गाँधी सागर अभयारण्य में विलुप्तप्राय “स्याहगोश” की वापसी: सालों बाद कैमरे में कैद हुई जैव विविधता की अनमोल जीत, कलेक्टर ने दी बधाई!

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गाँधी सागर अभयारण्य में विलुप्तप्राय “स्याहगोश” की वापसी: सालों बाद कैमरे में कैद हुई जैव विविधता की अनमोल जीत, कलेक्टर ने दी बधाई!

 

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित गाँधी सागर वन्य-जीव अभयारण्य एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में यहाँ दुर्लभ प्रजाति के “स्याहगोश” (कैराकल) की उपस्थिति कैमरा ट्रैप के जरिए दर्ज की गई है। कैराकल एक जंगली बिल्ली है जो अफ्रीका, मध्य पूर्व और मध्य एशिया में पाई जाती है। यह मध्यम आकार की होती है और इसके विशिष्ट लक्षण हैं – लंबे, काले, गुच्छेदार कान और लाल-भूरे रंग का कोट। कैराकल को “रेगिस्तानी लिंक्स” भी कहा जाता है। भारत में यह प्रजाति अब विलुप्तप्राय मानी जाती है और इसकी मौजूदगी बेहद दुर्लभ है।

स्याहगोश एक शर्मीला, तेज दौड़ने वाला और मुख्यतः रात्रिचर मांसाहारी वन्य-जीव है, जो आमतौर पर शुष्क, झाड़ीदार और पथरीले इलाकों में पाया जाता है।

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जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण”

गाँधी सागर अभयारण्य के वन अधिकारियों ने बताया कि कैमरा ट्रैप में एक वयस्क नर कैराकल की तस्वीर आना जैव विविधता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। यह इस बात का प्रमाण है कि अभयारण्य में संरक्षित आवासों की गुणवत्ता और संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता बरकरार है। यहाँ का शुष्क और अर्द्ध-शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र इतना समृद्ध और संतुलित है कि यह दुर्लभ प्रजातियों को भी सुरक्षित आश्रय दे सकता है।

प्रदेश के लिए गर्व की बात”

मध्यप्रदेश में कई वर्षों बाद संरक्षित क्षेत्र में कैराकल की पुष्टि होना पूरे प्रदेश के लिए गर्व की बात है। यह उपलब्धि न केवल वन्य-जीव शोध के लिए अहम है, बल्कि वन्यजीवों के संरक्षण प्रयासों की सफलता का भी प्रतीक है। वन विभाग और गाँधी सागर अभयारण्य के अधिकारी-कर्मचारियों के समर्पित प्रयासों से यह क्षेत्र आज दुर्लभ प्रजातियों के लिए भी एक सुरक्षित आश्रय-स्थली बन गया है।

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“कलेक्टर ने दी बधाई

इस उपलब्धि पर मंदसौर कलेक्टर अदिति गर्ग ने भी प्रसन्नता जताई है। उन्होंने कहा कि यह गाँधी सागर अभयारण्य के संरक्षण कार्यों और यहाँ की जैव विविधता का बड़ा प्रमाण है। कलेक्टर ने वन विभाग की टीम को बधाई देते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों से न सिर्फ अभयारण्य की पहचान बढ़ती है, बल्कि पूरे जिले और प्रदेश का गौरव भी ऊँचा होता है।

“जीवन शैली”  

कैराकल की जीवनशैली भी काफी रोचक है। यह मुख्यतः रात में शिकार करता है और अपनी तेज रफ्तार के लिए जाना जाता है। इसके कानों के ऊपर काले रंग के बालों की लंबी झुंड होती है, जिससे इसकी पहचान आसान होती है। यह प्रजाति आमतौर पर छोटे स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों का शिकार करती है। स्याहगोश का फिर से मिलना यह दर्शाता है कि यदि प्रकृति को सही संरक्षण मिले तो विलुप्तप्राय प्रजातियाँ भी सुरक्षित रह सकती हैं।

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“संदेश”

यह खबर वन्य-जीव प्रेमियों के लिए बेहद खुशी की बात है और यह संदेश देती है कि यदि हम प्रकृति और जीव-जंतुओं की सुरक्षा के लिए ईमानदारी से प्रयास करें, तो विलुप्तप्राय प्रजातियों को भी बचाया जा सकता है। स्याहगोश की वापसी ने गाँधी सागर अभयारण्य की पहचान और महत्व को और बढ़ा दिया है, जिससे यहाँ की जैव विविधता और संरक्षण कार्यों को नई ऊर्जा मिली है।