Rera In Wrong Direction:कानून में अनुमति 15 दिन में, मप्र में लगते हैं 6 महीने
भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण मप्र याने रेरा की कार्य प्रणाली ग्राहक व कारोबारी के बीच सेतु की होना चाहिये थी, लेकिन इसके गठन के पहले दिन से प्रक्रिया को जटिल बनाकर प्रोजेक्ट्स को लटकाना ही जैसे प्रमुख उद्देश्य हो गया है। रेरा के पास जब भी पंजीयन के तमाम दस्तावेज जमा किये जाते हैं, तब इस संस्था का दायित्व इतना भर है कि वह अपेक्षित दस्तावेजों का मिलान कर पंजीयन क्रमांक देने,न देने का निर्णय ले। सिद्धांतत: यह कार्य 15 दिन से एक माह के बीच हो जाना चाहिये, किंतु रियल एस्टेट क्षेत्र के लोग बताते हैं कि 6-6 माह तक चक्कर काटने के बाद पंजीयन मिलता है। ऐसा इसलिये होता है कि रेरा के कथित जिम्मेदार लोग प्रत्येक अनुमति की समीक्षा करते हैं और उनमें कमियां निकाल कर उसे ठीक करने का पत्र जारी कर देते हैं। इस बारे में शहरी विकास मंत्रालय की स्थायी समिति के स्पष्ट निर्देश हैं कि अनुमतियों की प्रामाणिकता,वैधता नहीं जांचना है, बल्कि डेवलपर से शपथ पत्र भर लेना है। इसका आशय साफ है कि यदि कोई अनुमति गलत है तो उसे ठीक करने की जवाबदारी संबंधित विभाग की है, रेरा की नहीं। उसका भी कोई असर रेरा मप्र पर नहीं हुआ और वे मनमानी करते आ रहे हैं। ज्यादातर राज्यों में 15 दिन से एकाध माह में पंजीयन या अस्वीकृति दे दी जाती है।
इन सब फंदेबाजियों से योजना में विलंब होता है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। डेवलपर के लिये साल,दो साल पहले किये गये सौदे के अनुबंध के आधार पर भूखंड,मकान देना महंगा सौदा साबित होता है। याने रेरा भी उसी तरह से काम कर रहा है, जैसे अन्य संबंधित सरकारी विभाग करते रहे हैं-अटकाओ,व्यक्ति को चक्कर लगवाओ और अपना उल्लू सीधा करो।
रियल एस्टेट क्षेत्र के जानकारों ने बताया कि किसी भी प्रोजेक्ट को रेरा में पंजीयन के लिए जमा करने के लिये तमाम अनुमतियां जरूरी हैं। जैसे, विकास अनुमति,नगर नियोजन से नक्शे की स्वीकृति,पंचायत या नगरीय निकाय से अनुमति,नामांतरण,बटांकन,डायवर्शन व मूल जमीन मालिक से खरीदी पंजीयन या साझेदारी का अनुबंध। कॉलोनी है तो भूखंड की संख्या,आकार। भवन है तो कितनी मंजिल है, कितने फ्लैट हैं, बाल्कनी,छत के आकार-प्रकार आदि की जानकारी होना चाहिये।। इस तरह से रेरा को केवल इतना भर देखना रहता है कि वे सभी अनुमतियां व दस्तावेज पूरे हैं या नहीं । साथ ही यह भी कि जिस प्रक्रिया से आवेदन किया जाता है, उसका पालन किया गया है या नहीं । ऐसे में पंद्रह दिन-एक महीने में रेरा से स्वीकृति के साथ पंजीयन जारी हो जाना चाहिये। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि मप्र रेरा से कोई भी पंजीयन साधारणतया 3 से 6 महीने में जारी होता है। जबकि हरियाणा में 10-15 दिन, महाराष्ट्र में एक माह व अन्य राज्यो में भी कमोबेश एकाध महीना ही लगता है। तब मध्यप्रदेश में ही इतने हीले-हवाले क्यों किये जा रहे हैं औऱ् अभी तक जितने भी चेयरमैन रहे,उन्होंने तत्परता क्यों नहीं दिखाई और क्यों नहीं इस प्रक्रिया को आसान बनाया ?
आइये, इसे भी समझ लेते हैं। रेरा में चेयरमैन सहित 3 सदस्य होते हैं और वे सेवा निवृत्त होते हैं। इस समय ए.पी.श्रीवास्तव चेयरमैन,एस.एस.राजपूत तकनीकी सदस्य और सुश्री राजश्री अग्रवाल न्यायिक सदस्य हैं। साथ ही करीब एक दर्जन अधिकारियों का लवाजमा भी होता है, ,जो सभी सेवा निवृत्त होते हैं। इनमें सेवा निवृत्त आईएएस,राज्य सेवाकर्मी,विधि कर्मी,न्यायाधीश रहते हैं। ऐसा लगता है, जैसे रेरा सेवा निवृत्त लोगों का चारागाह हो। 60 से 65 वर्ष उम्र वर्ग के अधिकारी मनोनीत किये जाते हैं। मौजूदा संदर्भों में इनकी यहां समय व्यतीत करने,वेतन-भत्ते,कार,बंगला पाने से अधिक कोई उपयोगिता नहीं है। इनका रियल एस्टेट क्षेत्र से नाता होना भी आवश्यक नहीं होता। अधिकारियों की नियुक्ति रेरा चेयरमैन करते हैं। दूसरी प्रमुख बात यह कि चेयरमैन को मात्र एक आदेश से हटाया नहीं जा सकता। इसकी भी जटिल प्रक्रिया है। मप्र हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश,मुख्य सचिव,नगरीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव की समिति आचरणगत मसले या भ्रष्टाचार की ठोस शिकायत, किसी आपराधिक कृत्य या 65 वर्ष की उम्र होने पर ही हटा सकती है। इसलिये लगता नहीं कि वर्तमान चेयरमैन को उनकी इच्छा के बिना सरकार हटा पायेगी। ऐसे में यह सोचने में आता है कि इतने भारी भरकम लवाजमे के बाद भी रेरा अपने दायित्व का निर्वहन कानून सम्मत व व्यावहारिक तरीके से न करते हुए मनमाने नियम-कायदे लाद रहा है।
इतने सक्षम चेयरमैन के असीमित अधिकार के परिप्रेक्ष्य में वे अक्सर वह करते चले गये, जो उनके क्षेत्राधिकार से बाहर था। जैसे रेरा को केवल यह देखने का अधिकार है कि सभी आवश्यक अनुमतियां प्राप्त की गई हैं या नहीं । जबकि रेरा उन अनुमतियों में कमी बताकर उसे पूरा करने का पत्र जारी कर देता है। वैसे रेरा को एक माह में निराकरण करना होता है, लेकिन वह एक,एक कर आपत्ति दर्ज कराता है और उनके समाधान के बाद आगे बढ़ता है। इस बारे में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की स्थायी समिति ने फरवरी 2014 को प्रस्तुत अपनी 30 वीं रिपोर्ट के क्लाज 5 के 46 वें बिंदू में कहा है कि रेरा पंजीयन 15 दिन में दिया जाना चाहिये। यदि बहुत अधिक समय लगे तो भी एक माह में तो देना ही है। इतना ही नहीं तो यह भी कहा कि यदि एक माह के भीतर पंजीयन नहीं दिया जा सका तो स्वत: पंजीकृत(डिम्ड परमिशन) मान लिया जायेगा। इतने स्पष्ट उल्लेख का भी मप्र रेरा पर कोई असर नहीं है।
बताते हैं कि वर्तमान चेयरमैन व सरकार के बीच इसी तरह के अनेक मसले को लेकर ठनी हुई है । सरकार उन्हें हटाना चाहती है, लेकिन वे हटने को तैयार नहीं । इसलिये टकराहट हो रही है। इसका खामियाजा खरीदार व कॉलोनाइजर,डेवलपर भुगत रहे हैं।