

Real Story of Kondavat : खंडवा के ‘जल गंगा अभियान’ में कुंए की रंगाई-पुताई का छलावा और कोंडावत में 8 जीवन छीन लेने वाली सड़ांध!
खंडवा से वरिष्ठ पत्रकार अजीत लाड़ की खास रिपोर्ट!
Khandwa : अगर आप यह समझना चाहते हैं, कि सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या होती है, तो खंडवा जिले के कोंडावद गांव की तरफ करिए। ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ का नाम सुनते ही मन में किसी निर्मल धारा की छवि बनती है, जहां जल संरचनाएं संवर रही हों। ग्रामीणों की प्यास बुझ रही हो और जीवन सहेजा जा रहा हो।
लेकिन, कोंडावद की काली हकीकत इस अभियान की पोल खोलती है। यहां करोड़ों की लागत से कुएं, बावड़ियाँ और तालाब संवारने के नाम पर सिर्फ दीवारें रंग दी गईं, कुछ नकली चित्र बना दिए गए और फिर ढोल पीटकर जश्न मना लिया।
जिस कुएं ने आठ जिंदगियां छीन ली, वो प्रतीक है उस झूठे विकास का जिसकी दीवारें रंगीन और जड़ें भीतर से खोखली थीं। उस कुएँ की बाहरी दीवारों पर सुंदर रंगीन फूल-पत्तियां, नारे और सबकुछ चमकदार है। लेकिन, अंदर सिर्फ सड़ांध वाली गहराई थी। अनदेखी, अनसुनी और अंततः जानलेवा। कुंए की मरम्मत नहीं हुई, सफाई नहीं की गई, सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं थे। जो किया गया वो सब कुछ सिर्फ दिखावे के लिए किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि गणगौर के दिन 8 जिंदगियां जिनमें बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक शामिल थे, उस सड़ांध भरे पानी में समा गईं।
प्रशासन की खामोशी और सवालों से भागना
जैसे ही यह हादसा हुआ जिला प्रशासन के अधिकारी कैमरों के सामने तो आ खड़े हुए और जवाब देने की बजाए सवालों से मुंह मोड़ने लगे। जिला पंचायत सीईओ नागार्जुन बी गौड़ा ने कहा ‘वो कुआं निजी था।’ यदि मान लिया जाए कि वो कुंआ निजी था, तो सरकारी पैसे से मुंडेर क्यों बनी? सरकारी योजनाओं का बोर्ड वहाँ क्यों लगा था। क्या अब सरकारी अफसर अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए किसी भी संपत्ति को “निजी” बता देंगे?
असली समाधान या फिर एक और भूल
आज जिन कुओं ने वर्षों तक गाँवों की प्यास बुझाई, उन्हें बंद करने की बात हो रही है। यह सिर्फ एक निर्णय नहीं, यह हमारे पूर्वजों की परंपरा, उनकी समझ और उनके बनाए मूलभूत ढांचे का अपमान है।
क्या एक हादसे का हल यही है कि उस पर मिट्टी डाल दी जाए? क्या हम सुधार के बजाए हमेशा मट्टी-पलीदी करने का ही रास्ता चुनेंगे?
इस पूरे अभियान का सार यही था कि यदि कहीं किसी दीवार पर ‘जल है तो कल है’ लिख देना या किसी कुएँ पर गेरुआ रंग पोत देना। ये किसी ने नहीं देखा कि अंदर से कुंआ कैसा है, उसमें कितनी गाद और गंदगी है और उसकी सफाई कैसे की जा सकती है। जब भीतर की सच्चाई सड़ चुकी हो, तो बाहरी सजावट सिर्फ शर्मिंदगी बढ़ाती है।
कोंडावद एक चेतावनी है, जो अनसुनी रह गई
कोंडावद की घटना एक अलार्म और एक दर्दनाक संकेत है कि अब भी समय है, संभल जाओ। लेकिन, अफसोस कि प्रशासन ने वही पुराना रास्ता चुना ‘हादसे पर लीपा-पोती करना और वही हो रहा है। मीडिया के सामने घड़ियाली आंसू और फाइलों में एक और केस बंद। कोई दोषी नहीं। गलतीं उनकी जो साफ करने के लिए कुंए में उतरे। आज सवाल सिर्फ ‘जल गंगा अभियान’ का नहीं है। व्यवस्था की नीयत पर भी उंगली उठ रही है।
क्या हम अपनी गलतियों से कभी सीखेंगे या हर बार किसी मासूम की जान जाने का इंतज़ार करेंगे? दरअसल, जब नीति झूठी हो और नीयत बेईमान तो हादसे नहीं होते, वो दोहराए जाते हैं। कोंडावद की मिट्टी आज भी उन 8 आत्माओं की करुण पुकार से भीगी है। काश, प्रशासन को उनकी चीखें सुनाई देती। संवेदनाएँ कागज़ी रिपोर्ट से बड़ी होती। देश का विकास सच में भीतर से होता न कि सिर्फ़ रंगाई-पुताई से जो कोंडावत में किया गया और जिसका खामियाजा 8 जिंदगियों ने भोग और अब उनके परिवार जिंदगी भर भोगेंगे।