवन् भक्तिमेकां
> त्वयि स्थिरानित्यनवच्छिन्नाम्।।
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यद्यपि यह श्लोक भरत की भावना को व्यक्त करता है, यह श्री राम और उनके परिवार के त्याग की भावना को भी दर्शाता है – उन्हें न राज्य की कामना थी, न सुख की, न धन की, न भोग की और न ही जीवन की। उनकी प्राथमिकता कर्तव्य और धर्म का पालन करना था। नई पीढ़ी को इस त्याग और समर्पण की भावना से सीख लेनी चाहिए और व्यक्तिगत सुख से ऊपर उठकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
3. न्याय और धर्म: सत्य के मार्ग पर अडिग: निष्पक्षता और धार्मिक सिद्धांतों का पालन
श्री राम न्याय और धर्म के प्रतीक हैं। उन्होंने कभी भी अन्याय का समर्थन नहीं किया और हमेशा सत्य के मार्ग पर अडिग रहे। उन्होंने सुग्रीव और विभीषण जैसे कमजोरों को आश्रय दिया और उन्हें न्याय दिलाया। रावण के अधर्म का उन्होंने पुरजोर विरोध किया और अंततः उसका नाश करके धर्म की स्थापना की।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं:
> धर्म ते बिरति, अधर्म ते प्रीति।
> कलि प्रभाव बिरती सब रीति।।
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कलियुग के प्रभाव के विपरीत, श्री राम ने हमेशा धर्म के प्रति निष्ठा और अधर्म से दूरी बनाए रखी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि हमें सदैव न्याय के साथ खड़ा रहना चाहिए और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करते हुए सत्य का साथ देना चाहिए, भले ही परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
4. धैर्य और सहनशीलता: विपरीत परिस्थितियों में संतुलन: विपत्तियों का सामना करने की अद्वितीय क्षमता
श्री राम ने अपने जीवन में अनेक कठिन परिस्थितियों का सामना किया, जिनमें वनवास की कठिनाइयाँ, सीता हरण और रावण के साथ भीषण युद्ध प्रमुख हैं। इन सभी विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने अद्भुत धैर्य और सहनशीलता का परिचय दिया। उन्होंने कभी भी अपना संतुलन नहीं खोया और शांत चित्त से हर समस्या का समाधान निकाला।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है:
> धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
> आपद काल परखिये चारी।।
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अर्थात्, धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा विपत्ति के समय ही होती है। श्री राम ने अपने धैर्य के बल पर ही हर आपदा को पार किया। नई पीढ़ी को श्री राम के इस गुण को अपनाना चाहिए और जीवन की चुनौतियों का शांति और स्थिरता के साथ सामना करना सीखना चाहिए।
5. करुणा और क्षमा: मानवीय संबंधों का आधार: शत्रु के प्रति भी मानवीय दृष्टिकोण
श्री राम का हृदय करुणा और क्षमा से भरा हुआ था। उन्होंने शत्रु के प्रति भी मानवीय दृष्टिकोण अपनाया। समुद्र से रास्ता माँगना और विभीषण को शरण देना उनकी करुणा और शरणागत वत्सलता के उदाहरण हैं। हनुमान के प्रति उनका प्रेम और कृतज्ञता का भाव अद्वितीय है।
वाल्मीकि रामायण में शरणागत की रक्षा के अनेक उदाहरण मिलते हैं। एक श्लोक में कहा गया है:
> सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
> अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रत मम।।
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अर्थात्, जो एक बार भी ‘मैं तुम्हारा हूँ’ कहकर मेरी शरण में आता है, उसे मैं सभी प्राणियों से अभय प्रदान करता हूँ – यह मेरा व्रत है। श्री राम ने इस व्रत का पालन करते हुए विभीषण को शरण दी। नई पीढ़ी को श्री राम के इस करुणा और क्षमा के भाव से प्रेरणा लेनी चाहिए और दूसरों के प्रति दयालु और क्षमाशील होना चाहिए।
6. नेतृत्व और लोक कल्याण: प्रजा हित सर्वोपरि: एक आदर्श शासक के गुण
श्री राम एक आदर्श शासक थे। उन्होंने हमेशा अपनी प्रजा के सुख-दुख का ध्यान रखा और एक न्यायपूर्ण शासन स्थापित किया, जिसे रामराज्य के नाम से जाना जाता है। उनके राज्य में सभी सुखी और समृद्ध थे। उन्होंने व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर हमेशा लोक कल्याण को प्राथमिकता दी।
रामचरितमानस में रामराज्य का वर्णन करते हुए कहा गया है:
> दैहिक दैविक भौतिक तापा।
> राम राज नहिं काहुहिं ब्यापा।।
> सब नर करहिं परस्पर प्रीती।
> चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
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अर्थात्, रामराज्य में किसी को भी शारीरिक, दैवीय या सांसारिक कष्ट नहीं होता था। सभी मनुष्य आपस में प्रेम करते थे और अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए वेद और नीति के अनुसार चलते थे। नई पीढ़ी को श्री राम के नेतृत्व गुणों से प्रेरणा लेनी चाहिए और समाज के कल्याण के लिए काम करने की भावना विकसित करनी चाहिए।
7. गुरु भक्ति और ज्ञान का सम्मान: विद्यार्जन और गुरु के प्रति समर्पण का महत्व
श्री राम ने ऋषि वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की और हमेशा अपने गुरु का सम्मान किया। उन्होंने गुरु की आज्ञा का पालन किया और ज्ञान के महत्व को समझा। उनका गुरु भक्ति का भाव नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है।
वाल्मीकि रामायण में श्री राम के विद्यार्जन और गुरु के प्रति समर्पण के अनेक प्रसंग हैं, जो शिक्षा के महत्व और गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता को दर्शाते हैं। नई पीढ़ी को श्री राम से प्रेरणा लेकर शिक्षा प्राप्त करने और अपने गुरुओं का सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिए।
8. समान दृष्टि और समावेश: सभी के प्रति समान भाव और सामाजिक समरसता
श्री राम ने कभी भी जाति, वर्ग या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं किया। उन्होंने शबरी जैसी साधारण भक्त के प्रेम को स्वीकार किया और निषादराज गुह से मित्रता की। उनका यह समान दृष्टि और समावेश का भाव समाज में समरसता और एकता स्थापित करने के लिए आज भी प्रासंगिक है।
रामचरितमानस में शबरी के बेर खाने और निषादराज को गले लगाने के प्रसंग श्री राम के सभी के प्रति समान स्नेह और आदर भाव को दर्शाते हैं। नई पीढ़ी को श्री राम से प्रेरणा लेकर सभी मनुष्यों का सम्मान करना चाहिए और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
9. प्रकृति प्रेम और पर्यावरण संरक्षण: वन और वन्यजीवों के प्रति आदर भाव
वनवास के दौरान श्री राम ने प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जिया। उनका विभिन्न पशु-पक्षियों से गहरा जुड़ाव था। उनका प्रकृति प्रेम और पर्यावरण के प्रति आदर भाव आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
वाल्मीकि रामायण में वन के सौंदर्य और श्री राम के प्रकृति प्रेम के अनेक वर्णन मिलते हैं, जो हमें पर्यावरण के महत्व को समझने और उसके संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। नई पीढ़ी को श्री राम से प्रेरणा लेकर प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए।
10. पारिवारिक एकता और संबंध निर्वहन: आदर्श भाई, पुत्र और पति के रूप में श्री राम
श्री राम एक आदर्श भाई, पुत्र और पति थे। अपने भाइयों के प्रति उनका स्नेह, माता-पिता की आज्ञा का पालन और पत्नी सीता के प्रति उनका अटूट प्रेम और सम्मान पारिवारिक एकता और संबंधों के महत्व को दर्शाता है।
दोनों रामायणों में पारिवारिक संबंधों के निर्वहन के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं, जो हमें परिवार के महत्व को समझने और रिश्तों को प्रेम और सम्मान के साथ निभाने की प्रेरणा देते हैं। नई पीढ़ी को श्री राम से प्रेरणा लेकर अपने पारिवारिक संबंधों को मजबूत बनाना चाहिए।
11. कर्मयोग और पुरुषार्थ: कर्तव्य पालन में सक्रियता और प्रयास
श्री राम ने कभी भी भाग्य पर भरोसा नहीं किया, बल्कि हमेशा अपने कर्मों पर विश्वास रखा। सीता की खोज और रावण से युद्ध में उन्होंने निरंतर प्रयास और कर्मठता दिखाई। उनका यह कर्मयोग और पुरुषार्थ का सिद्धांत नई पीढ़ी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रामायण में वर्णित युद्ध और सीता की खोज के प्रसंग कर्मयोग के महत्व को दर्शाते हैं। नई पीढ़ी को श्री राम से प्रेरणा लेकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए और कर्म के महत्व को समझना चाहिए।
12. लोक लाज और सामाजिक प्रतिष्ठा का ध्यान: समाज के मूल्यों का सम्मान
सीता के त्याग का प्रसंग, यद्यपि विवादास्पद है, परन्तु यह एक राजा के रूप में अपनी प्रजा की भावनाओं का सम्मान करने के श्री राम के कर्तव्य को दर्शाता है। उन्होंने लोक लाज और सामाजिक प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए कठिन निर्णय लिया।
विभिन्न रामायणों में इस प्रसंग पर भिन्न मत हैं, परन्तु यह तत्कालीन सामाजिक मूल्यों और एक शासक के दायित्व को दर्शाता है। नई पीढ़ी को श्री राम के इस पहलू से सीख लेकर सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए और अपने कार्यों से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना चाहिए।
निष्कर्ष:
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन नई युवा पीढ़ी के लिए एक अनुपम मार्गदर्शक है। उनके उच्च उदात्त गुण – मर्यादा, त्याग, न्याय, धैर्य, करुणा, लोक कल्याण, गुरु भक्ति, समान दृष्टि, प्रकृति प्रेम, पारिवारिक एकता, कर्मयोग और लोक लाज का ध्यान – आज भी युवाओं को एक बेहतर इंसान बनने और समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं। तुलसीदास और वाल्मीकि जैसे महान ऋषियों द्वारा वर्णित श्री राम की गाथाएँ हमें सिखाती हैं कि कैसे धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलकर एक आदर्श जीवन जिया जा सकता है। श्री राम के जन्मोत्सव राम नवमी के शुभ अवसर पर हमें उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए और एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए जो मर्यादा, प्रेम और न्याय पर आधारित हो।
लेखक -संस्कृत, संस्कृति और सनातन धर्म के प्रखर वक्ता एवं लेखक हैं
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