इत्र व्यापारी पीयूष जैन का अकूत खजाना देख कर सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम (सीबीआईसी) और इनकम टैक्स (आईटी) अफसरों के होश तो उड़े ही, समाजवादी इत्र से इतरा रही पार्टी को भी पसीना आने लगा है। उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह दिया कि अब पता चला कि बुआ-बबुआ क्यों नोटबंदी के खिलाफ थे। दूसरी ओर, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने ट्वीट किया कि झूठ के फूल की जड़ मिल गई है। सवाल यह है कि नोटबंदी और कड़े कानूनों के बावजूद कोई कैश का इतना बड़ा जखीरा रखने में कामयाब कैसे हो गया, यह सरकार की विफलता है।
40 से ज्यादा कंपनियों के मालिक पीयूष जैन के कानपुर और कन्नौज परिसर से यह पंक्तियां लिखे जाने तक करीब 257 करोड़ की नकदी, 150 किलो से ऊपर चांदी और 25 किलो से उपर सोने की सिल्लियों की बरामदगी के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इत्र कारोबारी के कन्नौज वाले घर से बैग में 300 चाबियां मिली हैं। जानकारी ये भी मिल रही है कि पीयूष जैन ने एक ही कैंपस में चार घर बना रखे हैं और वहां एक तहखाना भी है, अब इस तहखाने को खोलने की कोशिश की जा रही है।
जांच में लगे आयकर और सीबीसीआईडी के अधिकारियों का कहना था कि उन्होंने अपनी सालों की नौकरी में इतना कैश कभी नहीं देखा। तिजोरियों और बेसमेंट से निकलने वाले कैश को गिनने में 13 मशीनें लगानी पड़ीं। इस पूरे खेल का पर्दाफाश तब हुआ था जब गुजरात में शिखर पान मसाला के प्रवीण जैन के भरे ट्रक को जीएसटी इंटेलिजेंस टीम की ओर से पकड़ा गया था। कार्रवाई में प्रवीण जैन के घर से 45 लाख रुपये और कार्यालय से 56 लाख रुपये नकद मिले।
पीयूष जैन ने एक महीने पहले अखिलेश यादव की मौजूदगी में समाजवादी परफ्यूम भी लॉन्च किया था। उन्हें अखिलेश यादव का नजदीकी बताया जाता है। असल में वो उस परफ्यूम लॉबी के सदस्य हैं जो अखिलेश के करीब है। पीयूष जैन का परिवार इतना अमीर हो सकता है, कोई सोच भी नहीं सकता था। कई बार तो वे शादी-पार्टियों में सिर्फ चप्पल और पजामा पहनकर ही पहुंचते थे। पीयूष जैन पर कई फर्जी फर्मों के नाम पर बिल बनाकर करोड़ों रुपये की जीएसटी चोरी करने का आरोप है।
इसके पहले, सपा के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजीव राय, अखिलेश यादव के ओएसडी जैनेंद्र यादव और मनोज यादव के घर आयकर विभाग के छापे पड़े थे। लखनऊ, मैनपुरी, मऊ, कोलकाता, बेंगलुरु और एनसीआर के 30 ठिकानों पर की गई छापेमारी में 86 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला था। दिलचस्प यह भी है कि केंद्रीय जांच एजेंसियां उप्र ही नहीं बल्कि देश के राज्यों में भी चुनाव से ठीक पहले ऐसे ही एक्टिव थी और विपक्षी नेताओं को निशाने पर लिया था। लेकिन, कालाबाजारियों के बचाव में यह दलील काम नहीं कर सकती है। खासकर तब, जब चुनावों में बड़े पैमाने पर काले धन के प्रयोग की शिकायतें हो।
वर्तमान चुनावी प्रणाली में नोट और वोट एक साथ चलते हैं। मौजूदा समय में राजनीतिक दलों को प्राप्त होने वाले कुल चंदे में दो-तिहाई से भी अधिक हिस्सा कॉरपोरेट चंदे का ही होता है जो मुख्यत: चुनावी बांड के माध्यम से प्राप्त होते हैं। लेकिन, पार्टियों को मिलने वाले इस कॉरपोरेट चंदे में भारी विषमता के कारण भी पार्टियां काले धन का इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में, सपा के करीबी पीयूष जैन के यहां अकूत नकदी छिपा कर रखने का प्रयोजन क्या था? आसन्न विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सवाल तो खड़ा होता ही है।