7 Died In Fire: ताजिंदगी याद रहे,ऐसी सजा दें मदांध वहशी को
इंदौर में 6-7 मई की दरम्यानी रात इमारत में आग लगने से 7 लोगों की अकाल मौत हो गई,5 बुरी तरह से झुलस गये,पूरी इमारत इसकी चपेट में आई,पार्किंग में खड़े सभी 12 वाहन खाक हो गये और इस भवन में रहने वाले सातों परिवारों की जिंदगी ही जैसे स्याह हो गई। यह सब हुआ एक ऐसे दानव वृतित् के युवक की वजह से जो उस भवन में रहने वाली एक युवती से कथित प्यार करता था। मुझे लगता है, प्यार जैसे संवेदनशील अहसास और इस धरती के सबसे सुखद और स्थायी भाव की अनुभूति से सर्वथा प्रतिकूल प्रवृतित् वाले इस सिरफिरे युवक का दूर-दूर तक नाता हो ही नहीं सकता। इसलिये इसे पागल प्रेमी या जुनूंनी या एक तरफा प्यार में पागल जैसे विशेषणों के साथ पेश आना प्यार शब्द और भाव के साथ ज्यादती से कम नहीं ।
जैसा कि सामने आया है कि इस भवन में रहने वाली एक युवती से शुभम(जो कि वह नाम के अनुरूप हो ही नहीं सकता) दीक्षित एक तरफा प्यार करता था, जबकि युवती उसकी उपेक्षा करती थी। इसी खुन्नस में युवक ने आधी रात में वहां जाकर युवती के दो पहिया वाहन में आग लगा दी,जो दावानल बनकर सात जिंदगियां, सात परिवारों के सपने और प्यार जैसे खुशनुमा भाव को खाक कर गया। इस वीभत्स और वितृष्णा से परिपूर्ण घटनाक्रम और क्रियाकलाप को लेकर जनमानस में बेहद आक्रामक और आंदोलित करने वाली प्रतिक्रियायें सामने आ रही हैं।
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कोई कह रहा है ऐसे दरिंदे को फांसी पर लटका देना चाहिये तो कोई आजन्म कारावास तजबीज कर रहा है। न्याय पालिका इस तरह की किसी भावुक दलीलों की बजाय तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में,कानूनी दायरे में जो अधिकतम हो सकता है, वह करने का प्रया्स करती है,जिसमें कई बार माननीय न्यायाधीश जन भावनाओं के मद्देनजर अपने विवेक के विशेषाधिकार का उपयोग भी करते ही हैं। उम्मीद है,इस प्रकरण मे भी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए भी कुछ तो ऐसा फैसला सामने आयेगा ही, जो आयंदा के लिये नजीर तो बने ही, इस बर्बर घटना के खलनायक की रूह तक वह असर भी करे।
इसमें मेरा अभिमत व्यक्त करना चाहूंगा। दरअसल, देश-दुनिया में जब इस तरह से अकल्पनीय और निकृष्टतम प्रवृतित् को दर्शाने वाले मामले होते हैं, तब किसी निशि्चत तौर-तरीकों से परे जाकर भी फैसले लिये जाने चाहिये। हालांकि धरती पर ऐसे लोग भी कम नहीं, जो घृणित अपराधों को अंजाम देने वालों के प्रति भी मानवीय दृषि्टकोण रखते हैं,उनके मानवाधिकार की बात करते हैं और पैरवी करने आधी रात को आदालतों की चौखट पर जा पहुंचते हैं।
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यह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली और न्याय पालिका का भी उजला पहलू है कि तमाम असहमतियों के बावजूद सुनवाई करते हैं। जबकि मेरा ऐसा मानना है कि दया किसके प्रति दिखाई जाये, इसे भी ध्यान रखना चाहिये। जालिम जिंदगी भर दूसरों का उत्पीड़न करता रहे और जब उसके भुगतने की बारी आये, तब वह दया भाव प्रकट करने की अपेक्षा रखे तो फैसला समाज और कानून के रखवालों को लेना चाहिये कि वे खुद को किस कसौटी पर रखना चाहेंगे।
मुझे लगता है, घृणित,अकल्पनीय,निकृष्ट और बर्बर अपराध के लिये किसी किस्म की रियायात नहीं दी जाना चाहिये। इतना ही नहीं तो ऐसे वहशी लोग तो जिंदा रखे जाने चाहिये,ताकि आजीवन तिल-तिल कर मौत को पास आते महसूस तो करें, लेकिन वह आसानी से आये नहीं । ऐसे मनुष्य होने के नाम पर कलंक वाले व्यकि्त को वो पल तो कभी भुलने नहीं देना चाहिये, जिसे उसने अंजाम दिया था।
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ऐसा भी नहीं है कि प्यार के नाम पर अपराध करने वाला (अ)शुभम कोई पहला या अकेला व्यकि्त है। अक्सर होता यही है कि वक्त बीतने के साथ ऐसे दरिंदे भुला दिये जाते हैं या याद किये भी जाते हैं तो वैसी ही किसी घटना के परिप्रेक्ष्य में। अनेक अपराधी तो अपने कृत्य को अपराध मानते ही नहीं। तब आप दया किस पर दिखाना चाह रहे हैं ? दया के बदले दानवी प्रतिकार का श्रेष्ठ उदाहरण है पृथ्वीराज चौहान का 16 बार मोहम्मद गोरी के प्रति दया दिखाने का । उस दया के अंजाम से अवगत होने के बाद भी क्या हम हमेशा दया की पैरवी ही करते रहेंगे?
ऐसे लोगों के लिये तो हर राज्य में अलग कारागार होना चाहये। जहां कोठरियों में बिजली न हो। करवट ले सके,इतनी जगह न हो। भोजन एक वक्त ही दिया जाये और सिर्फ इतना कि व्यकि्त जीने की चाहत न रखे और मौत दूर छिटकती जाये। वह किसी की शक्ल महीनों तक देख नहीं पाये और मल-मूत्र का त्याग भी उसी कोठरी के भीतर करे, जिसकी सफाई भी वही करे। ऐसे दरिंदो की वीडियोग्राफी भी हो,जिसे खास तौर से अन्य अपराधों में जेल में बंद कैदियों को तो दिखाई ही जाये.ताकि बाहर निकलकर वे हजार बार सोचें कि वह शेष जीवन कैसे बिताना चाहता है।
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अब बात उस प्यार की,जिसके बारे में कहा जा रहा है कि शुभम किसी से करता था। तो वह तो प्यार हो ही नहीं सकता, जो किसी की जान ले ले या अपनी भी दे दे। प्यार तो जिंदगी का पयार्य है। प्यार खूश्बू है,शीतल हवा का झोंका है। जिस अहसास पर करोड़ों गद्य और पद्य लिखे गये हों, जो शायर और कवि की रूह से होकर जबान तक पर पसर-पसर जाता रहा हो, जो जिंदगी के ,प्रति उमंग पैदा करे और सृषि्ट के समृद्ध होने का मूल मंत्र हो, उस कायनात के सबसे अनमोल तत्व प्यार के लिये कोई किसी से प्रतिशोध ले,हत्या,आत्म हत्या कर ले, उत्पीड़न और अत्याचार पर उतर आये,कैसे संभव है? दरअसल तमाम समाचार माध्यमों में परिपाटी जन्य अनेक एसे शब्द,विशेषण,मुहावरे प्रचलित हैं,जो कतई सटीक और अनुकूल नहीं होते, फिर भी प्रयोग किये जाते हैं। प्यार के साथ भी ऐसी घनघोर ज्यादती हमेशा ही होती है।शुभम ने जान बूझकर की,हम अनजाने करते हैं।
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