Ratlam MP: GI Tag के क्रियान्वयन से मिलेगी रतलामी सेंव को नई ऊॅचाईयां
रतलाम से रमेश सोनी की विशेष रिपोर्ट
Ratlam MP: नमकीन का नाम आते ही नमकीन खाने वाले शौकिनों के मुंह में पानी भर आता है।और ऐसे में रतलाम के नमकीन का जिक्र होने पर जिभ का चटखारे लेना स्वाभाविक है।रतलाम विधायक चेतन्य काश्यप रतलामी नमकीन को ऊंचाईयां देने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं।
उन्होंने नमकीन व्यवसायियों को एक छत के नीचे समूची व्यवस्था देने की ठानकर प्रयास किए उन्होंने नमकीन क्लस्टर की इकाइयों का प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से शिलान्यास करवा कर शुभारंभ किया तो नमकीन कलस्टर आज साकार होकर हमारे समक्ष हैं जिसमें दर्जन भर इकाइयों में नमकीन बनकर देश भर में पंहुच रहा है।
नमकीन व्यवसाय की ख्याति के साथ उसे ऊंचाई देने के लिए जीआई टेग का विशेष महत्व होता है जिसके लिए भी श्री काश्यप जूटे हैं उन्होंने रतलामी सेंव को जीआई टेग जो मिल चुका है जसके क्रियान्वयन हेतु सीआईआई (कांफेडरेशन ऑफ इंडियन इण्डस्ट्री) के उपसंचालक एवं मध्य-प्रदेश के प्रमुख अनिल कुमार पाण्डे, रतलाम नमकीन मण्डल के अध्यक्ष शैलेन्द्र गांधी,मुकेश चौधरी आदि के साथ बैठक कर रुपरेखा तैयार की।
श्री चेतन्य काश्यप का कहना है कि रतलामी सेंव को जीआईटेग मिलना शहर के लिए गौरव की बात है।इसके जल्द क्रियान्वयन से रतलामी सेंव को नई ऊंचाईयां मिलेगी और रतलाम का नाम राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित होगा।
बता दें कि रतलामी सेंव को रतलाम नमकीन मण्डल के अध्यक्ष शैलेन्द्र गांधी की मेहनत एवं निरंतर किए गए प्रयासों का परिणाम है कि जीआई टेग मिला है।इसमें सीआईआई प्रमुख अनिल कुमार पाण्डे का काफी सहयोग रहा है।
बैठक में रतलामी सेंव को जीआई टेग मिलने के बाद एक विस्तृत कार्ययोजना बनाने और टेग के मापदण्डों के अनुसार रतलामी सेंव को सर्वत्र उपलब्ध करवाने तथा जल्द ही नमकीन उत्पादकों से चर्चा कर जीआई टेग की मार्किंग के उपयोग के संदर्भ में योजना बनाने एवं रतलामी सेंव पर जल्द से जल्द जीआई टेग का उपयोग आरंभ करने पर विचार किया।
क्या होता है जीआई टैग और किस प्रोडक्ट को मिलता है यह?
किसी प्रोडक्ट को लेकर अक्सर आप जीआई टैग के बारे में सुनते होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जीआई टैग आखिर होता क्या है और यह किसे मिलता है? दरअसल, किसी भी वस्तु के लिए जीआई टैग बहुत जरूरी होता है।
ये टैग बताते हैं कि प्रोडक्ट किस जगह का है, यानी ये टैग ही प्रोडक्ट की पहचान होते हैं। जीआई का मतलब होता है जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक संकेतक।
इसका इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है,जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। किसी प्रोडक्ट को ये खास भौगोलिक पहचान मिल जाने से उस प्रोडक्ट के उत्पादकों को उसकी अच्छी कीमत मिलती है। इसका फायदा ये भी है कि अन्य उत्पादक उस नाम का इस्तेमाल कर अपने सामान की मार्केटिंग भी नहीं कर सकते हैं।
आपकों यह भी बता दें कि
वर्ष 2003 में संसद में जीआई कानून पास हुआ था।यह भारत की विरासत और पहचान को बचाने और उसे दुनियाभर में प्रसिद्ध करने की एक कानूनी कवायद है।दरअसल,भारत के मशहूर उत्पादों की नकल कर नकली सामान बाजार में खूब बेचे जाने लगे थे।
इससे देश की धरोहर और विरासत को खतरा महसूस हुआ,जिसके बाद असली प्रोडक्ट्स की गरिमा को बनाए रखने के लिए जीआई टैग का कानून लाया गया।जीआई टैग वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड की तरफ से दिया जाता है।
देश में अब तक 300 से अधिक उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इसमें हिमाचल का काला जीरा, छत्तीसगढ़ का जीराफूल, ओडिशा की कंधमाल हल्दी, कर्नाटक की कुर्ग अरेबिका कॉफी, केरल के वायनाड की रोबस्टा कॉफी, आंध्र प्रदेश की अराकू वैली अरेबिका,कर्नाटक की सिरसी सुपारी जैसे कई उत्पाद शामिल हैं।अब रतलामी सेंव भी को भी जीआई टेग मिल चुका है,जिसका क्रियान्वयन मिलते ही नई ऊंचाईयों को छूने की संभावनाएं प्रबल होगी।
क्या कहते हैं अध्यक्ष शैलेन्द्र गांधी
पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के चलते विकास की राह में शिथिलता रहीं अब समय अनूकूल हों गया है कल हमने विधायक चैतन्य काश्यप से इस संदर्भ में चर्चा की है जिसमें सीआईआई के अनील कुमार पांडे का पूर्ण सहयोग रहा।