Joint Collector Behind The Bars : छात्रावास अधीक्षिका को सलाम!

मामला SDM द्वारा आदिवासी बालाओं के साथ अश्लीलता करने का!

Joint Collector Behind The Bars:छात्रावास अधीक्षिका को सलाम! 

डॉ .स्वाति तिवारी की ख़ास रिपोर्ट 

उस महिला छात्रावास अधीक्षिका  का नाम है निर्मला झरबड़े। 56 साल की इस  महिला की हिम्मत की  दाद देना चाहिए, उसे सलाम करना चाहिए क्योंकि उन्होंने जिस हिम्मत से एक डिप्टी कलेक्टर, जिसके पास उस क्षेत्र के एसडीएम के अधिकार थे, के खिलाफ उसकी गंदी हरकतों की महिला कलेक्टर को जानकारी दी और पुलिस में FIR दर्ज कराई।
अनुसूचित जनजाति विभाग में संभवतः यह पहला मामला होगा जिसमें एक अधीक्षिका ने अपनी नौकरी को दांव पर लगाकर एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत की। इस मामले में कलेक्टर तन्वी हुड्डा  की भी तारीफ करना होगी  जिन्होंने  एक महिला के दर्द को समझा और उन बच्चियों के भविष्य और उनकी सुरक्षा ,उनके उत्पीडन को ध्यान में रखा ,मामले को दबाया नहीं .बल्कि अधीक्षिका की बात को गंभीरता से लिया और तत्परता से कार्रवाई की। इसका परिणाम यह हुआ कि न सिर्फ वह अधिकारी सस्पेंड हुआ वरन उसकी गिरफ्तारी भी हुई।अंततः वे सलाखों के पीछे गए .

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पूरा मामला यह है कि झाबुआ के आदिवासी कन्या आश्रम में रविवार को दिन में 3:00 बजे अचानक एसडीएम साहब आ धमकते है। वे अधीक्षिका को हुक्म देते हैं कि वह बाहर ही रहे,वे छात्रावास का निरीक्षण करने आए हैं। निरीक्षण तो बहाना था। इस बहाने वे नाबालिग आदिवासी बालाओं के साथ ऐसा कुछ करने आए थे जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।Indore News: आदिवासी छात्राओं से अश्लील और अभद्र व्यवहार करने पर डिप्टी कलेक्टर सुनील कुमार झा के खिलाफ एफआइआर - Indore News FIR against Deputy Collector Sunil Kumar Jha ...

बाद में इस मामले में अधीक्षिका द्वारा की गई पुलिस एफ आई आर के बाद इंदौर के संभाग आयुक्त ने झाबुआ के एसडीएम सुनील कुमार झा को निलंबित कर दिया है।
पुलिस में दर्ज FIR के अनुसार एसडीएम सुनील कुमार झा ने रविवार के दिन 3 बजे झाबुआ के अनुसूचित जनजाति विभाग के कन्या आश्रम का अचानक दौरा किया। इस दौरान उन्होंने कुछ लड़कियों के साथ अनर्गल बातचीत की और छेड़छाड़ भी की। एक बालिका को तो किस करने तक का प्रयास किया। उन पर पाक्सो एक्ट की धाराएं भी लगाई गई है। यह घटना रविवार के दिन निरीक्षण करते समय किये गए दुराचार के परिणाम स्वरुप घटित हुई है .
हालांकि यह कोई पहली अनहोनी  घटना  नहीं है .आदिवासी छात्रावासों में इस तरह की ख़बरें पहले भी आती रही है,कई किस्से सुनने में भी आयें है . सवाल यह है कि देश में अनुसूचित जनजाति के बच्चों की शिक्षा के लिए तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय (1961-66) से छात्रावास योजना चल रही है. केंद्र सरकार से आर्थिक सहयोग प्राप्त कर राज्य सरकारें अपने या गै़र-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के अधीन इन आदिवासी बच्चों को हॉस्टल सुविधा देती हैं. लेकिन सुविधा के  साथ साथ दी जानेवाली सुरक्षा व्यवस्था में अभी भी कई होल्स बाकी है. इतने लम्बे समय से संचालित होते आदिवासी कन्या छात्रावासों में ये घटनाएँ यह बताती है कि आज भी मानसिकता वही है कि ये बच्चे आपके ओहदे ,रुतबे और भय के चलते आपकी करतूत को बाहर नहीं ले जा पायेंगे और इन संस्थाओं में  कार्यरत कर्मचारी खासकर अधीक्षिका की हिम्मत नहीं होगी कि किसी वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ अपनी जुबान खोले.मतलब  देश में आदिवासी महिलाएं इतने सालों से शोषण की शिकार होती रही है और हो रही है ,और छात्रावास इस तरह के लोगो के लिए सहज उपलब्ध समझ लिए जाते है .
कहने का अर्थ यह है की उच्च पदों के निरीक्षण कर्ताओं से शिक्षक,अधीक्षक इत्यादि भयाक्रांत रहते है. उनके पद,रुतबे और अधिकार क्षेत्र छोटे कर्मचारियों के कर्तव्य और इमानदारी पर भारी पड़ते है, जिसके चलते वे चुप रहने में ही भलाई समझते है। कई बड़ी घटनाओं पर भी वे खामोश रह जाते है .
यहाँ अधीक्षिका निर्मला झरबड़े की हिम्मत और बालिकाओं के प्रति अभिभावक भाव की जितनी तारीफ की जाए कम है। अधीक्षिका ने अधिकारी के ओहदे,रुतबे और अपनी नौकरी की परवाह ना करते हुए इस घटना के खिलाफ आवाज उठाई । वह हिम्मत करके कलेक्टर के पास पहुंची और उन्हें घटना के बारे में  विस्तार से जानकारी दी।
SDM आरोपी को ना केवल सस्पेंड करने तक सीमित रही बल्कि उन्हें पोक्सो एक्ट के साथ गिरफ्तार भी करवाने में कामयाब हुई. वे बहादुर बच्चियां भी प्रशंसा की पात्र हैं जिन्होंने बहुत छोटी होने के बावजूद गुड टच और बेड टच में अंतर को समझते हुए ,डरने के बजाय अपनी अधीक्षिका को सब बताया .

 

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विभाग को इस घटना को व्यापक समस्या के रूप में देखना पड़ेगा. इन दिनों पूरा आदिवासी समाज शहरी और गैर-आदिवासी समाज द्वारा अपमानित और प्रताड़ित किया जा रहा. इस काम में राजनीति से जुड़े लोग , सुरक्षा बल-पुलिसवाले और प्रशासक वर्ग के नाम सुने जाते रहे हैं। आदिवासी बच्चे अगर उनसे ही असुरक्षित है जिन्हें सुरक्षा का जिम्मा है तो फिर ये किससे शिकायत करेंगे। जब बागड़ ही खेत खाने लगेगी तो फिर कोई क्या कर सकता है?
प्रदेश के जनजातीय वर्ग के छात्र एवं छात्राओं के लिये विभाग द्वारा छात्रावास योजना संचालित की जाती है। कक्षा 01 से लेकर 12वीं तक स्कूली शिक्षा हेतु एवं महाविद्यालयीन कक्षाओं में अध्ययनरत छात्र एवं छात्राओं के लिये छात्रावास एवं आवास सहायता योजना संचालित की जा रही है। छात्रावास में छात्र एवं छात्राओं को निशुल्क आवासीय सुविधा- भवन, बिजली एवं पानी, भोजन व्यवस्था, फर्नीचर, बिस्तर सामग्री, पुस्तकालय, कोचिंग जैसी अन्य आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती है। विभाग द्वारा कई श्रेणी के छात्रावास संचालित किये जा रहे है। यह घटना एक छोटी उम्र के बच्चों के छात्रावास की है तो बड़ी बच्चियों के छात्रावास कितने असुरक्षित हो सकते है, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है .
छात्रावास की एक घटना भोपाल में भी खूब चर्चा में आई थी जब आदिवासी छात्रावास की लगभग 10 लड़कियां 26 जून 2017 की रात को हॉस्टल के बाहर सड़क पर रोती हुई मिली थी। पेट दर्द और घबराहट की शिकायत कर रही लड़कियों को कुछ राहगीरों ने चून्नाभट्‌टी स्थित एकहॉस्पिटल पहुंचा दिया था। अस्पताल के डाक्टर ने लड़कियों के साथ शारीरिक प्रताड़ना की आशंका जताते हुए मेडिकल चेकअप की बात कही थी।
इन घटनाओं से सबक लेते हुए सरकार को इनकी सुरक्षा व्यवस्था को और पुख्ता करना होगा .अभी नियमानुसार कोई भी पुरुष अधिकारी सूर्यास्त के पश्चात होस्टलों में नहीं जा सकते .लेकिन अब छोटे शहरों ,दुर्गम क्षेत्रों के आश्रमों इत्यादि की  स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसी भी पुरुष वर्ग का निरीक्षण के नाम पर छात्रावासों में प्रवेश प्रतिबंधित किया जाना चाहिए , चाहे वह विभाग का कोई वरिष्ठ अधिकारी ही क्यों न हो?  किसी महिला अधिकारी ,महिला पुलिस और अधीक्षिका की उपस्थिति को अनिवार्य करते हुए आवश्यकता होने पर ही निरीक्षण करने का अधिकार दिया जाना चाहिए .
अब समय आ गया है जब नियमों को भी पुख्ता करने की तरफ शासन को ध्यान देना होगा वरना इस एसडीएम के समान ही कई हैवान इन बालाओं के साथ छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आएंगे?