हैदराबाद पुलिस अकादमी में 1974 बैच के IPS अधिकारियों का 50 साल बाद पुनर्मिलन समारोह
सुदेश गौड़ की रिपोर्ट
भोपाल। हैदराबाद में स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी 15 व 16 अप्रैल को 1974 बैच के आईपीएस अधिकारियों का लिए एक पुनर्मिलन समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस समारोह में 1974 में बैच के 80 से अधिक IPS अधिकारी व उनके परिजन शामिल होंगे। 50 साल पहले भारतीय पुलिस सेवा का प्रतिष्ठित प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अधिकारियों के लिए यह बहुत ही गौरवशाली क्षण होगा जब वे अपने पुराने साथियों से मुलाकात करेंगे, अपने अनुभव साझा करेंगे और उनके आधार पर भविष्य की रणनीति के लिए नींव तैयार करेंगे।
मध्य प्रदेश के तीन वरिष्ठ IPS अधिकारी एनके त्रिपाठी, एसके राउत और डॉ.पन्नालाल भी हैदराबाद में होने वाले इस विशिष्ट पुनर्मिलन कार्यक्रम के भागीदार होंगे।
*अनुभवों का मिला-जुला पिटारा*
इस भावपूर्ण पुनर्मिलन समारोह के संबंध में इंदौर में निवासरत डॉ.पन्नालाल से चर्चा की। 50 साल बाद कुछ साथियों से पहली बार मिलने को लेकर उत्साहित डॉ.पन्नालाल कहते हैं कि यह बहुत ही भावुक क्षण होने वाला है,जब मैं अपने कुछ साथियों से प्रशिक्षण के बाद पहली बार मिलूंगा। वे बताते हैं कि हमारे बैच में देश के हर राज्य के लोग थे। कई लोगों की तो देश के दूरस्थ स्थानों पर तैनाती हुई कि आज तक उनसे कभी मिलने का मौका ही नहीं मिला।
50 साल के अपने अनुभव को वे साहसिक, अवसाद के क्षण, खुशी के क्षण, निराशा के क्षण का एक मिला-जुला पिटारा बताते हैं लेकिन विजयश्री का भाव सबसे मूल और उत्तम भाव है। वे मानते हैं कि पुलिस अकादमी के प्रशिक्षण में हमें मूलत: सिखाया जाता है कि किस प्रकार नकारात्मक और बुरे व्यक्तियों को समाज के लिए सकारात्मक और बेहतर बनाना है। पुलिस प्रशिक्षण का यह भाग निश्चित रूप से एक अत्यंत अनोखा अनुभव होता है।
*जीवन को दिशा देने वाला था प्रशिक्षण*
हैदराबाद स्थित सरदार पटेल अकादमी में अपनी ट्रेनिंग के बारे में वे बताते हैं कि वह ट्रेनिंग अपने आप में काफी अनोखी होती है क्योंकि उसे समय हम सब युवा होते हैं, जोश से भरे होते हैं, इस कारण सब चीज सहजता से कर लेते हैं। प्रशिक्षण का दौर वास्तव में काफी कठोर और अनुशासन का जीवन होता है। कई लोगों का तो इसे छोड़ देने तक का मन भी हो जाता था पर हमारे प्रशिक्षण अधिकारी काफी संवेदनशील होते थे। उनके उत्साही बातें सुनकर हम सब फिर अपने संकल्पों के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाते थे। उनको इस बात का मलाल भी है कि 50 साल बाद अकादमी में वापस जाने पर अकादमी में प्रशिक्षण देने वाला का कोई भी चेहरा शायद ही दोबारा देखने को मिलेगा। उन दिनों की याद करते हुए वह बताते हैं कि शारीरिक प्रशिक्षण के लिए हवलदार स्तर के लोग होते थे जो प्रशिक्षण के दौरान हम लोगों के साथ काफी कड़ाई से पेश आते थे लेकिन प्रशिक्षण के उपरांत वे अत्यंत विनम्रता के साथ क्षमा मुद्रा में रहते थे कि आप सब तो साहब लोग हो। यदि हम इस ट्रेनिंग में थोड़ी भी लापरवाही बरतेंगे तो वह आप एक अच्छे, सक्षम और श्रेष्ठ अधिकारी नहीं बन पाएंगे इसलिए प्रशिक्षण के दौरान हम अपने स्टेटस को नजरंदाज कर आप सब लोगों के साथ कड़ाई से पेश आते हैं।
नक्सलवादी आंदोलन और इसके घटाटोप अंधेरे के बीच पलते बढ़ते बस्तर को बेहद कारीब से देखने वाले डॉ पन्नालाल मध्यप्रदेश कैडर, 1974 बैच के सेवानिवृत्त IPS अधिकारी हैं।
हिंदी और अंग्रेजी में स्नातकोत्तर और हिंदी साहित्य में पीएचडी, डा पन्नालाल ने भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी के रूप में तत्कालीन मप्र के नक्सल प्रभावित जिलों में सर्विस का लंबा समय गुजारा है। पन्नालाल उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुलिस मैडल फॉर गैलेंट्री, राष्ट्रपति पुलिस मेडल फॉर मेरिटोरियस सर्विस, राष्ट्रपति पुलिस विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किए गए हैं। अपने कार्यकाल के दौरान पन्नालाल कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। भारतीय पुलिस सेवा में आने से पहले पन्नालाल उत्तरप्रदेश शासन में डिप्टी कलेक्टर के पद पर भी रह चुके थे।
भारतीय पुलिस सेवा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पद तक अपनी सेवाएं देने के पश्चात पन्नालाल ने वर्ष 2003 में स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अध्ययन अध्यापन के कार्य में रम गये। अपनी जन्मभूमि इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश और कर्मभूमि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पुलिस, प्रशासन और सामाजिक स्तरों पर किये गए उनके कई कार्य उल्लेखनीय रहे हैं।
हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में समान पांडित्य रखने वाले डॉ पन्नालाल कई पुस्तकों के लेखक भी हैं।हिंदी साहित्य में “मध्यकालीन हिंदी साहित्य पाठ और अर्थाद्घाटन की समस्याएं तथा समाधान विषय पर उनका अध्ययन किताब के रूप में प्रकाशित हुआ है, वहीं अंग्रेजी भाषा में इन डिफेंस ऑफ रीती पोयट्री” पुस्तक प्रकाशित हुई है।नक्सलवादी आंदोलन पर उनकी पुस्तक लाल गलियारा या द रेड कॉरिडोर भी काफी चर्चा में रही। वे अभी एक और पुस्तक लगभग पूरी कर चुके हैं जिसका प्रस्तावित शीर्षक है ‘कुछ यादें, कुछ बातें’।इस पुस्तक में डॉक्टर पन्नालाल ने पुलिस सेवा के दौरान अपने अनुभव लिपिबद्ध किए हैं जैसे देवास में किया गया एनकाउंटर, इंदौर, उज्जैन की अनेक चर्चित घटनाएं और अनुभव इस पुस्तक में। वह बताते हैं कि कानून व्यवस्था से जुड़ी संप्रदायिक स्थितियों से उन्होंने कैसे सफलतापूर्वक निपटा इसका भी इस पुस्तक में उल्लेख किया है।