

संतोष चौबे की नयी पुस्तक-परंपरा और आधुनिकता :
Review of Santosh Chaubey’s new Book: ऐसे खुलती गई लेखक के रचनात्मक व्यक्तित्व की अंदरूनी परतें !
बहुआयामी रचनाकार संतोष चौबे जी की पुस्तक “परंपरा और आधुनिकता “ संस्कृति, इतिहास , कला, दर्शन, प्रकृति और रचनात्मकता के विभिन्न आयामों के दृश्य प्रस्तुत करते चलती है. हमारे समय में ऐसे साहित्यकार कम है जो बौद्धिक ऊर्जा के साथ-साथ रचनात्मक प्रतिभा भी धारण करते हैं और सतत् सृजनरत है. संतोष जी उस तरह के विरल व्यक्ति हैं. हिंदी भाषा समुदाय के पुराने तथा नए रचनाधर्मियों के साथ दुनिया भर में वे समन्वय बनाते हुए चल रहे हैं .
परंपरा और आधुनिकता पुस्तक के आलेखों के संचयन में उनके रचनात्मक व्यक्तित्व की अंदरूनी परतें खुलती जाती हैं, जिसमें उनकी वैचारिक और सामाजिक आस्थाएं उभर कर सामने आती है .यह प्रस्तुतीकरण इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि यह इतिहास की पड़ताल करते हुए भविष्य तक की कार्य योजनाओं का निर्माण करता है. इसे पढ़ने की प्रक्रिया में कुछ पुरानी धारणाएं बादल भी सकती हैं और नए वैचारिक परिदृश्य उपस्थित हो सकते हैं. सारे आग्रहो -दुराग्रहों, सहमति -असहमति के संकुचित दायरे से निकलकर यह पुस्तक चिंतन परंपरा को प्रतिष्ठित करती चलती है.
संसार भर में संभवत आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि अथवा बौद्धिक दर्शन की ऐसी कोई भी ऊंचाई नहीं है कि जिसका समतुल्य पुरातन वैदिक ऋषियों और अर्वाचीन विस्तृत ऐतिहासिक काल में ना पाया जाता हो . प्रोफेसर गिल्बर्ट मरे के शब्दों में “प्राचीन भारत मूल में दुखद होने पर भी विजय और एक विशिष्ट उज्जवल प्रारंभ है ,जो चाहे कितनी भी संकट पूर्ण स्थिति में क्यों ना हो ,संघर्ष करते-करते उच्च शिखर तक पहुंचा है.”
संतोष जी ने वैदिक कवियों की निश्चल सूक्तियां ,उपनिषदों की अद्भुत सांकेतिकता और विलक्षण मनोवैज्ञानिक विश्लेषण ,शंकर का विस्मयकारी दर्शन जैसे सांस्कृतिक दृष्टिकोण को कंसीडर करते हुए अपने आलेखों के माध्यम से निष्पक्ष और वैज्ञानिक भाव से समझाया है. इसे पढ़ते हुए अनुभव किया जा सकता है सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भारतीय विचारधारा दुनिया भर की समस्त विचारधाराओं से भिन् न होते हुए भी विशिष्ट हैं तथा इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है. भारत की प्राचीन अद्भुत रचनाओं में साहस पूर्ण अतिशयोक्तियां देखी जा सकती है ,फिर भी उनके भीतर प्रवाहित होने वाले विचार और चेतना आज के समय में भी महत्वपूर्ण हैं. संतोष जी इतिहास में जाते हैं ,युक्तियुक्त तरीके से विभिन्न विचारधाराओं तथा दृष्टान्तों को आज के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं .
भारतीय विचार के इतिहास को अविभक्त एवं संपूर्ण इकाई के रूप में प्रतिपादित करने का प्रयास डॉक्टर राधा कृष्णन द्वारा भारतीय दर्शन में किया गया . जिसमें उन्होंने आरंभिक वैदिक काल से लेकर ऐतिहासिक विकास का विवेचन करते हुए प्रमुख धाराओं, विविध धर्म परंपराओं तथा भारत के विशिष्ट आध्यात्मिक विचार की विस्तृत स्पष्ट व्याख्या की है.
इन आलेखों में तार्किक भावनाओं से अवगत कराया है और यह भी बताया है कि केवल वैचारिक स्तर पर बात ना करते हुए क्रियान्वयन किया जाना अत्यंत आवश्यक है.
इन आलेखों में एक तरह से दृढ़ता पूर्वक तर्क दिया गया है कि वास्तविक परिवर्तन और उन्नति प्राचीन परंपरा के मर्म को आत्मसात करने के बाद ही संभव है.
इस संबंध में मैक्स मूलर ने लिखा है , “मैं जो अनुभव करता हूं, वह यह है कि किसी प्राचीन दर्शन के प्रत्यय वचनों की पुनरावृति ही पर्याप्त नहीं है ,अपितु उचित है कि हम पहले उन प्राचीन समस्याओं को अपने आगे रखें, उन्हें अपना समझे और फिर उन प्राचीन विचारकों के पद चिन्हों का, जिन्हें वे अपने पीछे छोड़ गए हैं , का अनुसरण करने का प्रयत्न करें .”
तथ्यों का संग्रह और साक्ष्य का एकत्रीकरण एक महत्वपूर्ण भाग अवश्य है ,किंतु उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है की वर्तमान परिस्थितियों में और उक्त संबंध में तथ्यों और विचारों को जनसाधारण को आकर्षित करने के लिए उपयोगी साहित्य रचा जाए।
वर्तमान परिदृश्य में उनके अंतर संबंधों की पड़ताल करने वाले आलेख अपने समय की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए नई सोच की ओर इंगित करते हैं .संतोष जी मात्र शब्द शिल्पी नहीं है ,वे वैश्विक दृष्टिकोण रखने वाले विचारक भी हैं .
लगभग 20 वर्षों से विभिन्न विषयों पर उनके विचारों व दृष्टि को इन लेखों में देखा जा सकता है .यह आलेख एक तरह से वैचारिक परिपक्वता की सीढ़ियां चढ़ने की प्रक्रिया को दर्शाते हैं. परंपरा और आधुनिकता के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा से लेकर विरासत ,कविता में जीवन दृष्टि, विज्ञान ,चित्रकला , रचनात्मकता और प्रकृति, बाल साहित्य का क्षेत्र, डिजिटल समय में साहित्य ,वर्चुअल दुनिया की संभावना, प्रवासी साहित्य, तापमान वैश्विक स्तर पर हिंदी का परिदृश्य तथा विश्व रंग की भूमिका जैसे विषयों पर उन्होंने अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है .

वे विज्ञान के साधक है अतः इन निबंधों में भी अपनी बात की पुष्टि के लिए वह एविडेंस प्रस्तुत करते चलते हैं .परिपक्वता के लिए अपने विचारों के आधार के प्रति उनकी कृतज्ञता हर निबंध में परिलक्षित होती है . परंपरा व आधुनिकता के अंतर को समझने के लिए वे 3000 वर्ष ईसा पूर्व के कालखंड को टटोलते हुए बढ़ते हैं . इस काल यात्रा में कला और साहित्य पर इतिहास की घटनाओं के प्रतिबिंब की विस्तृत व्याख्या की गई है .देश की भौगोलिक सीमाओं राजनीतिक धार्मिक मान्यताओं व सांस्कृतिक विरासत का प्रभाव बौद्धिक संपदा व कला पर देखा गया है .मुसलमान के आक्रमण और आधिपत्य ने हमारी विविधता को नया आयाम दिया यूरोपीय ने हमारी सभ्यता को प्रभावित किया. परंपरा के संबंध में वे लिखते हैं ,”परंपरा कोई एक नहीं बल्कि अनेक है और अनेकता का सम्मान किया जाना चाहिए “. पहला आलेख लंबा है , जिसके अंत में संतोष जी ने आधुनिकता की सही पहचान के बारे में लिखा है कि वह एक दृष्टि है जो इतिहास के प्रवाह को पहचानती है विविधता और भिन्नता का सम्मान करती है और मानवीय गरिमा के पक्ष में काम करती है।
सभ्यता व संस्कृति में अंतर परिभाषित करते हुए वह भारत की विरासत को व्याख्याित करते हैं. राष्ट्र के आंतरिक सौंदर्य और उसके समाज की शक्ति पर विचार करने का समय है. यही शक्ति व सौंदर्य विरासत बनाते हैं .धर्म की सिंथेसिस से संवाद कायम होते हैं ,जो विकास के लिए जरूरी है .इस बात को संतोष जी इस्लाम के सूफीवाद और शंकर के अद्वैतवाद की चर्चा करते हुए प्रतिपादित करते हैं .
कविता में जीवन दृष्टि और विज्ञान का समावेश हो तो वह आज के जटिल समय में हस्तक्षेप कर सकने की क्षमता अर्जित करती है ,ऐसा उनका मानना है . इसके लिए उदाहरण व कविताएं आलेख को अधिक रुचिकर बनाती है .भारतीय चित्रकला के इतिहास तथा इवोल्यूशन में राग माला चित्रों की परंपरा संगीत और चित्रकला के बीच संबंध बनाते हैं इसका उल्लेख किया है . कला साधकों का साक्षात्कार अपने समय में कला की पहचान का सूत्र हो सकता है .लेखक ने विनय उपाध्याय के साक्षात्कारों के संकलन पर लंबी चर्चा की है. कहानी के नएपन में उत्तर आधुनिक चमक समाज में आते बदलावों के चलते नजर आती है. संतोष जी की यह बात जचती है ,”कुहासा वगैरह जो भी है हमारे दिमाग में है और हम ही ने एक मकड़जाल की तरह उसे अपने दिमाग में बुन रखा है . हम अगर सिर्फ अपनी आंखों का प्रयोग करें तो परंपरा के स्वस्थ आयामों को देख लेंगे .”
“प्रकृति ,संस्कृति और रचनात्मक आलेख” में लेखक ने प्रकृति ,ज्ञान परंपरा ,अस्तित्व के स्तरों की भिन्नताएं, ब्रह्मांड की निरंतर चेतना और उनके परस्पर संबंध से रचनात्मकता पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया है. राग माला का उल्लेख लेखक कई सन्दर्भों में करते हैं .विशेष रूप से उनके उपन्यास जल तरंग में राग माला के चित्रों का जीवंत हो कर पात्रो से वार्तालाप करना एक नया प्रयोग है .
बाल साहित्य की चुनौतियों में वे मानते हैं कि बच्चे एक स्वतंत्र इकाई है और उन्हें स्वतंत्रता प्रिय होती है .बच्चों के लिए लिखे जा रहे साहित्य में रचनात्मकता के अलावा ध्वन्यात्मकता का महत्त्व कम नहीं है. प्रकृति के साथ खेलना ,नई नई छविया गढ़ना और कल्पना के घोड़े पर सैर करना बच्चे पसंद करते हैं .अतः रचे जाने वाले साहित्य में परंपरा उल्लास और संवेदना होना बहुत ज़रूरी है .यह विचार विचारणीय प्रश्न है कि क्या अनुभव क्षमताओं की कमी ने बाल साहित्य को कमजोर बनाया है ?
साहित्य और कलाएं हमारे जीवन में उसे सघन छाया की तरह थी जहां ठहर कर थोड़ा विश्राम किया जा सकता था. इसके अलावा बाजारवाद व भाषा भी बड़ी चुनौतियां हैं. कथेतर गद्य के विषय में वह कहते हैं कि स्मृति के उत्खनन के माध्यम से गद्य में संवेदनात्मक गहराई बढ़ाने का काम कथेतर गद्य बखूबी करता है .वास्तव में आज कथेतर गद्य सूचनाओं का संवाहक होने के अलावा जीवन के विभिन्न आयामों में गहरे तक उतर गया है . डिजिटल समय में साहित्य और कल की बहस को टेक्नोलॉजी के संदर्भ में संदर्भ से आगे बढ़कर साहित्य और कलाओं के मूलभूत उद्देश्य को पूरा करना भी है .
संतोष जी लेखकों को वर्चुअल दुनिया के द्वार खोलने के लिए प्रेरित करते हैं क्योंकि लेखन को जीवित रखने के लिए उसमें प्रवेश का खतरा उठाने अनिवार्य है. विश्व रंग के माध्यम से उन्होंने प्रवासी भारतीय साहित्य को नहीं ऊंचाइयों तक पहुंचाया है तथा विभिन्न प्लेटफार्म पर उनकी अभिव्यक्ति को फलने फूलने का अवसर दिया है. विश्व में हिंदी को नई दिशा देने में संतोष ने जो कदम उठाए हैं उन्हें भौतिक रूप से देखना जरूरी है कुछ शब्दों और आलेखों में उसे समझना कठिन है।
यह कहा जा सकता है कि परंपरा और आधुनिकता की हमारी बहस को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखने पर उसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. अपनी विरासत की खोज के लिए देश के साहित्य और कला के विभिन्न आयामों पर दृष्टिपात करना आवश्यक है .इस पुस्तक में संतोष जी ने अपने समय के महत्वपूर्ण कवियों लेखकों और कला के उपासकों का उल्लेख करते हुए उनके योगदान को रेखांकित करते हैं. इस संग्रह के माध्यम से उन्होंने वर्तमान परिदृश्य की चुनौतियों को चिन्हित किया है. साथ ही साथ टेक्नोलॉजी के विकास और नए टूल्स की उपस्थिति से लेखन और कला साधकों को परिचित करते हुए उनके प्रयोग के लिए प्रेरित भी किया है. यद्यपि प्रत्येक आलेख स्वतंत्र है फिर भी सभी इंटरकनेक्टेड प्रतीत होते हैं।
तेजी से बदलते समय में यद्यपि भविष्य की घोषणा करना संभव नहीं होगा, परंतु समाज में ज्ञान पिपासा बनाए रखने के लिए मानवीय संवेदनाओं और कलाओं को रचना में ढालकर प्रस्तुत करना आवश्यक हो गया है. उस संदर्भ में यह पुस्तक विचारों के साथ-साथ कार्य योजना बनाए जाने की दिशा में भी प्रकाश डालते डालती है .

डॉ वीणा सिन्हा,भोपाल
लेखिका भोपाल में वनमाली सृजन केन्द्र की संयोजिका हैं।