Reservation for Savarna : SC में सवर्णों को आरक्षण पर सुनवाई, याचिका में 103वें संशोधन की खामियां सामने आई
New Delhi : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को गरीब सवर्णों को आर्थिक आरक्षण देने के लिए संविधान में किए गए 103वें संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं ने 103वें संशोधन की खामियां और संविधान की मूल संरचना को लेकर दलीलें दीं। इस बेंच में चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस रविंद्र एस भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला हैं।
याचिकाकर्ता गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि समानता हमेशा से पिछड़े वर्गों की मांग रही थी, न कि कुलीन वर्गों की। उन्होंने प्रतिनिधित्व मांगा था, उत्थान नहीं। 103वें संशोधन ने वह हक छीन लिया है। आरक्षण से बेहतर प्रतिनिधित्व का कोई तरीका हमारे लिए लाता है, तो हम आरक्षण को अरब सागर में फेंक देंगे।
कोर्ट में सुनवाई
याचिकाकर्ता गोपाल शंकरनारायण के मुताबिक, वह आरक्षण ही था, जिसने दलित व पिछड़े वर्ग को विश्वास दिलाया कि उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। 103वें संशोधन को संविधान पर हमले के रूप में देखना चाहिए इसलिए यह रद्द किया जाए। नया संशोधन 8 लाख से कम आय वाले को आर्थिक रूप से पिछड़ा मानकर आरक्षण का लाभ देता है। आर्थिक स्थिति व वित्तीय क्षमता में अंतर होता है।
जबकि, वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि आरक्षण ऐतिहासिक अन्यायों का प्रतिकार करने के लिए वर्ग आधारित बनाया गया था, जबकि आर्थिक आरक्षण व्यक्तिवादी होता जा रहा है। इस पर जस्टिस रविंद्र ने कहा कि क्या जिन्हें प्रतिनिधित्व है, उन्हें हमेशा के लिए आरक्षण दिया जा रहा है! इस पर वकील मीनाक्षी अरोड़ा का जवाब था ‘103वें संशोधन में पिछड़ा वर्ग को बाहर किया गया है। आरक्षण देने के लिए पिछड़ापन और प्रतिनिधित्व की कमी होनी चाहिए।’
चीफ जस्टिस ने कहा ‘एक विशेष वर्ग को प्रतिनिधित्व से क्यों बाहर किया जाए!’ जबकि, जस्टिस भट ने कहा कि व्यापक समानता निशान नहीं, बल्कि पहचान है। जैसे चुनाव में महिलाओं और पिछड़ों को आरक्षण दिया गया है। इस पर वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण परिवर्तनशील नहीं है। आरक्षण के लिए 50% सीमा हो। इसके बिना आर्टिकल 16 की संरचना ढह जाएगी। इस पर याचिकाकर्ता के एक अन्य वकील संजय पारिख ने कहा ‘पिछड़े वर्ग के लोग आर्थिक आरक्षण के दायरे में आते हैं, तो उन्हें जाति आरक्षण का लाभ ही नहीं मिलेगा। संविधान संशोधन ने 50% आरक्षण की सीमा को लांघा है।’
मामला कहां से उठा
याचिकाकर्ता ने मई में राज्यसभा चुनाव लड़ने के लिए नामांकन फॉर्म खरीदा! लेकिन, उचित प्रस्तावक न हाेने से उसे चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी गई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि इससे उसका अभिव्यक्ति का अधिकार और निजी आजादी का अधिकार बाधित हुआ है। जनप्रतिनिधित्व कानून और चुनाव नियमों में विचार के बाद उम्मीदवार के लिए प्रस्तावक का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का हर्जाना भी लगाया।
अदालत ने कहा ‘चुनाव लड़ना माैलिक अधिकार नहीं‘
सुप्रीम काेर्ट ने कहा है कि चुनाव लड़ने का अधिकार न ताे माैलिक है और न कानूनी! जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की पीठ ने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने के नियमों से जुड़े मुद्दाें काे उठाने वाली याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की थी। पीठ ने कहा था कि काेई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि चुनाव लड़ना उसका अधिकार है।