“सावन की पाती” खंड -2 : सुर लय ताल सब ले आओ बदरा

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“सावन की पाती” खंड -2 :सुर लय ताल सब ले आओ बदरा 

प्रतिष्ठा पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति मंच  द्वारा भीगे हुए मौसम में रिमझिम फुहारों पर आयोजित काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत  बारिश की कुछ भीगी भीगी कवितायें ,कवि को वर्षा प्रिय है क्योंकि वह उसे पुरानी स्मृतियों में ले जाती है । छत पर बारिश की आवाज सुनकर वह सोचता है कि यह आनंद है।आइये आनंद लेते है, कुछ कोमल मन भावन कविताओं का यह संग्रह “सावन की पाती” खंड -2   आपको भी पसंद आएगा.

वर्षा का इंतजार

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उमड़ घुमड़ घिर घिर जाओ बदरा,
काली घटाओं से छाओ बदरा,
कहीं पर कजरी की तान लिए ,
कहीं पर भिगोकर चले जाओ बदरा।

सुर लय ताल सब ले आओ बदरा,
थिरकते मयूरों की ताल बन बदरा,
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सूरज को अपनी घटाओं में छिपाकर,

पहाड़ों को करधन पहना जाओ बदरा।

सुरमई अखियों का कजरा बन बदरा,
हरियाली चूनर पहना जाओ बदरा,
बदली बरसात की बन कर आओ,
दामिनी के साथ लिए छा जाओ बदरा।

झर झर झरने बहा जाओ बदरा,
दर्पण धरती को बना जाओ बदरा।
निर्झर से मोती बिखेर जाओ बदरा,
इंद्रजाल बन बरस जाओ बदरा।

—-मनीषा व्यास

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वर्षा आई वर्षा आई

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मौसम ने ली अंगड़ाई,वर्षा आई वर्षा आई
तपते अषाढ की तपिश से झुलस रहा है सबका तन मन
तप रही अमराई भी भभक रही वसुन्धरा कर रही कृन्दन
पावस से उठते गुबार , बवंडर झंझावातों से व्यथित कणकण
अमलतास ने अपने पुष्पों की चादर से ढक दिया धरा का तन
चातक तीतर ने संकेत दिया निकले चूंटी के पर छाने लगे घन
मानसून की ये दस्तक घिर आई घटा बरस पड़ी बूंदें छनछन
अवनी को सहलाती बूंदें सौंधी माटी की खुशबू से छाई पुलकन
बिजली कौंध अम्बर पर गरजे बादल मोर नाचे दादुर लगे टर्राने
मौसमने ली अंगड़ाई तन मन पुलकित रसिक लगे मल्हार गाने
मेघों ने ढ़क अम्बर को धरती की प्यास बुझा अविरल झड़ी लगाई
रिमझिम रिमझिम वर्षा आई वर्षा आई…….

     —–———  ममता सक्सेना

‘धरती की गोद मे गिरी धप्प से बादल से जल बूंद ‘