Responsibility of Investment Wrong Decision : कलेक्टरों को जिले में निवेश की जिम्मेदारी सौंपने का विरोध, कहा जा रहा कि ये तो अंग्रेज राज की नीति!

निवेश की उपलब्धि को कलेक्टर और कमिश्नर की ACR से जोड़ने का फैसला आपत्तिजनक

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Responsibility of Investment Wrong Decision

Responsibility of Investment Wrong Decision : कलेक्टरों को जिले में निवेश की जिम्मेदारी सौंपने का विरोध, कहा जा रहा कि ये तो अंग्रेज राज की नीति!

Lucknow : उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के डीएम (कलेक्टर) को मुख्यमंत्री ने अब एक ऐसी जिम्मेदारी सौंपी है, जिसका राज्य में प्रशासनिक स्तर पर विरोध शुरू हो गया। पुराने प्रशासनिक अधिकारियों ने इस व्यवस्था के खिलाफ खुलकर बोलना शुरू कर दिया। यह मामला है जिलों के डीएम को निवेश संबंधी जिम्मेदारी देने का। इस बारे में सीनियर अधिकारियों का कहना है की जिलों में पदस्थ डीएम के पास कई तरह की जिम्मेदारियां होती है। कुछ लिखित है और कुछ अलिखित, ऐसे में उन्हें निवेश संबंधी काम सौंपकर बेवजह उनका काम बढ़ाया गया। सबसे बड़ी बात यह कि इसमें डीएम के परफॉर्मेंस को उनकी एसीआर (अनुवल कांफीडेंशियल रिपोर्ट) से भी जोड़ा जाएगा, यानी यदि उनका काम संतोषजनक नहीं हुआ तो इसका उल्लेख उनकी एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट में भी दर्ज किया जाएगा। यह देश के किसी राज्य में पहली बार हुआ, जब कलेक्टरों को इस तरह का काम दिया गया जो सीधे उनसे नहीं, बल्कि उद्योग विभाग से जुड़ा है।

राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह कदम उठाया है। सरकार की वन ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) को इससे जोड़ दिया।

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अब डीएम और कमिश्नर के कार्यक्षेत्र में निवेश की प्रगति और उनके प्रयासों को मॉनिटर किया जाएगा। डीएम और कमिश्नर की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में उनके कार्यक्षेत्र में हुए निवेश और लोन संबंधी प्रगति का उल्लेख अनिवार्य होगा। दरअसल, 1772 में वारेन हेस्टिंग ने जिस लक्ष्य को ध्यान में रखकर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) यानी कलेक्टर के पद का सृजन किया था। 252 साल बाद उसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने डीएम और कमिश्नर के एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट (एसीआर) के लिए उसे अनिवार्य कर दिया है। 252 साल बाद रेवेन्यू एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में डीएम के लिए फर्स्ट प्रायोरिटी बनने जा रहा है।

ग्रेडिंग इसी रिपोर्ट से दी जाएगी

इसके आधार पर अधिकारियों को ग्रेडिंग दी जाएगी, जिससे उनकी परफॉर्मेंस का निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके। यह कदम प्रदेश में रोजगार और विकास के नए अवसरों को सृजित करने की दिशा में उठाया गया है। इस प्रक्रिया को लागू करने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य होगा। ये निर्णय इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है कि अब डीएम के लिए लॉ एंड आर्डर और डेवलपमेंट से ज्यादा अब रेवेन्यू पर फोकस करना होगा जैसा कि ब्रिटिश काल में होता रहा था। डीएम के स्तर पर कानून व्यवस्था, विकास और राजस्व ये तीन महत्वपूर्ण कार्य थे।

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ब्रिटिश काल में भी राजस्व महत्वपूर्ण रहा

ब्रिटिश काल में जहां राजस्व महत्वपूर्ण था, तो आजाद हिंदुस्तान में कानून एवं व्यवस्था। 1973 में डीएम को न्यायिक सेवा से विरत करने और पुलिस सेवा के अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में विस्तार ने कानून व्यवस्था को सेकेंडरी प्रायोरिटी पर ला दिया। डीएम के लिए उदारीकरण के दौर में विकास को प्रथम वरीयता में रखा गया और जिले में विकास कार्यों की बेहतरी से डीएम की पहचान बनती थी।

निर्णय का विरोध शुरू

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का मानना है कि आजादी के बाद से ही डीएमल जिले के विकास कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है और जिले के विकास की समग्र योजना उसके द्वारा ही क्रियान्वित होती है। जिले में उद्योग लगाने के लिए बिजली, सड़क, पानी और कानून व्यवस्था जैसी परिस्थिति डीएम ही तैयार करता है, ताकि निवेश आए और उद्योग लगे। लेकिन, जब आप उसको एसीआर से जोड़ देंगे तो फिर मुश्किल होगी। डीएम तब लॉ एंड आर्डर और डेवलपमेंट की जगह फिर इन्वेस्टमेंट को ही प्रायोरिटी देंगे। पूरब और पश्चिम में भी अंतर दिखेगा।

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नोएडा का डीएम जो निवेश ला सकता है क्या श्रावस्ती का डीएम वो निवेश ला पाएगा? दूसरी बात निवेश लाने का काम सरकार का होता न कि डीएम और कमिश्नर का। डीएम और कमिश्नर सिर्फ जमीन पर उतरने में मदद कर सकता है, जैसे विभागों से एनओसी, जमीनी विवाद, बिजली व्यवस्था, उद्योग को बढ़ावा देने के बेहतर समन्वय स्थापित करना और बेहतर कानून व्यवस्था देना। डीएम और कमिश्नर अंबानी, अडानी, टाटा जैसी बड़ी कंपनियों से बात करके निवेश को जिले नहीं ला पाएगा।

सरकार के इस फैसले का प्रभाव

डीएम को इससे अलग रखते हुए कमिश्नर को इसकी पूरी जिम्मेदारी देनी चाहिए, जो कि सुपरवाइजिंग अधिकारी भी होता है। डीएम को तहसील प्रशासन, ब्लॉक प्रशासन, ग्रामीण विकास, भूमि सुधार सहित कई मामले देखने होते हैं। लिहाजा, उसको इससे अलग रखना ही चाहिए। अब सरकार का निवेश लाने को लेकर रियल अप्रोच क्या है? उसके लिए थोड़ा वेट करना होगा, ताकि पता तो चले कि वास्तव में चाहते क्या हैं। अब योगी सरकार के सामने ज्यादा से ज्यादा निवेश लाने की चुनौती है और ये काम बिना डीएम और डिवीजनल कमिश्नर के इन्वॉल्व हुए नहीं हो सकता। लिहाजा सरकार ने राजस्व जुटाने के लिए जिला प्रशासन के वारेन हेस्टिंग मॉडल को अपनाने का निर्णय लिया है। सीनियर आईएएस अधिकारियों का अनुमान लगाया जा रहा है कि इस फैसले को बदला जा सकता है।

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