सावरकर मामला: मानहानि उसकी भी जो जीवित नहीं, उसकी प्रतिष्ठा की भी रक्षा हो!  

472

सावरकर मामला: मानहानि उसकी भी जो जीवित नहीं, उसकी प्रतिष्ठा की भी रक्षा हो!

– विनय झैलावत

राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला वीर सावरकर के भतीजे सत्यकी सावरकर ने प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार राहुल गांधी ने सावरकर के खिलाफ जानबूझकर झूठे एवं निराधार आरोप लगाए। इसका आशय सावरकर की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना और उनके परिवार को मानसिक पीड़ा देना था। यह मानहानिकारक भाषण इंग्लैंड में दिया गया। लेकिन, इसका प्रभाव पुणे में भी महसूस किया गया, क्योंकि इसे पूरे भारत में प्रकाशित और प्रसारित किया गया था। सत्यकी ने अपनी शिकायत में, सबूत के तौर पर समाचारों की कई रिपोर्ट और यूट्यूब से राहुल गांधी के लंदन में दिए गए भाषण के एक वीडियो का लिंक प्रस्तुत किया। उन्होंने दावा किया है कि, राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर एक किताब लिखने का झूठा आरोप लगाया। इसमें उन्होंने एक मुस्लिम व्यक्ति को मारने का वर्णन किया था। इसे सावरकर ने कभी नहीं लिखा था और ऐसी घटना कभी हुई भी नहीं थी। सत्यकी ने तर्क दिया कि राहुल गांधी ने सावरकर को बदनाम करने और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए खास उद्देश्य से किया गया। मामले के वादी सत्यकी सावरकर इन आरोपों को झूठा, दुर्भावनापूर्ण और अपमानजनक बताया। एक अन्य फौजदारी प्रकरण में सत्यकी द्वारा प्रस्तुत आपराधिक मानहानि के प्रकरण में भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत गांधी के लिए अधिकतम दंड की मांग की गई है। साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 357 के अनुसार राहुल गांधी पर अधिकतम मुआवजा भी लगाने की मांग की।

सावरकर के मानहानि के मामले में एक घटनाक्रम में, पुणे में एक विशेष सांसद/विधायक न्यायाधिकरण ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा हिंदू महासभा के नेता द्वारा लिखी गई दो पुस्तकों की प्रतियां प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत अनुरोध को स्वीकार किया। इसका उपयोग वादी सत्यकी सावरकर द्वारा सबूत के रूप में किया गया है। विशेष न्यायाधीश अमोल शिंदे ने राहुल गांधी द्वारा अपने वकील मिलिंद पवार के माध्यम से प्रस्तुत अनुरोध को स्वीकार कर लिया। राहुल गांधी के वकील ने कहा कि हमने समाचार पत्रों की कटिंग और भाषण के वीडियो रूप में अन्य सामग्री के साथ दो पुस्तकों की प्रतियों को बतौर सबूत पेश करने का अनुरोध किया है। वादी ने मानहानि का आरोप लगाया है। विशेष अदालत ने अनुरोध को मंजूरी दे दी। पहली पुस्तक ‘माझी जन्मथेप’ में अंडमान की कोठरी में सावरकर के समय के साथ-साथ उनके साथ हुए व्यवहार आदि का विवरण दिया गया। जबकि, दूसरी पुस्तक धर्म के आधार पर राष्ट्र को दो अलग-अलग देशों में विभाजित करने के उनके विचार से संबंधित है। इसे उन्होंने 1927 में लिखा था। न्यायालय ने वादी सत्यकी सावरकर को अन्य सामग्रियों के साथ दोनों पुस्तकें भी राहुल गांधी को सौंपने का आदेश दिया। इसके अलावा, राहुल गांधी के वकील को इन दो पुस्तकों की समीक्षा करने के बाद इस मामले पर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया।

यह पहली बार नहीं है जब वीर सावरकर को राजनीतिक उद्देश्यों से उन्हें कुछ लोगों द्वारा बदनाम किया गया। आजादी के पश्चात उस समय की सरकार द्वारा दो अलग-अलग मौकों पर सावरकर पर तत्कालीन राॅलेट कानून का उपयोग करने का आरोप है। उन्हें महात्मा गांधी की हत्या में भी फंसाया गया था। दोनों ही मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग 20 वर्षों की अवधि के बाद सावरकर के पक्ष में फैसला किया। लेकिन, मानहानि क्या है और इस संबंध में प्रावधान कौन-कौन से है, यह जानना चाहिए। साथ ही विधायकों और सांसदों के न्यायालय में यह प्रकरण क्यों चलाया जा रहा है, यह जानना भी आवश्यक है।

मानहानि को सरल भाषा में एक ऐसे कृत्य की तरह जाना जाता है, जहां किसी के नाम एवं सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए असत्य वाक्यों एवं तथ्यों का इस्तेमाल हो। यह भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के अंतर्गत आता है। धारा 356 कहती है कि किसी प्रकार के बोले गए या पढ़े जाने के लिए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृष्यरूपों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता है या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता है या प्रकाशित करता है। ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी। इसमें इसके पश्चात अपवादित दशाओं के सिवाय इसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है।

यह जानना आवश्यक है कि क्या किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की श्रेणी में आ सकेगा? इसका उत्तर हां में होगा। यदि यह लांछन उस व्यक्ति की ख्याति की, यदि वह जीवित होता, अपहानि करता और उसके परिवार या अन्य निकट संबंधियों की भावनाओं को आहत करने के लिए आशंकित हो। साथ ही किसी कंपनी या संगम या व्यक्तियों के समूह के संबंध में उसकी वैसी हैसियत में कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ सकेगा। इसके अलावा अनुकल्प के रूप में, या व्यंगोक्ति के रूप में अभिव्यक्त लांछन मानहानि की कोटि में आ सकेगा। कोई लांछन किसी व्यक्ति की ख्याति की अपहानि करने वाला नहीं कहा जाता, जब तक कि वह लांछन दूसरों की दृष्टि से प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उस व्यक्ति के सदाचारिक या बौद्धिक स्वरूप को कम न करे। उस व्यक्ति की जाति के या उसकी आजीविका के संबंध में उसके सम्मान को कम न करें अथवा उस व्यक्ति की साख को कम न करे। यह सामग्री यह विश्वास ना कराए कि उस व्यक्ति का शरीर घृणोत्पादक दशा में है या ऐसी दशा में है जो साधारण रूप से निकृष्ट समझी जाती है। वहीं मानहानि दिवानी प्रकरणों में दिवानी अपकृत्य की श्रेणी में आता है। किसी के बारे में कुछ झूठ बोलने पर अगर किसी व्यक्ति को हानि होती है तो वह भी उक्त श्रेणी में आता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि विभिन्न अपराधों के आरोपी वर्तमान और पूर्व प्रतिनिधियों और विधानसभाओं को तेजी से न्याय देने के लिए विशेष अदालतों का निर्माण जनहित में है। इससे न्यायपालिका में विश्वास बढ़ेगा। उच्चतम न्यायालय, मद्रास उच्च न्यायालय की एक समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर विचार कर रहा था। इसने विभिन्न अपराधों के लिए विशेष रूप से सांसदों को न्याय देने के लिए विशेष अदालतों के निर्माण पर आपत्ति जताई थी।

सन् 2017 में, सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय से लंबित सांसदों के मुकदमों में तेजी लाने के लिए देशभर में विशेष अदालतों की स्थापना का आदेश दिया था। नतीजतन, 11 राज्यों में 12 विशेष न्यायधिकरणों की स्थापना विशेष रूप से कार्यों में प्रतिनियुक्तियों और सांसदों को न्याय देने के लिए की गई थी। प्रत्येक राज्य में विशेष न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र पूरे राज्य में है। जबकि, दिल्ली में दोनों दिल्ली या आंशिक रूप से दिल्ली की सीमा के भीतर के मामलों को सम्मिलित करते हैं। सितंबर 2020 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित न्यायमित्र ने अपनी दो रिपोर्टों में बताया कि सांसदों के खिलाफ मामलों का न्याय करने के लिए विषेष न्यायाधिकरणों का गठन करने के लिए न्यायाधिकरण के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, संसद के 2,556 वर्तमान सदस्यों (सांसद) और विधानसभाओं के सदस्यों (विधायक) से जुड़े लगभग 4,442 आपराधिक मामले लंबित हैं।

कानून निर्माताओं के खिलाफ मामलों में तेजी लाना न केवल देश की राजनीति में हो रहे अपराधिकरण की बढ़ती लहर के कारण आवश्यक प्रतीत होता है। बल्कि, निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रभावी अभियोजन को प्रभावित करने या बाधित करने की शक्ति के कारण भी आवश्यक माना जाना चाहिए। मद्रास उच्च न्यायालय ने विभिन्न अपराधों के लिए विषेष रूप से प्रतिनियुक्तियों और सांसदों को न्याय देने के लिए विशेष न्यायाधिकरणों की स्थापना की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया है। विशेष न्यायाधिकरणों का गठन केवल एक कानून द्वारा किया जा सकता है न कि कार्यकारी या न्यायिक शक्ति द्वारा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक सांसद/विधायक जो कानून पाॅक्सो के तहत अपराध करता है, उसे कानून पाॅक्सो के तहत बनाए गए एक विशेष न्यायाधिकरण द्वारा आंका जा सकता है। विशेष रूप से एक सांसद/विधायक के फैसले के लिए कोई अन्य विशेष न्यायाधिकरण नहीं हो सकता है जो एक अपराध पॉक्सो को जन्म देता है। इसके अलावा, उन्होंने सवाल किया कि एकल विशेष न्यायाधिकरण किसी राज्य के सभी जिलों के मामलों को कैसे कवर कर सकता है। गवाहों को यात्रा संबंधी समस्याओं और अन्य असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है। यह भी उल्लेख किया गया कि जब उस राज्य में सरकार बदलती है तो किसी राज्य में मामलों को कैसे प्रस्तुत किया जाता है और वहीं के मामले वापस भी लिए जाते हैं।

फरवरी 2020 में, सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों के पूर्ण आपराधिक इतिहास को उन कारणों के साथ प्रकाशित करने का आदेश दिया, जिनके कारण वे सभ्य व्यक्तियों के स्थान पर संदिग्ध अपराधियों को चुनने के लिए प्रेरित हुए।

चुनाव आयोग ने आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के अनुरोध का समर्थन किया था। कम से कम पांच साल की जेल की सजा वाले अपराध के आरोपी उम्मीदवारों को अदालत में आरोपित किए जाने के बाद चुनाव में पेश होने से रोकने के चुनाव आयोग के प्रस्ताव को कई दलों ने खारिज कर दिया है। विपक्ष दो तर्कों पर आधारित है। सत्ता में बैठे राजनेता विपक्ष के खिलाफ इसका दुरुपयोग करेंगे और देश का कानून यह मानता है कि जब तक उनके अपराध का प्रदर्शन अभियोजन द्वारा पूर्ण रूप से नहीं किया जाता, तब तक सभी निर्दोष है।

चूंकि राजनीति नौकरशाही पर हावी है और व्यवसाय, नागरिक समाज और मीडिया को नियंत्रित करती है, इसलिए देश को आपराधिक वायरस से मुक्त सरकार की आवश्यकता है। जनता के दबाव के साथ अभिप्रेरण सुनिश्चित करने से मदद मिल सकती है। यदि किसी राजनीतिक नेता को बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को कानून बनाने के लिए न्याय के कटघरे में लाया जाता है, तो कुछ सकारात्मक हो सकता है। इसके अलावा, चुनाव आयोग को मजबूत करना आवश्यक है। क्योंकि, यह एक राजनीतिक दल को पंजीकृत कर सकता है, लेकिन इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता है। एक स्वच्छ चुनावी प्रक्रिया के लिए एक राजनीतिक दल के मामलों को विनियमित करना आवश्यक है।