साधक को मन की शुद्धि के साथ श्रद्धाभाव से साधना करना चाहिए : पंडित अश्विन शास्त्री
रतलाम : यदि साधक की श्रद्धा सच्ची है तो साधक जिसकी साधना कर रहा हैं उसकी मूर्ति भी बुदबुदाने लगती है एकलव्य ने श्रद्धा के साथ मिट्टी के द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर सच्ची साधना की थी जिसकी वजह से वह श्रेष्ठ धनुर्धर बन पाया, पर जरूरी है कि साधक को मन की शुद्धि के साथ श्रद्धा भाव से साधना करना चाहिए। यह बात कालिका माता मंदिर परिसर में श्री शिव आराधना महोत्सव के तहत श्रीमद देवी भागवत कथा का वाचन करते हुए पंडित अश्विन शास्त्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं से कही।
उन्होंने कहा कि मां भगवती को गन्ना अर्पण किया जा सकता है, पीली सरसों, लोंग, इलायची के साथ हवन करने व मंत्रोच्चार के साथ आहुति देने से व्यक्ति के रोगों का नाश होता है। वैदिक यज्ञ में सौ प्रकार की औषधियों का प्रयोग किया जाता हैं। यदि व्यक्ति के जीवन में ब्राह्मण तथा आचार्य अच्छे हो तो उसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
राजा दशरथ में सात्विक यज्ञ किया था जिसके फलश्रुति के रूप में उन्हें प्रभु श्रीराम पुत्र के रूप में प्राप्त हुए। ज्ञान यज्ञ में आहुति नहीं देना होती है किंतु सुनने की जरूरत होती है मानसिक रूप से एकाग्र होकर बैठ कर मन से स्वाहा करना मानसिक यज्ञ कहलाता है किंतु यह बहुत कठिन प्रक्रिया के बाद संपन्न होता है, इस यज्ञ से व्यक्ति के मन की चंचलता एकाग्र होकर ठहर जाती है। भगवती की उपासना स्मरण व यज्ञ करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है तथा सारे पाप जलकर भस्म हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपने भवन पर धर्म ध्वजा पताका लगाना चाहिए। द्वार पर तोरण, शंख, चक्र, गदा उकेरे हुए होना चाहिए व्यक्ति को उठते ही सबसे पहले श्रीराम, जय श्रीकृष्ण या हरि नाम के साथ सुबह का जयघोष करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अयोध्या जहां सारे विकार नष्ट हो जाते हैं व्यक्ति के शरीर में जीवन में विकार होते है इन विकारों से छुटकारा पाने के लिए जीवन को अयोध्या बना लेना चाहिए, नित्य भगवान के नाम का गुणानुवाद करना या सुनना चाहिए इससे सारे विकार समाप्त हो जाते हैं।
समिति प्रवक्ता राकेश पोरवाल ने बताया कि कथा के प्रारंभ में पोथी पूजन अध्यक्ष मोहनलाल भट्ट ने किया। आरती पूर्व महापौर शैलेंद्र डागा, सनातन सोशल ग्रुप अध्यक्ष अनिल पुरोहित नागरिकों ने की अंत में आरती कर प्रसादी वितरित की गई।