RBI Likely to Reduce Interest Rate : इस सप्ताह RBI की कम ब्याज पर लोन की घोषणा संभव, इस फैसले से EMI भी घटेगी!

घरेलू मोर्चे पर भी आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने की जरूरत महसूस की गई!

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RBI Likely to Reduce Interest Rate

RBI Likely to Reduce Interest Rate : इस सप्ताह RBI की कम ब्याज पर लोन की घोषणा संभव, इस फैसले से EMI भी घटेगी!

New Delhi : इस सप्ताह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपनी मौद्रिक समीक्षा बैठक में प्रमुख नीतिगत दर रेपो में फिर 0.25% की कटौती कर सकता है। मुद्रास्फीति में कमी से केंद्रीय बैंक के पास ब्याज दर में कटौती की गुंजाइश है। अमेरिका की तरफ से जवाबी सीमा शुल्क लगाने की घोषणा के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई। ऐसे में घरेलू मोर्चे पर भी आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​​​की अध्यक्षता वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने फरवरी में रेपो दर को 0.25% घटाकर 6.25% कर दिया था। यह मई, 2020 के बाद रेपो दर में पहली कटौती और ढाई साल के बाद पहला संशोधन था। एमपीसी की 54वीं बैठक 7 अप्रैल से शुरू होगी और बैठक के नतीजों की घोषणा 9 अप्रैल को किए जाने की संभावना है।

आरबीआई गवर्नर के अलावा एमपीसी में केंद्रीय बैंक के दो वरिष्ठ अधिकारी और सरकार द्वारा नियुक्त तीन लोग होते हैं। आरबीआई ने फरवरी, 2023 से रेपो दर (अल्पकालिक उधार दर) को 6.5% पर अपरिवर्तित रखा था। पिछली बार आरबीआई ने कोविड के समय (मई, 2020) रेपो दर में कमी की थी और उसके बाद इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 6.5% कर दिया गया था।

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बैंक ऑफ बड़ौदा (बॉब) के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि इस सप्ताह घोषित की जाने वाली नीति ऐसे समय में आएगी, जब पूरी दुनिया और अर्थव्यवस्था के भीतर कई चीजें घटित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क से वृद्धि की संभावनाओं और मुद्रा पर कुछ प्रभाव पड़ेगा, जिस पर एमपीसी को अर्थव्यवस्था की स्थिति के सामान्य आकलन से परे विचार करना होगा।

सबनवीस ने कहा कि हालांकि लगता है कि मुद्रास्फीति की संभावनाएं नरम होने और तरलता के स्थिर होने के साथ इस बार रेपो दर में 0.25% की कटौती हो सकती है। यह भी उम्मीद है कि केंद्रीय बैंक अपने रुख को अधिक उदार करेगा, जिसका अर्थ होगा कि इस साल के दौरान दरों में और कटौती होगी।

अमेरिका ने जवाबी शुल्क लगाया

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को भारत और चीन सहित लगभग 60 देशों पर 11% से लेकर 49% तक का जवाबी शुल्क लगाया है, जो 9 अप्रैल से लागू होगा। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के लिए चुनौतियां और अवसर दोनों हैं क्योंकि निर्यात में उसके कई प्रतिस्पर्धी देश जैसे चीन, वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया और थाइलैंड ऊंचे शुल्क का सामना कर रहे हैं। रेटिंग एजेंसी इक्रा को भी उम्मीद है कि एमपीसी अपनी आगामी बैठक में तटस्थ रुख बनाए रखते हुए रेपो दर में चौथाई प्रतिशत की कटौती करेगी। इक्रा ने कहा कि हमें एमपीसी बैठक में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती जैसी किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं है।

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इस बीच, उद्योग मंडल एसोचैम ने सुझाव दिया है कि एमपीसी को आगामी मौद्रिक नीति में मौजूदा स्थिति में दर में कटौती करने के बजाय देखो और इंतजार करो का रुख अपनाना चाहिए। एसोचैम के अध्यक्ष संजय नायर ने कहा कि आरबीआई ने हाल ही में विभिन्न उपायों के माध्यम से बाजार में तरलता बढ़ाई है। हमें इन उपायों के पूंजीगत व्यय में वृद्धि और खपत पर प्रभाव तक धैर्य रखना होगा. हमारा मानना ​​है कि आरबीआई इस नीति चक्र के दौरान रेपो दर को स्थिर रखेगा।
उन्होंने कहा कि बाहरी मोर्चे पर चुनौतियों के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था के नए वित्त वर्ष में मजबूत स्थिति में रहने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 6.7% की वृद्धि एक उचित उम्मीद है। जबकि, खुदरा मुद्रास्फीति के नियंत्रण में रहने की संभावना है। फरवरी में खुदरा मुद्रास्फीति सात महीने के निचले स्तर 3.61% पर आ गई, जिसका मुख्य कारण सब्जियों, अंडों और अन्य प्रोटीन युक्त वस्तुओं की कीमतों में कमी है।

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रेपो दर 6% पर लाए जाने की उम्मीद

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी में 4.26% और फरवरी, 2024 में 5.09% थी। सिग्नेचर ग्लोबल (इंडिया) लिमिटेड के संस्थापक और चेयरमैन प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि केंद्रीय बैंक द्वारा खपत को बढ़ावा देने और आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए रेपो दर में चौथाई प्रतिशत की कटौती कर इसे 6% पर लाए जाने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि नीतिगत दर में कमी कर्ज लेने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है, जिससे अधिक लोग घर खरीदने के लिए निवेश करने को प्रोत्साहित होते हैं। इससे आवास बाजार में मांग बढ़ती है। हालांकि, अग्रवाल ने कहा कि इस दर में कटौती का वास्तविक प्रभाव काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि वाणिज्यिक बैंक आरबीआई के नीतिगत निर्णय को ग्राहकों तक कितने प्रभावी तरीके से और तेजी से पहुंचाते हैं।