
RSS Chief’s message: “परिक्रमा कृपा सार” के विमोचन के जरिये क्या है भागवत सन्देश?
रंजन श्रीवास्तव की विशेष रिपोर्ट
भोपाल : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत अपनी अति व्यस्तता के बीच अगर मध्य प्रदेश में सिर्फ एक पुस्तक विमोचन के लिए आते हैं तो इस किताब और इसके लेखक का महत्व समझा जा सकता है.
किताब का नाम “परिक्रमा कृपा सार” है जो मध्य प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल द्वारा उनके द्वारा नर्मदा नदी के परिक्रमा के दौरान लिखे गए लेखों का संकलन है और जैसा कि किताब के नाम से ही विदित है संकलित लेख “नर्मदा मैया”, परिक्रमा, जल और पर्यावरण के हमारे जीवन में महत्व को रेखांकित करते हैं और यह बताते हैं कि कैसे हमारे जीवन, समाज और संस्कृति को पल्लवित, पुष्पित करने में नदियों विशेषकर नर्मदा नदी का महत्व है.
यह संयोग हो सकता है कि यह किताब इस समय आया है जबकि नदियों में से रेत चोरी को लेकर मध्य प्रदेश में समाज के एक बड़े वर्ग में चिंता व्याप्त है और यह साफ़ दिख रहा है कि माफियाओं द्वारा नदियों से रेत चोरी बल्कि डकैती बिना राजनीतिज्ञों के संरक्षण के संभव नहीं है.
वस्तुतः माफियाओं ने नदियों को रेत से खोखला करते हुए नदियों के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है.
पुनः वापस मूल विषय पर आते हुए यह कहा जा सकता है कि पुस्तक का विमोचन नर्मदा नदी के उस आध्यात्मिक पक्ष को भी रेखांकित करता है जो कि इस नदी के भौतिक पक्ष से कहीं ज्यादा बड़ा है इसलिए साधु, संत, बैरागी और सामान्य जन नर्मदा की परिक्रमा करके इहलोक और परलोक दोनों को सुधारने की कोशिश करते हैं.
प्रह्लाद सिंह पटेल मध्य प्रदेश के पहले ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने नर्मदा नदी की परिक्रमा एक बार नहीं बल्कि दो – दो बार पैदल चलते हुए की है. वे पहले ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने पैदल चलते हुए नर्मदा परिक्रमा के दौरान अपने स्वयं के अनुभव पर आधारित किताब लिखी है तथा मध्य प्रदेश में 105 ज्यादा नदियों के उद्गम स्थल पर जा चुके हैं नदियों को जन सहयोग के जरिये बचाने की मुहिम के तहत.
संभवतः यही कारण होगा कि आरएसएस प्रमुख ने परिक्रमा पर आधारित किताब के विमोचन के लिए इंदौर (मध्य प्रदेश) आना उचित समझा.
अगर किसी राजनीतिज्ञ के तौर पर यह किताब लिखी गयी होती तो आरएसएस प्रमुख ऐसे किसी किताब के विमोचन के लिए शायद ही आते. उनके द्वारा इंदौर में दिए गया भाषण समाज के उन सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को रेखांकित करता है जिनमें क्षरण लगातार जारी है, समाज के भीतर दूरियां बढ़ी हैं, हम की जगह मैं की भावना का विस्तार होता जा रहा है और सेवा, दया, क्षमा, करुणा इत्यादि मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है.
उन्होंने कहा कि जैसे नर्मदा अपने प्रवाह में स्थिर और शांत रहती है, वैसे ही हमें जीवन में संतुलन और धैर्य बनाए रखना चाहिए. सच्ची प्रगति बाहरी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि आत्म-निरीक्षण और आध्यात्मिक जागरण से आती है.
उन्होंने कहा कि आज के दौर में लोग बाहरी चकाचौंध में खो रहे हैं, लेकिन असली ताकत “स्वयं को जानने” में है. भारत की प्राचीन भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जब भारत विश्व गुरु था, तब दुनिया में शांति और समृद्धि थी.
उन्होंने कहा कि भारत को फिर से वही भूमिका निभानी है, लेकिन इसके लिए हमें अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों को मजबूत करना होगा.
मोहन भागवत ने कहा कि समाज को बांटने वाली ताकतें हमें कमजोर करती हैं. उन्होंने अपील की कि हमें “वसुधैव कुटुंबकम्” (विश्व एक परिवार है) की भावना को अपनाना चाहिए. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि पर पीड़ा को अपनी पीड़ा समझना ही आध्यात्मिकता है.
वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में राजनीतिज्ञ और गैर राजनीतिज्ञ आरएसएस की बातों का शायद ही अनुसरण करें.
बढ़ते हुए भौतिकवाद की चकाचौंध में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है.
न्यूक्लियर फेमिली का रिवाज बढ़ता जा रहा है. संयुक्त परिवार टूटने से लोगों में असुरक्षा की भावना भी बढ़ रही है. बच्चों के पालन पोषण और उनके विकास में नयी और पश्चिमी संस्कृति हावी होती जा रही है. ओल्ड एज होम की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे भी पुत्र हैं जो विदेश में जाकर अपने माता पिता को ही भूल गए हैं. ऐसे उदाहरण भी सामने आये जब माता या पिता की मृत्यु पर उनके पुत्रों ने विदेश से यहाँ आकर उनका अंतिम संस्कार करना भी उचित नहीं समझा. महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध बढ़ते जा रहे हैं.
सामाजिक विकृतियां अख़बारों के पन्नों में रोज स्थान पा रही हैं. समाज में घृणा और द्वेष को जान बूझकर बढ़ावा दिया जा रहा है और इसमें राजनीतिज्ञों और तथाकथित धार्मिक गुरुओं की महती भूमिका है.
ऐसे में जीवंत नर्मदा मैया और उनकी परिक्रमा यह सन्देश रोजाना दे रही है कि हम अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिवेश को सुदृढ़ बनाएं और एक मजबूत राष्ट्र बनें.




