
व्यंग: मौसम-बादलों का,तबादलों का
डॉ . श्रीकांत द्विवेदी
मानसून – सत्र में बादलों के साथ तबादलों का मौसम भी बनने लगे तो , अचरज न करें । कुछ तो सामंजस्य जरूर होगा , बादलों और तबादलों की प्रकृति में । तभी तो एक के साथ लगे – लगे दूसरा भी चला आता है । सामंजस्य भी यूं कि ग्रीष्मकालीन लम्बी तपन के बाद किसान की नजर आसमान पर ही टिकी रहती है । इस उम्मीद के साथ कि बादल आएंगे , उमड़ – घुमड़ कर बरसेंगे , दरकते खेत फिर से लहलहा उठेंगे ।
ठीक इसी तरह शासकीय कर्मचारी – अधिकारी भी बेसब्री के साथ इंतजार करते रहते हैं कि – कब तबादलों की घोषणा हो , कब थोकबंद तबादले हो और कब मनचाही जगह मिले । तबादलों का यह मौसम बिचौलियों और उनके आकाओं के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं होता है । कारण परिवार में वर्षभर की सुख – समृद्धि इसी मौसम पर निर्भर करती हैं ।
इधर बादलों का मौसम बनना शुरू भी नहीं होता , उससे पहले ही ज्योतिषी एवं मौसम विज्ञानी पूरी तरह से सक्रिय हो जाते हैं ।अपने – अपने गणितीय अनुमान से बता देते हैं कि इस वर्ष बारिश कैसी रहेगी । यह अलग बात है कि मौसम विभाग के अनुमान से विपरीत ही बारिश होती है ।
मौसम विज्ञानियों का मानना है कि मानसून का सिस्टम बंगाल की खाड़ी से बनना शुरू होता है । अच्छी बारिश के लिए सिस्टम का प्रभावी होना जरूरी है । मानसून को आगे बढ़ने के लिए सिस्टम को पर्याप्त ऊर्जा एवं वातावरण को थोड़ी बहुत नमी की जरूरत होती है । अन्यथा मानसून के शिथिल पड़ने की संभावना बढ़ जाती है । ठीक इसी तरह तबादलों का भी अपना एक सिस्टम होता है , जो प्रदेश एवं देश की राजधानी से बनना शुरू होता है। मौसम विज्ञानियों की तरह कुछ तबादला विशेषज्ञ भी होते हैं , जो पूर्व से ही अनुमान लगाकर बता देते हैं कि इस वर्ष तबादलों का मौसम कैसा रहेगा । मानना होगा कि इन विशेषज्ञों के ज्यादातर अनुमान सटीक ही होते हैं ।
एक ओर जहाँ बादलों को बरसाने के लिए किसान भजन – पूजन , टोने – टोटके , बाग रसोई आदि जतन करते हैं । वहीं कर्मचारी – अधिकारी भी मनमाफिक तबादलों के लिए सम्पर्क – सूत्रों के माध्यम से गोट बिठाने लग जाते हैं ।इधर बादलों के मामले में कभी – कभी ऐसा भी होता है कि पर्याप्त ऊर्जा न मिल पाने के कारण सिस्टम कमजोर पड़ जाता है , और मानसून शिथिल हो जाता है । तबादलों के मामले में भी गाइडलाइन के अनुसार तय शुल्क ड्यूटी में भी नमी की कमी नहीं रहनी चाहिए । भेंट – भेंटावन की ऊर्जा में थोड़ी कसर रही तो तबादलों का सिस्टम भी कमजोर पड़ सकता है । फिर दगाबाज बादलों की तरह हवा के रूख के साथ आपके नाम का आर्डर कहीं और पहुंच सकता है ।
ऐसे में सब मिलकर परमात्मा से यही दुआ करें कि अबकी बार बादल जमकर बरसे । भरपूर फसल आए । किसान खुश तो बाजार खुश । साथ ही थोकबंद तबादले भी हो जाए । कर्मचारी – अधिकारी खुश तो बिचौलिए भी खुश और उनके आका भी खुश । बस , सिस्टम बना रहे । इसलिए हे बादलों ! हे तबादलों ! आपको बारम्बार प्रणाम । विनती इतनी कि सबकी खुशी और सबके विकास के लिए आपका साथ बना रहे ।

डॉ . श्रीकांत द्विवेदी
प्रखर वक्ता ,शिक्षाविद ,लेखक
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