RSS & PM Modi: सुदर्शन होते तो ज्यादा बरसते मोदी पर…

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RSS & PM Modi: सुदर्शन होते तो ज्यादा बरसते मोदी पर…

संघ और केंद्र की भाजपा सरकारों के बीच 2004 और 2024 में कड़वाहट भरा माहौल देखा गया है। 2024 चुनाव के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आइना दिखाया था। हालांकि मोदी बहुमत न मिलने पर भी एनडीए गठबंधन संग तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने में सफल रहे। तब भी भागवत ऐसे भड़के थे कि मोदी को अहंकार न होने के प्रमाण पेश करने ही पड़े थे। अगर भागवत की जगह सुदर्शन होते तो यह तय है कि मोदी को अहंकार त्यागने की जगह पद छोड़ने की सलाह ही देने से नहीं चूकते। और नीतियों का खुलकर विरोध करने से भी नहीं हिचकते। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर मामले में सरकार को आइना दिखाया है, वैसे ही सुदर्शन तो पहले ही चेतावनी और विरोध दर्ज करा चुके होते। 2004 में उन्होंने अटल और आडवाणी को राजनीति से संयास लेकर युवाओं के लिए जगह खाली करने का फरमान ही सुना दिया था। और कई मौकों पर तत्कालीन अटल सरकार की नीतियों पर खुलकर आपत्ति दर्ज कराई थी। आज पांचवे संघ प्रमुख सुदर्शन की याद इसलिए क्योंकि उन्होंने 15 सितंबर 2012 को ही रायपुर में अंतिम सांस ली थी। वर्तमान में पिछले 10 सालों में यह पहला मौका है जब आरएसएस बीजेपी के खिलाफ मुखर होने को मजबूर हुआ। ऐसे में सभी को 2004 का दौर याद आ गया। वह दौर केएस सुदर्शन और अटल बिहारी वाजपेयी का था। तब संघ और बीजेपी के रिश्ते अब तक के अपने सबसे नाजुक मोड़ पर थे। और नाजुक मोड़ों ने अब भी भाजपा और आरएसएस के बीच तल्खी जैसा माहौल बना दिया था। ‘ऑर्गेनाइजर’ मैगजीन ने लिखा, ‘चुनाव नतीजे भाजपा के अति आत्मविश्वासी नेताओं के लिए आईने की तरह हैं। किसी ने लोगों की आवाज नहीं सुनी।’

खैर पहले सुदर्शन का जीवन दर्शन कर लेते हैं। सुदर्शन का मध्यप्रदेश से गहरा नाता था। कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन (18 जून 1931-15 सितम्बर 2012) एक भारतीय कार्यकर्ता और 2000 से 2009 तक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पांचवें सरसंघचालक थे। सुदर्शन का जन्म रायपुर, मध्यप्रदेश (अब छत्तीसगढ़ में) में एक संकेथी ब्राह्मण हिंदू परिवार में हुआ था। उन्होंने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से दूरसंचार (ऑनर्स) में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की थी।उनके माता-पिता कर्नाटक के मंड्या जिले के कुप्पाहल्ली गाँव से थे । वह केवल नौ वर्ष के थे जब उन्होंने पहली बार आरएसएस शाखा में भाग लिया। 1954 में उन्हें प्रचारक के रूप में नियुक्त किया गया। प्रचारक के रूप में उनकी पहली पोस्टिंग मध्य प्रदेश के रायगढ़ जिले (अब छत्तीसगढ़ में ) में हुई थी। 1964 में, उन्हें काफी कम उम्र में मध्यभारत का प्रांत प्रचारक बनाया गया था। 1969 में, उन्हें अखिल भारतीय संगठन प्रमुखों का संयोजक नियुक्त किया गया। इसके बाद उत्तर-पूर्व (1977) में कार्यकाल रहा और फिर, उन्होंने दो साल बाद बौद्धिक प्रकोष्ठ (आरएसएस थिंक-टैंक) के प्रमुख का पद संभाला। 1990 में, उन्हें संगठन का संयुक्त महासचिव नियुक्त किया गया। उन्हें अलग-अलग अवसरों पर शारीरिक और बौद्धिक प्रमुख दोनों पदों को संभालने का दुर्लभ गौरव प्राप्त है। जनवरी 2009 में, उनकी आजीवन निस्वार्थ सामाजिक सेवा और राष्ट्र निर्माण में उनके विशाल योगदान को स्वीकार करते हुए; शोभित विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश ने उन्हें मानद डॉक्टर ऑफ आर्ट्स की उपाधि से सम्मानित किया था।

 

सुदर्शन के हिंदी प्रेम की तारीफ कर सकते हैं। हालाँकि वे भारत की विभिन्न भाषाओं को जानते थे, लेकिन उन्हें हिंदी से स्वाभाविक प्रेम था। वे भारतीयों के लिए अंग्रेजी की अनुपयुक्तता के बारे में बात करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि हम अपनी मातृभाषा में बहुत ही उपयुक्त तरीके से अपनी बात कह सकते हैं। वे अंग्रेजी और उसकी समस्याओं के बारे में हास्य व्यंग्य के साथ बात करते थे। उन्होंने उस समय के कुछ हिंदी समाचार-पत्रों में अंग्रेजी शब्दों और वाक्यांशों के उपयोग इस्तेमाल पर अपनी नाखुशी भी व्यक्त की थी।

 

सुदर्शन 10 मार्च 2000 को आरएसएस के सरसंघचालक (सर्वोच्च प्रमुख) बने।उन्होंने राजेंद्र सिंह का स्थान लिया, जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ दिया था। राजेंद्र सिंह के डिप्टी एचवी शेषाद्रि ने उनकी जगह लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था। इसलिए सुदर्शन आरएसएस प्रमुख बने, जो कमान की पंक्ति में तीसरे स्थान पर थे। अपने स्वीकृति भाषण में सुदर्शन ने याद किया कि कैसे उन्हें मध्यभारत क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। उन्होंने कहा कि हालांकि शुरुआत में वह जिम्मेदारी लेने में झिझक रहे थे, लेकिन तत्कालीन आरएसएस सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने उन्हें अपना मन बनाने में मदद की। उन्होंने कहा, “मैं अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में सक्षम था क्योंकि मुझसे वरिष्ठ लोगों ने मेरा पूरा सहयोग किया।”

संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन ने भाजपा की खुलेआम खिंचाई करते हुए कहा था, ‘संघ से बड़ा और संघ से जरूरी कोई काम नहीं हो सकता है।’ साल 2005 में एक इंटरव्यू में तो उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को अकर्मण्य तक कह दिया और उन्हें संन्यास लेने की नसीहत दे डाली थी।बीजेपी की हार के बाद 2005 में केएस सुदर्शन ने कहा था लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी को युवा पीढ़ी के नेताओं के लिए अब जगह बनानी होगी। तब वाजपेयी भले ही संघ को अपनी आत्मा करार देते रहे हों, लेकिन संघ के नेता और तमाम अनुषांगिक संगठन खुलेआम उन पर हमलावर थे। फिर वही बात कि यदि केएस सुदर्शन होते तो मोदी और उनकी सरकार पर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत की तुलना में ज्यादा तीखी प्रतिक्रिया देते और नीतियों पर असहमति जताने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। यानि कि सुदर्शन होते तो भागवत की तुलना में न केवल मोदी पर ज्यादा बरसते बल्कि संयास का मार्ग भी दिखा

देते…।