Reservation: आरक्षण में आरक्षण

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Reservation: आरक्षण में आरक्षणl

 

एनके त्रिपाठी

 

राष्ट्र स्वाधीनता के अठहत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस काल खंड में राष्ट्र ने अनेक आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक बदलाव देखे हैं। इन्हीं वर्षों में सामाजिक न्याय की व्याख्या भी आरक्षण की राजनीति में सिमट गई है।स्वतंत्रता के बाद हिंदू धर्म की उच्च एवं मध्यम जातियों द्वारा लंबे काल से प्रताड़ित अनुसूचित जातियों ( एससी) तथा सभ्यता के कोने में सीमित अनुसूचित जनजातियों ( एसटी) को संविधान द्वारा आरक्षण प्रदान किया गया। इससे उन्हें विधायिका, शासकीय सेवाओं तथा शिक्षण संस्थाओं में सुरक्षित स्थान प्राप्त होने लगे। शताब्दियों से इनके ऊपर अपने द्वारा किए गए अत्याचारों के अपराधबोध से ग्रसित शेष हिन्दू समाज ने इसका स्वागत भी किया। आर्थिक प्रगति के साथ हिंदू समाज की अन्य अनेक जातियों के वंचित नवयुवक भी आरक्षण की माँग करने लगे। मंडल आयोग ने इसके लिए मार्ग प्रशस्त किया और अनेक राजनीतिक उठापटक के बाद मध्य जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग ( ओबीसी) के नाम से क्रीमी लेयर के अपवाद के साथ आरक्षण दिया गया।यह पिछड़ा वर्ग हिंदू धर्म के अनुयायियों का लगभग आधा है। सभी राजनीतिक पार्टियों ने इन नई उभरती संगठित शक्तियों का पूरा दोहन किया और अभी भी उससे लाभ लेने के लिए प्रयासरत हैं।

विशाल पिछड़े वर्ग में भी अधिक पिछड़ी जातियों को अलग से संगठित करने के सफल राजनीतिक प्रयास किये गये हैं। पिछड़ा वर्ग, एससी एवं एसटी में बड़ी संख्या में विकास से और अधिक दूर जातियों के समूह है। एससी एसटी वर्ग में अपेक्षाकृत अधिक शिक्षित, संगठित और सशक्त जातियों ने इसी वर्ग की कम विकसित जातियों की अपेक्षा आरक्षण का अधिक लाभ उठाया है। इन सशक्त संगठित जातियों को राजनीतिक पार्टियों ने प्रश्रय दिया है अथवा इन जातियों ने स्वयं अपनी पार्टियां बना ली है। दुर्भाग्यवश एससी एसटी वर्ग में एक बड़ा तबक़ा ऐसा भी है जो आज भी राष्ट्र के निम्नतम धरातल पर है और उसे आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला है। विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने 6-1 से निर्णय दिया कि एससी एसटी वर्गों की वंचित जातियों को इस वर्ग के आरक्षण के कोटे में से कोटा आरक्षित कर दिया जाए। चार जजों ने तो पिछड़ा वर्ग की तरह एससी एसटी वर्ग में भी क्रीमी लेयर लागू करने के लिए संसद और सरकार का आवाहन किया है। सभी पार्टियों ने मुखर या दबी ज़बान में इस निर्णय को नकार दिया है। मोदी ने इस वर्ग के सांसदों को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को ख़ारिज करने की बात भी स्वीकार की है। कोई भी पार्टी चुनावी बाध्यता के कारण संगठित समूहों को छेड़ने का दुस्साहस नहीं करती है। अपनी अपनी गणना और हितों के अनुसार राजनीतिक पार्टियां जातिवाद के अनेक रूपों को हवा देती रहती है।

कुछ राज्य ऐसे भी थे जिन्हें एससी एसटी के अंतर्गत आरक्षण के कोटे में कोटा देने में लाभ दिख रहा था। 1997 में आँध्र प्रदेश सरकार ने जस्टिस रामचंद्र राजू आयोग गठित किया जिसने एससी वर्ग को चार भागों में बाँटने की सिफ़ारिश की। 2001 में उत्तर प्रदेश सरकार ने हुकुम सिंह समिति गठित की जिसने एससी और ओबीसी में श्रेणियां बनाने की बात की। 2003 मे महाराष्ट्र ने लाहूजी साल्वे आयोग बनाया जिसने भी इसी बात को दोहराया। 2005 के कर्नाटक के जस्टिस सदाशिव पैनल, 2007 के बिहार के महादलित पैनल,राजस्थान के जस्टिस जसपाल चोपड़ा आयोग, 2008 के तमिलनाडु के जस्टिस जनार्दनम पैनल ने इसी प्रकार की सिफ़ारिशें की। परन्तु 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी वर्ग में श्रेणियाँ बनाने को असंवैधानिक बता दिया था। अब उसी निर्णय को पलटते हुए 1 अगस्त, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इन वर्गों में श्रेणियाँ बनाने तथा इनकी पिछड़ी श्रेणियों को आरक्षण के कोटे में से कोटा देने को संवैधानिक बता दिया है।

एससी एसटी को प्रारंभ में और बाद में ओबीसी को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों और उद्देश्यों से इन्हें एक पृथक वर्ग बनाकर इनकी उन्नति के लिए आरक्षण प्रदान किया किया गया था। इससे इन वर्गों में कुछ अपेक्षाकृत अधिक शिक्षित, सशक्त एवं जागरूक जातियाँ उभरकर ऊपर आयी हैं। ये ही जातियाँ अपने ही वर्ग के और अधिक वंचित जातियों को कोटे में कोटे का आरक्षण न देने का पुरज़ोर प्रयास करेगीं। परन्तु अब सामाजिक न्याय के उन्हीं सिद्धान्तों और उद्देश्यों के लिये इन वर्गों के निचले पायदान के जातीय समूहों को भी आरक्षण की सुविधा देना निश्चित रूप से स्वाभाविक तर्क की श्रेणी में आना चाहिए। यह भी निश्चित है कि इसके लिए वंचित जातियों को सफलता के लिए एक लंबा संघर्ष करना अवश्यम्भावी है।

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n k tripathi
एन. के. त्रिपाठी

एन के त्रिपाठी आई पी एस सेवा के मप्र काडर के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उन्होंने प्रदेश मे फ़ील्ड और मुख्यालय दोनों स्थानों मे महत्वपूर्ण पदों पर सफलतापूर्वक कार्य किया। प्रदेश मे उनकी अन्तिम पदस्थापना परिवहन आयुक्त के रूप मे थी और उसके पश्चात वे प्रतिनियुक्ति पर केंद्र मे गये। वहाँ पर वे स्पेशल डीजी, सी आर पी एफ और डीजीपी, एन सी आर बी के पद पर रहे।

वर्तमान मे वे मालवांचल विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलपति हैं। वे अभी अनेक गतिविधियों से जुड़े हुए है जिनमें खेल, साहित्यएवं एन जी ओ आदि है। पठन पाठन और देशा टन में उनकी विशेष रुचि है।