

Round Table Conference : जजों का रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद ग्रहण करना, चुनाव लड़ना नैतिक चिंताएं पैदा करने वाला!
‘मीडियावाला’ के स्टेट हेड विक्रम सेन की रिपोर्ट
New Delhi : भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाओं का जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पूरी प्रणाली की अखंडता में विश्वास खत्म हो सकता है। ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंगलवार को आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में ‘न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना’ विषय पर भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने अपने उद्बोधन में भारत में न्यायपालिका और उससे जुड़े कई विषयों पर भी अपनी बात रखीं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए और हर लोकतंत्र में न्यायपालिका को न केवल न्याय देना चाहिए, बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रखने का हकदार है। उन्होंने कहा कि दुःख की बात है कि न्यायपालिका के भीतर भी भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले सामने आए हैं और ऐसी घटनाओं का जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे पूरी व्यवस्था की अखंडता पर लोगों का भरोसा खत्म हो सकता है। हालांकि, इस विश्वास को फिर से बनाने का रास्ता इन मुद्दों को संबोधित करने और हल करने के लिए की गई त्वरित, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई में निहित है। भारत में जब भी ऐसे मामले सामने आए हैं, तो सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित कदम उठाए हैं।
उन्होंने आगे कहा कि किसी न्यायाधीश द्वारा राजनीतिक पद के लिए चुनाव लड़ने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह पैदा हो सकता है। क्योंकि, इसे हितों के टकराव या सरकार का पक्ष लेने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। सेवानिवृत्ति के बाद की ऐसी गतिविधियों का समय और प्रकृति न्यायपालिका की ईमानदारी में जनता के विश्वास को कमजोर कर सकती है। क्योंकि, इससे यह धारणा बन सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य में सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक भागीदारी की संभावना से प्रभावित होते हैं।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनके कई सहयोगियों और उन्होंने स्वयं सार्वजनिक रूप से यह वचन दिया है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कोई भूमिका या पद स्वीकार नहीं करेंगे। यह प्रतिबद्धता न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता को बनाए रखने का एक प्रयास है। सार्वजनिक पारदर्शिता बढ़ाने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने संविधान पीठ के मामलों की लाइव स्ट्रीमिंग भी शुरू की है।
प्रधान न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि वैधता और जनता का विश्वास आदेश के दबाव से नहीं बल्कि अदालतों द्वारा अर्जित विश्वसनीयता के माध्यम से सुरक्षित किया जाता है। इस विश्वास के किसी भी क्षरण से अधिकारों के अंतिम मध्यस्थ के रूप में न्यायपालिका की संवैधानिक भूमिका कमजोर होने का खतरा है। पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतांत्रिक गुण हैं। आज के डिजिटल युग में जहां सूचना स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होती है और धारणाएं तेजी से आकार लेती हैं, न्यायपालिका को अपनी स्वतंत्रता से समझौता किए बिना सुलभ, समझदार और जवाबदेह होने की चुनौती का सामना करना चाहिए।
उन्होंने आगे बताया कि कैसे न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणी, जो हल्के-फुल्के अंदाज में कही गई थी, को गलत तरीके से पेश किया गया। उन्होंने कहा पिछले सप्ताह ही मेरे एक सहकर्मी ने एक जूनियर वकील को हल्के-फुल्के अंदाज में कोर्ट क्राफ्ट और सॉफ्ट स्किल्स की कला के बारे में सलाह दी थी। इसके बजाय, उनके बयान को गलत संदर्भ में लिया गया और मीडिया में इस तरह से रिपोर्ट किया गया। हमारा अहंकार बहुत नाजुक है, अगर आप इसे ठेस पहुंचाते हैं, तो आपका मामला खत्म हो जाएगा।
अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि न्याय के लिए जजों का स्वतंत्र होना आवश्यक है। मुख्य न्यायाधीश गवई ने कॉलेजियम का जिक्र करते हुए कहा कि भारत में हमेशा से ही जजों की नियुक्ति को लेकर विवाद रहा है। यह विवाद न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच न्यायिक नियुक्तियों में प्राथमिकता को लेकर रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने जजों की नियुक्ति विषय पर कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने सीजेआई की नियुक्ति में मनमानी की थी। उन्होंने सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों को नजरअंदाज कर उनसे जूनियर को चीफ जस्टिस बनाया था। इस गोलमेज सम्मेलन में भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, इंग्लैंड और वेल्स की महिला मुख्य न्यायाधीश बैरोनेस कैर और लॉर्ड लेगट भी शामिल हुए।