‘सानंद न्यास’ सम्मान संगठन, सहकार और समरसता का ‘सानंद’
– दिनेश पाठक
इंदौर के मराठी भाषियों के लिए ‘सानंद’ एक पवित्र गंगा-जमुना संगम है, जहाँ संगीत, नाटक और शास्त्रीय संगीत की अविरत अमृत धारा प्रवाहित होती है। रवींद्र नाट्य गृह में केवल निमंत्रितों के लिए होने वाले निश्चित कार्यक्रमों के अतिरिक्त ‘सानंद’ इंदौर के समस्त मराठी भाषियों के लिए और अन्य भाषा-भाषी रसिक जनों के लिए वर्ष भर में 3 या 4 खुले प्रांगण में सार्वजनिक निःशुल्क कार्यक्रम ‘फुलोरा’ उपक्रम के अंतर्गत आयोजित करता है। ‘फुलोरा’ का अर्थ है पुष्प गुच्छ। ‘सानंद’ न्यास का ही एक अंग. फुलोरा के कार्यक्रम निःशुल्क होने से आयोजन- प्रयोजन के समस्त व्यय की राशि उन सभी रसिक संगीत प्रेमियों से एकत्रित की जाती है। इन कार्यक्रमों में से एक हर साल शरद पूर्णिमा की रात, विशाल पैमाने पर सानंदोत्सव नाम से आयोजित होता है।
यह स्पष्ट है कि इंदौर में मराठी भाषियों ने अपनी साधना, तपस्या और प्रयत्नों से एक अलग पहचान बनाई है। ऐतिहासिक परंपरा तो है ही, पर वर्तमान आर्थिक बिखराव के इस युग में परस्पर स्नेह, एकता और संगठन-समरसता का ‘सानंद’ एक अप्रतिम और अनुपम उदाहरण है, जो समस्त भाषा-भाषियों के लिए अनुकरणीय कही जा सकती है। इस न्यास को स्थापित करने का विचार शहर के प्रसिद्ध इंजीनियर सुधाकर काले को था। उन्होंने अपने इन विचारों से अपने कुछ घनिष्ठ साथियों को अवगत कराया, जिससे एक वार्षिक निश्चित धनराशि के एवज में संस्था के सदस्यों के लिए मराठी नाट्य प्रस्तुतियों का आयोजन किया जाए। इसमें सदस्यों के लिए पूरे साल के लिए सीट आरक्षित रहेगी। इस प्रकार के व्यवस्थित आर्थिक नियोजन के साथ ‘सानंद न्यास’ को स्थापित किया गया। 1994 से सानंद’ द्वारा मराठी नाटक का सिलसिला लगातार बना हुआ है, जिसने शहर में एक नया दर्शक वर्ग भी तैयार किया और इंदौर को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित भी किया।
संस्था के सचिव जयंत भिसे बताते हैं कि चार हजार से अधिक सदस्यों के साथ इसे देश का सबसे बड़ा कलाप्रेमी समूह होने का गौरव मिला। जनवरी 1993 में न्यास की स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि शहर के मराठी भाषियों को कला और संस्कृति से वही हो भाषा में रूबरू कराया जा सके। तब गाहे-बगाहे कार्यक्रम होते थे। ऐसे में करीब 400 सदस्यों को एक साथ जोड़कर मराठी दर्शक समूह तैयार किया गया। स्थापना के समय से न्यास ने दर्शकों के लिए स्तरीय कार्यक्रम आयोजित करने का संकल्प लिया। जब दर्शकों की संख्या बढ़ने लगी तो उन्हें अलग-अलग समूह में बांटा गया, ताकि कोई भी कार्यक्रम सभी दर्शकों को देखने- सुनने को मिले। अब इसके पांच दर्शक समूह हैं, जिनके हर कार्यक्रम अलग-अलग समय पर होता है। 11 पदाधिकारियों के अलावा ‘सानंद मित्र’ नाम से युवाओं को भी जोड़ा गया जो इसका फील्ड मैनेजमेंट देखते हैं। बड़े कार्यक्रमों में 100 से ज्यादा लोग सहयोग देते हैं, जो 25 हजार दर्शकों की व्यवस्था संभालते है।
मासिक नाट्य प्रस्तुति संस्था का सबसे प्रमुख आकर्षण होता है। इसमें मराठी के किसी प्रसिद्ध नाटक का महीने में एक बार मंचन कराया जाता है। इसके साथ ही सानंदोत्सव, गुड़ी पड़वा और दिवाली पर विशेष कार्यक्रम होते हैं। वहीं न्यास के अनु उपक्रम ‘फुलोरा’ के तहत बड़े कार्यक्रम सभी रसिकों के लिए किए जाते हैं। यही वजह है अभी चार हजार दर्शक न्यास से जुड़ने की प्रतीक्षा में हैं। सानंद ने देश में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इसी कारण मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग के द्वारा उनका प्रतिष्ठित राजा मानसिंह तोमर राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। यह पुरस्कार कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्था को राष्ट्रीय स्तर पर दिया जाता है। यह पुरस्कार प्राप्त करना सानंद की पिछले 35 वर्षों की सतत मेहनत साधना व परिश्रम का प्रतिफल है। आज इस संस्था के 4000 सदस्य हैं।
सदस्यों के लिए महीने में एक बार नाटक,फिल्म या संगीत का कार्यक्रम होता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, उसका सही समय पर प्रारंभ होना। सभी का स्थान पूर्व निर्धारित होता है। आप किसी कारणवश देर से भी पहुंचे तो भी आपको आपका स्थान खाली मिलेगा। सानंद के कार्यक्रमों के लिए सभागार समय के साथ बदलते गए, पर आपको इन कार्यक्रमों में कभी भी किसी किस्म का शोर सुनाई नहीं दिया। यहां तक कि आपस में बात तक नहीं होती। हाथ हिलाकर मूक अभिवादन से ही भावनाएं व्यक्त होती हैं और सब कुछ स्वेच्छा स्व-अनुशासन और स्वविवेक से। नाटक का परदा उठता है हाल में अंधेरा और सन्नाटा और सभी डूब जाते हैं सानंद में आनंद उठाने के लिए। कभी नाटक पसंद न भी आए तो लोग इंटरवल का इंतजार करते हैं या जरूरी होने पर चुपचाप निकल जाते हैं। मध्यांतर का समय होता है परिचितों से मिलने का उनके हाल-चाल पूछने का। फिर लगभग सभी एक-दूसरे को जानते हैं नाटक के में डूबे लोग। नाटक के अलावा कोई चर्चा ही नहीं करते।
मध्यांतर की घंटी बजते ही सभी अपने-अपने स्थान पर लौट जाते हैं। न कोई शोर न कोई धक्का-मुक्की। नाटक खत्म होते ही कोई घर जाने की जल्दी नहीं करता, क्योंकि वंदे मातरम का गान होता है। सारे दरवाजे खुले होने पर भी भारत माता की जय-जयकार करने का पावन अवसर कोई खोना नहीं चाहता। इतने व्यवस्थित व अनुशासित माहौल में यह न समझिए कि मनोरंजन नहीं होता। प्रत्येक कामेडी पर तालियों की गड़गड़ाहट और हंसी से हाल गूंज उठता है। जन समुदाय को एकता के सूत्र में पिरोने, समय-समय पर राष्ट्रीय त्योहारों को एक अप्रतिम अनोखा व अभूतपूर्व आयोजन बनाकर राष्ट्र प्रेम व राष्ट्र चेतना जगाने व सुनियोजित तरीके से कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने व हर कार्यक्रम को उत्कृष्ट तरीके से सफल व सहज बनाने में सानंद न्यास के हर कार्यकर्ता की भूमिका महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है। सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने की होड़ में लगे सशक्त माध्यमों के बीच अपनी संस्कृति-सभ्यता को सहजता से संजोकर इससे नई पीढ़ी को अवगत कराने का जो दायित्व निस्वार्थ भाव से संस्था के अध्यक्ष श्रीनिवास कुटुंबले व सचिव जयंत भिसे वर्षों से निभा रहे हैं, उसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।
आयोजन की सुखद अनुभूति
‘सानंद’ के एक सदस्य के अनुसार ‘सचमुच उस समय एक बहुत सुखद अनुभूति होती है जब आप नाटक देखने के लिए नाट्यगृह में प्रवेश करते हैं। महिला दर्शकों को फूलों की वेणियां और पुरुषों को इत्रपान कराया जाता है और मकर संक्रांति को गुड़ तिल का वितरण भी। सब कुछ कितना सहज है और आत्मीय जैसे अपने ही परिवार के बहुत सारे लोग एक साथ किसी शुभ काम के लिए एक स्थान पर एकत्र हुए हों। ठीक सानंद बोध वाक्य की तरह ‘मराठी असे आमुची मायवेतों, ग्या ही बढ़ाई सुकार्य विणे’ अर्थात मराठी हमारी मातृभाषा है मगर अच्छे कार्य किए बगैर इस बात की डींग हांकना बेकार है। इसी प्रेरणा वाक्य से प्रेरित इंदौर के मराठी भाषी समाज ने अपने कार्य के माध्यम से सांस्कृतिक क्षेत्र में एक नई प्रेरणा एक नया उत्साह और एक नई रोशनी प्रस्फुटित की है।
सानंद के कभी न भूलने वाले आयोजन
‘गोष्ट सांगा प्रतियोगिता’ सफल व्यक्तित्व एवं ऐतिहासिक व्यक्तियों को गढ़ने में दादा-दादियों द्वारा सुनाई जाने वाली कहानियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। इसलिये दादा-दादियों के लिए गोष्ट सांगा प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। राहुल द्रविड अभिनंदन समारोह, पं. जसराज, भारतरत्न पं. भीमसेन जोशी, पं. शंकर महादेवन, पं हरिहरन, उस्ताद जाकिर हुसैन का एकल तबला वादन, आशा भोसले, डॉ गुरूदेव शंकर अभ्यंकर की विविध विषयों पर व्याख्यानमालाएं, श्रीमंत बाबासाहेब पुरंदरे जो की व्याख्यानमाला, बाबा महाराज कीर्तन समारोह, सुरेश वाडकर, अशोक हाडे जी की अनेक कार्यक्रम, पं सुरेश तळवलकर ने अपनी अपनी प्रस्तुतियों से सानंद और इंदौर के रसिक श्रोताओं को अभिभूत किया है। ‘सानंद’ के नाटकों के माध्यम से विक्रम गोखले, सदाशिव अमरापुरकर, डॉ श्रीराम लागू, मोहन जोशी, रीमा लागू, भारती आचरेकर, वंदना गुप्ते, मृणाल कुलकर्णी, डॉ मोहन आगाशे, अतुल परचुरे, सुबोध भावे, सोनाली कुलकर्णी, प्रिया बापट, उमेश कामत, आनंद इंगळे, अदिती सारंगधर, प्रशांत दामले, वर्षा उसगांवकर, संजय नार्वेकर, महेश मांजरेकर, रोहिणी हट्टगडी, डॉ गिरीश ओक, अशोक सराफ, सचिन खेडेकर, निवेदिता सराफ, शुभांगी गोखले, सुप्रिया पिलगांवकर, शैलेश दातार, राहुल सोलापुरकर, निखिल रत्नपारखी, डॉ अमोल कोल्हे, सिद्धार्थ जाधव, अमृता सुभाष अनेक दिग्गज कलाकारों ने अपनी अपनी कला प्रदर्शित करते हुए सैकड़ों संदेशप्रद नाटकों का मंचन किया। नाटकों के अलावा कई व्याख्यानमालाएं, सांगितक गोष्ठियां, शास्त्रीय, उपशास्त्रीय कार्यक्रम,भी आयोजित किए जाते हैं।