Lucknow : समाजवादी पार्टी में पारिवारिक बगावत के बाद छोटी बहू अपर्णा यादव भाजपा में शामिल हो गई। यादव परिवार में विधानसभा चुनाव से पहले इसे बड़ा राजनीतिक झटका माना जा रहा है।
अपर्णा के भाजपा में जाने से SP पर कोई बड़ा असर न हो, पर परिवार में हुई इस टूट ने अखिलेश यादव को पीछे जरूर धकेल दिया। सपा ने कुछ दिन पहले भाजपा के नेताओं को तोड़कर जो संदेश देने की कोशिश की थी, उससे भी बड़ा संदेश भाजपा ने मुलायम सिंह परिवार को तोड़कर दे दिया।
UP में योगी सरकार बनने के बाद अपर्णा कई बार CM योगी से मिली। उन्होंने कई ऐसे बयान दिए, जिनसे अखिलेश यादव का राजनीतिक नुकसान भी हुआ। राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा जुटाने वालों को अखिलेश ने चंदाजीवी कहा था जबकि, अपर्णा ने राम मंदिर के लिए 11 लाख रुपए का दान दिया।
मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना यादव की एंट्री के साथ ही परिवार में बगावत शुरू हो गई थी। तब अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम से बगावत की थी। अखिलेश बेहद नाराज रहने लगे थे और मुलायम की हर बात अनसुनी करते थे। पिता और पुत्र के बीच बढ़ती दूरियों को कम करने और परिवार को एक साथ लाने की जिम्मेदारी तब अमर सिंह ने उठाई थी। अमर सिंह ने साधना यादव को परिवार में एंट्री दिलाई और बाद में अखिलेश यादव को भी मनाया। ये पारिवारिक लड़ाई घर से बाहर निकल गई।
इस परिवार को एक रखने के लिए करीब 16-17 साल पहले एक समझौता हुआ था। समझौते के मुताबिक पिता की राजनीतिक विरासत के इकलौते वारिस अखिलेश यादव होंगे। साधना के बेटे प्रतीक यादव कभी भी राजनीति में नहीं आएंगे।
उस वक्त जो प्रॉपर्टी थी, उसे भी दोनों भाइयों में बराबर-बराबर बांट दिया गया था। परिवार के करीबी लोगों का दावा है कि पार्टी में उस वक्त यह भी तय हुआ था कि साधना यादव के परिवार का खर्चा समाजवादी पार्टी उठाएगी।
परिवार के करीबियों का मानना है कि इस बार अखिलेश ने फैसला कर लिया था, कि न तो अपर्णा को टिकट देंगे और न कहीं जाने से रोकेंगे। अखिलेश यादव ने इस बार परिवार के किसी भी सदस्य को टिकट न देने का फैसला किया है।
राजनीति में करियर बनाने के लिए बेताब अपर्णा के लिए यह फैसला बेहद परेशान करने वाला था। इसके बाद ही अपर्णा भाजपा के संपर्क में आईं और अब पार्टी में शामिल हो गई।
टूट गया समझौता
प्रतीक यादव लगातार कहते हैं कि वो कभी राजनीति में नहीं आएंगे। लेकिन, अपर्णा के राजनीतिक भविष्य को लेकर उनका उनका कहना था कि इसका फैसला नेता मुलायम सिंह यादव और खुद अपर्णा कर सकती हैं। अपर्णा की हमेशा से राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही है। वे परिवार की दूसरी बहू डिंपल यादव की तरह पार्टी में अधिकार चाहती थीं।
अपर्णा की जिद की वजह से मुलायम सिंह यादव ने 2017 में अपर्णा को पार्टी का टिकट दिलवाया था, लेकिन अपर्णा कांग्रेस से भाजपा में आई रीता बहुगुणा से चुनाव हार गईं थी। इस पर अपर्णा का आरोप था कि अखिलेश यादव ने ही उनको चुनाव हरवाया। था।
शिवपाल यादव का क्या होगा!
हमेशा अपर्णा के समर्थन में खड़े होने वाले शिवपाल सिंह यादव का अगला कदम क्या होगा, अब इसको लेकर भी माहौल गर्म है। 2016 में चाचा-भतीजे के बीच हुए विवाद के दौरान अपर्णा, चाचा शिवपाल के साथ खड़ी रहीं। अपर्णा हमेशा कहती थीं कि वो वही करेंगी जो नेता जी और चाचा शिवपाल कहेंगे। खबर यह है कि शिवपाल अभी समाजवादी पार्टी के साथ रहेंगे।