Regional Investors Summit: MP में किस रास्ते से आएगा इन्वेस्टमेंट?

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Regional Investors Summit: MP में किस रास्ते से आएगा इन्वेस्टमेंट?

रंजन श्रीवास्तव की खास रिपोर्ट

एक प्रमुख दैनिक अखबार की रिपोर्टिंग टीम ने सागर जिले में मालथौन से तीतरपानी तक 140 किलोमीटर की दूरी में गड्ढों को गिना और पाया की गड्ढों की संख्या 2163 है जबकि इस रास्ते पर वसूले जाने वाला टोल 390 रूपये हैं। रोचक तथ्य यह है कि यह कोई डिस्ट्रिक्ट रोड नहीं है बल्कि नेशनल हाईवे है। पर मुद्दा सिर्फ इन गड्ढों और टोल का नहीं है बल्कि यह भी है कि बिना इंफ्रास्ट्रक्चर के मध्य प्रदेश सरकार औद्योगिक घरानों को प्रदेश में इन्वेस्टमेंट करने के लिए आकर्षित कैसे करेगी ?

प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का जोर रीजनल इन्वेस्टर्स मीट पर है। उनकी कोशिश है कि प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में वहां की परिस्थिति तथा उपलब्ध संसाधनों के आधार पर तरह तरह के उद्योग लगाए जाएं जिससे प्रदेश का सर्वांगीण विकास हो और स्थानीय लोगों को बिना दूर जाए वहां रोजगार उपलब्ध हो। प्रयास अच्छा है और सरकार का यह दावा है कि अब इस बात का प्रयास किया जा रहा है कि उद्योग के नाम पर उद्योगपतियों के सिर्फ ऑफर ना आएं बल्कि वे उद्योग भी जल्द से जल्द लगाएं। सरकार ने दावा किया है कि 28 अगस्त से ग्वालियर में शुरू हुए रीजनल इन्वेस्टर्स मीट में 47 उद्योगों के स्थापना के लिए वर्चुअल भूमि पूजन भी किया गया।

मध्य प्रदेश में पिछले दो दशकों के दौरान कई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित किये गए। इस दौरान 15 महीनों के कांग्रेस शासन के अलावा भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) ही सरकार में रही है। इन इन्वेस्टर्स समिट में उद्योग घरानों द्वारा निवेश के बड़े बड़े दावे किये गए। लाखों करोड़ों रुपये के उद्योग लगाने के लिए मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग पर दोनों तरफ से दस्तखत किये गए। सरकार ने उद्योगपतियों का दोनों बाहें फैलाकर स्वागत किया। आयोजनों और अतिथियों के आवागमन, ठहरने और अन्य सुविधाओं पर पैसा पानी की तरह बहाया गया पर आज वर्तमान स्थिति यह है कि देश के उद्योग वाले 10 अग्रणी राज्यों में मध्य प्रदेश का नामोनिशान नहीं है। ऐसा नहीं कि सरकार ने कोशिश नहीं की पर या तो वो कोशिश सही दिशा में नहीं थी या उन कोशिशों को धरातल पर नए उद्योग के रूप में लाने में शासन और प्रशासन विफल रहा है। और यह तब है जबकि भाजपा सरकार पिछले दस सालों से डबल इंजन सरकार की बातें करती रही है। ऐसे बहुत से उद्योगपति भी देखे गए जो इन्वेस्टर्स समिट के दौरान बड़े बड़े वादे करते थे पर अगले इन्वेस्टर्स समिट तक वो उन दावों को हकीकत में बदलने में बिल्कुल भी रूचि नहीं दिखाते थे। और अगले इन्वेस्टर्स समिट में फिर बड़े बड़े दावे।

बाद में सरकार ने कोशिश की कि जो उद्योगपति गंभीर नहीं हैं उनको इन्वेस्टर्स समिट से दूर रखा जाए। मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग की जगह इन्वेस्टमेंट प्रोपोज़ल्स ने ले ली। सरकार के दावों के अनुसार इन्वेस्टर्स समिट के सातवें संस्करण में जिसका उद्घाटन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने किया कुल 15.42 लाख करोड़ रुपये के इन्वेस्टमेंट के लिए इच्छा जाहिर किया गया इन्वेस्टर्स द्वारा। पिछले वर्ष जनवरी में किये गए सरकार के दावों के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2007 से 2016 तक आयोजित प्रथम 5 इन्वेस्टर्स समिट के परिणामस्वरूप 1.7 लाख करोड़ रूपये का निवेश प्रदेश में आया जिसकी वजह से 2.40 लाख युवाओं को रोज़गार मिला। हालाँकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इन दावों को कपोलकल्पित बताता रहा है।

उद्योग के क्षेत्र में काम कर रहे विभिन्न संगठनों से जुड़े लोगों के अनुसार उद्योग तथा इन्वेस्टमेंट के क्षेत्र में अन्य कई राज्यों से मध्य प्रदेश के पिछड़ने का प्रमुख कारण है प्रदेश का इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में पिछड़ना। सागर जिले में उल्लेखित सड़क तो मात्र एक उदाहरण है। डिस्ट्रिक्ट रोड हो या स्टेट हाईवे हो या नेशनल हाईवे पूरे प्रदेश में जगह जगह सड़कों की यही हालत है। प्रदेश के दूर दराज इलाकों को अगर छोड़ दिया जाए तो अगर कोई उद्योगपति प्रदेश की राजधानी भोपाल में ही आकर घूम जाए तो उसे इतने गड्ढों के झटके लगेंगे और ट्रैफिक जाम में इतनी देर तक फंसा रहेगा कि वो यहां पर निवेश लाने के बारे में ही भूल जायेगा जबकि वाशिंगटन के दौरे से वापस आने के बाद तल्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि यहां की सड़कें वाशिंगटन से भी अच्छी हैं। भोपाल में गड्ढे इतने हैं कि रोजाना ऑफिस तथा स्कूल आने जाने के समय घंटो ट्रैफिक जाम की स्थिति रहती है। और प्रदेश में सिर्फ सड़कें ही नहीं देश के प्रमुख शहरों से इंदौर को छोड़कर अन्य शहरों का एयर ट्रैफिक से अभी भी अच्छा जुड़ाव नहीं है जिससे उद्योगपति मध्य प्रदेश आने से कतराते हैं।

सरकार के सिंगल विंडो सिस्टम के बड़े बड़े दावों के बावजूद हकीकत ठीक उल्टा है। रेड टेपिज़्म प्रशासन के फैसलों पर हावी है। जरूरत है सरकार द्वारा मजबूत इंफ्रास्ट्रचर के क्षेत्र में बड़े निवेश की और उद्योगपतियों से मिले फीडबैक के अनुसार प्रशासनिक ढाँचे में मूलभूत सुधार की, तभी इन्वेस्टर्स समिट का सार्थक परिणाम निकलेगा नहीं तो साल दर साल इन्वेस्टर्स समिट होते रहेंगे और मध्य प्रदेश देश के अग्रणी 5 राज्यों में तो क्या अग्रणी 10 राज्यों में भी शामिल हो जाए तो बड़ी बात होगी।