कालिंजर से बरेला तक गौरव से भरी रानी दुर्गावती की यात्रा…

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कालिंजर से बरेला तक गौरव से भरी रानी दुर्गावती की यात्रा…

अकबर की बुरी नजर वीरांगना रानी दुर्गावती को हरम तक ले जाने पर उतारू थी, लेकिन रानी दुर्गावती ने ठान लिया था कि अकबर के मंसूबे सफल नहीं होने दूंगी… भले ही प्राण न्यौछावर करने पड़ें। और हुआ भी वही कि जब युद्ध में भारी भरकम मुगल सेना के आगे रानी की सीमित सेना पार नहीं पा सकी और रानी रणभूमि में लड़ते-लड़ते जख्मी हो गईं, तब रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने पेट में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गई। आदिवासी रानी खुशी-खुशी शहीद हो गई लेकिन मुगल सत्ता के ‌सामने हार नहीं मानी। कालिंजर दुर्ग में जन्मी और पली-बढ़ी रानी दुर्गावती की जीवन यात्रा बरेला की युद्धभूमि में थम गई।
पर यह जीवन यात्रा गौरव से भरी थी, आत्मसम्मान से सजी थी और शौर्य-वीरता से ओतप्रोत थी। इसीलिए रानी आज भी हमारे बीच जिंदा हैं। अपने देश की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देने वाले शहीदों में अग्रणी नाम जबलपुर और मण्डला की इस वीरांगना रानी दुर्गावती का है। रानी दुर्गावती ने आक्रांताओं से लंबे समय तक संघर्ष किया। उनकी वीरता को याद करने के लिए ही मध्य प्रदेश में 22 जून से 27 जून तक वीरांगना रानी दुगार्वती गौरव यात्रा निकाली जा रही है। प्रदेश के पाँच अलग-अलग स्थानों से शुरू होने वाली इन यात्राओं का समापन 27 जून को शहडोल में आयोजित महासम्मेलन में होगा। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गौरव यात्रा के समापन समारोह में शामिल होते हुए वीरांगना रानी दुर्गावती को श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगे। यह वर्ष रानी दुर्गावती के जन्म के 499 वर्ष पूरे होकर 500 वर्ष की शुरुआत का भी है।
रानी दुर्गावती चन्देल गढ़ा साम्राज्य की शासक महारानी थीं। वो भारत की एक प्रसिद्ध चन्देल क्षत्राणी वीरांगना थीं, जिनका जन्म दुर्गाष्टमी के दिन 5 अक्टूबर 1524 इस्वी को कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन चन्देल (द्वितीय) के यहाँ हुआ था। उनका विवाह दलपत सायी से हुआ था, जो गढ़ा राज्य के राजा संग्राम सायी के पुत्र थे। उन्हें मुगल साम्राज्य के खिलाफ अपने राज्य की वीरता और साहस के लिए याद किया जाता है। रानी दुर्गावती मडावी गोंडो का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा।
रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया। आदिवासियों भीलों ने रानी दुर्गावती के लिए अपनी जान दे दी। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः महारानी दुर्गावती मर्रावी ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है। वहीं रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर है। रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया। भारत सरकार ने 24 जून 1988 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर एक डाक टिकट जारी कर रानी दुर्गावती को याद किया। जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया । मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है। रानी दुर्गावती की याद में कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गईं हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है। कालिंजर से बरेला तक की रानी दुर्गावती की गौरव गाथा हर भारतीय को गौरव से भरती रहेगी। जब तक राष्ट्र रहेगा, तब तक रानी दुर्गावती हर भारतवासी के दिल में बसी रहेंगीं…।