Satire On Kejriwal: आम आदमी ने रईस आम आदमी को हराया

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Satire On Kejriwal: आम आदमी ने रईस आम आदमी को हराया

दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम जितने अप्रत्याशित रहे, उतने ही तकलीफदेह भी रहे। सबको किसी भी मसले पर एकसमान रूप से खुशी हो, ये जरूरी तो नहीं ना। मैं खुश हूं तो उसके कारण हैं और अफसोस भी एक बात का है तो उसके कारण हैं। क्या कोई किसी ऐसे होनहार को, जो जमीन से एक किलोमीटर ऊपर उठ गया हो,उसे एक हजार मीटर गहरा गड्‌ढा कर उसमें धकेल देना लोकतांत्रिक और न्यायप्रिय कहा जा सकता है ? दिल्ली का आम आदमी देश के सबसे बड़े आम आदमी के साथ ऐसा घटिया व्यवहार करेगा,इसकी उम्मीद आम आदमी तो कर रहा था, लेकिन मानने को फिर भी तैयार नहीं था। बहुत नाइसांफी है ठाकुर, इस तरह हाथ बांधकर हाथ काट देना फिल्मों में तो देखा था, लेकिन हकीकतन भी ऐसा होगा,आम आदमी ने सोचा नहीं था।

अब ये कहां का तरीका है कि इस विशिष्ट आम आदमी की लड़ाई पहले से नरेंद्र मोदी से चली आ रही थी,फिर राहुल गांधी से भी हो गई तो दिल्ली की जनता को दिल पर लेने की और बीच में आने की जरूरत क्या थी? यह तो उनका आपसी मामला था। फिर उन्हें इस बात से भी भला क्या लेना-देना कि यह सबसे बड़ा आम आदमी शीशमहल में रहता था, जिसमें 20 लाख की टायलेट शीट और 5-10 लाख रूपये के परदे लगे थे। अब कोई ये टायलेट शीट और परदे चांदनी चौक के किसी के घर से निकाल कर तो वह लाया नहीं था। बहुत गलत बात है यह तो।

और तो और शराब माफिया से 500 करोड़ रुपये की डील भी कर ली तो कौन-सी नई दिल्ली वाली अपनी सीट के क्षेत्र के किसी झुग्गी वाले की तिजोरी से चुरा लिये थे ?वह तो शराब माफिया देते और बदले में थड़ा-सा पानी मिला देते तो पीने वालों का क्या बिगड़ता ? वैसे भी पीने वाले शराब में सोड़ा-पानी-कोल्ड्रिंक तो मिलाते ही है ना ? अरे यमुना में केमिकल के झाग वाला पानी बह रहा था तो दिल्ली वालों का तो वॉशिंग पावडर का खर्च ही बच रहा था। कपड़े जब धोते हैं, तब भी तो झाग निकलता ही है तो यमुना के झाग को लेकर इतना बुरा मान लेना अनुचित ही था। फिर यमुना किनारे सुबह-सुबह नित्य कर्म के लिये भी दिल्ली के आम आदमी-लुगाई ही तो जाते हैं। ऐसे में यमुना यदि साफ-सुथरी रहती तो गड़बड़ नहीं हो जाता । अभी तो गंदगी में गंदगी मिलकर एकाकार हो रही थी।

जब राजनीति में नहीं थे, तब उन्होंने कहा था कि वे या आंदोलन के लोग राजनीति में नहीं आयेंगे तो जब राजनीति में आ गये तो कोई आंदोलन किया क्या? जब राजनीति की तो आंदोलन-फांदोलन तो छोड़ ही दिये ना ? अच्छा अब अण्णा हजारे का क्या, वे तो सेना से सेवानिवृत्त होकर गांव में मजे से धुनी रमा रहे थे और लौटकर भी वही करने लगे,इसका यह मतलब तो नहीं ना कि बाकी सब भी वैसे ही लंगोटधारी साधु-सा जीवन जीने लगें? अब किसी को पत्नी-बच्चों की झूठी कसमें खाने से परेशानी हो तो होती रहे। अरे, पत्नी-बच्चे उस महान आम आदमी के और आप जबरन में उसे फरेबी-झूठा बताकर अपनी कुंठा निकाल रहे हो। उसके घरवालों ने कभी बुरा माना या आपसे कुछ कहा क्या कि भैया इनको समझाओ ना?

और यार-दोस्तों, सहयोगियों को बारी-बारी से छोड़ने की बात तो करो ही मत। आप शायद नहीं जानते कि दोस्त कितने कमीने होते हैं? वे बस बुराई करना ही जानते हैं। आपने शोले के जय को नहीं देखा था, जो लूट-खसोट तो वीरू के साथ मिलकर करता और जब दोस्त की शादी के लिये सिफारिश करने की बात आई तो मौसी से कैसी चुगली कर दी। उस दृश्य को याद करो जब वीरू बसंती को मंदिर के पीछे से अपनी तारीफ करता है तो उचक्का जय बसंती का हाथ पकड़कर वीरू के षडयंत्र का पर्दाफाश कर देता है। तो भैया, दोस्त तो ऐसे ही होते हैं। इसलिये समय रहते बड़े वाले समझदार आम आदमी ने छुटके कुमार विश्वास,कपिल मिश्रा,अण्णा हजारे जैसों को चलता कर दिया। अब आप ही बताओ, अगर ऐसे नालायक दोस्त साथ होते तो क्या वे चांदी काटने देते?

उधर, पप्पू को देखो। खामखा दिल्ली के चुनाव में भांजी मार दी। आप ही बताओ, यदि आम आदमी साथ नहीं होता तो क्या पप्पू को लोकसभा में सौ सीट मिल सकती थी? लेकिन पप्पू ने खानदानी परंपरा को ही आगे बढ़ाया कि जो भी गैर पप्पू आगे बढ़े,उसका पाजामा खींच के पटक दो। उन्हें तो अपने राजशाही परिवार को ही आगे बढ़ाना रास आता है। देश के सर्वोत्कृष्ट आम आदमी के इस हश्र के लिये यमुना का गंदा पानी, राजधानी के मैले-कुचले गली-मोहल्ले,नलों से टपकता बदबूदार काला पानी,गड्‌ढों में तब्दील हो चुकी सड़कें,घर-घर बहती शराब की नदियां,ताले पड़े मोहल्ला क्लिनिक,आवारा पशु विचरते विद्यालय प्रागंण वगैरह को कितना बुरा लग रहा होगा कि अब उनका दलीद्दर दूर कर दिया जायेगा, जो प्रकारांतर से आम आदमी की निशानियों का मटियामेट कर देगा। ऐसे क्या कोई किसी को खारिज करता है?