
गर्व से कहो हम आदिवासी हैं…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्य प्रदेश में आदिवासियों को लेकर दो गुटों में बंटी भाजपा और कांग्रेस शायद यह भूल रहे हैं कि राजनीतिक नेतृत्व के नाते उन्हें असीमित अधिकार नहीं मिले हैं। आदिवासी हिंदू हैं या नहीं हैं, यह निर्धारण करने का अधिकार राजनीतिक नेतृत्व को नहीं है। जिस देश में आदिवासियों को उनके भोलेपन और उनकी गरीबी का नाजायज फायदा उठाते हुए धर्मांतरण का दंश झेलने को मजबूर किया गया हो और तब राजनीतिक नेतृत्व ने सामने आकर आदिवासियों की रीति-रिवाज, परंपराओं और अस्तित्व की रक्षा न कर पाई हो। उस भारत में 21वीं सदी में आदिवासियों को लेकर हो रही यह चर्चा कि वह हिंदू है या हिंदू नहीं है, शायद आदिवासी मुद्दे का सिर्फ और सिर्फ राजनीतिकरण करने जैसा है। इस बात को स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं है कि गर्व से कहो हम आदिवासी हैं। इस बात को स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं है कि गर्व से कहो हम हिंदू हैं, गर्व से कहो हम मुस्लिम हैं, गर्व से कहो हम इसाई हैं, गर्व से कहो हम सिख हैं, गर्व से कहो हम दलित हैं और हमें गर्व से कहना ही चाहिए, हम जो भी हैं। पर यह अटपटा लग रहा है कि राजनीतिक नेतृत्व यह तय करे कि गर्व से कहो हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं है। यह लकीर नकारात्मकता लिए हुए संकुचित सोच का प्रतिबिंब नजर आ रही है। आदिवासी और हिंदुओं में बहुत सारी समानताएं हैं। दोनों ही प्रकृति पूजक है और दोनों ही भारत की आन बान और शान के लिए समर्पित रहे हैं। रीति रिवाज और परंपराओं को लेकर तो यह बात भी सही है कि अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग तरह की रीति रिवाज और परंपराओं का पालन हर समाज के लोग कर रहे हैं। इस आधार पर यह सोच कतई नहीं बनाई जा सकती कि कौन हिंदू है और कौन नहीं है।
वैसे राजनीति ने मत पाने के लिए अपने-अपने मत के आधार पर समाजों को बांटने का काम पूरे तर्कों और तथ्यों के साथ ही किया है। और आजादी के पहले अंग्रेजों ने भी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर अमल किया था तो आजादी के बाद राजनीतिक दलों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। ‘विश्व आदिवासी दिवस’ और ‘जनजातीय गौरव दिवस’ की मुहिम को भी इसी नजरिए से देखा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की स्वदेशी जनसंख्या पर पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को जिनेवा में आयोजित हुई थी। इस बैठक की स्मृति में और आदिवासी जनसंख्या के अधिकारों के प्रति समर्पण व्यक्त करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में घोषित किया। तो जनजातीय गौरव दिवस 15 नवंबर 2021 को भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 10 नवंबर 2021 को आयोजित अपनी बैठक में भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के वर्ष भर चलने वाले उत्सव के हिस्से के रूप में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद करने के लिए दिया गया एक नाम है। 15 नवंबर महान आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा का जन्मदिन है। आम आदिवासी को इसमें से क्या पसंद है और क्या नहीं, शायद ही राजनीतिक दलों को इससे कोई सरोकार हो।
हालांकि आज हम मध्य प्रदेश में छिड़ी इस बहस में राजनेताओं का मत ही समझते हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का मत है कि आदिवासी समाज भारत की सबसे प्राचीन और गौरवशाली सभ्यताओं का प्रतिनिधि है। हमारी मौलिक परंपराएँ, संस्कृति और पूजा-पद्धति हजारों वर्षों से चली आ रही हैं और आज भी उतनी ही जीवित और प्रासंगिक हैं। संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिए अनुच्छेद 244, 275 और पाँचवीं अनुसूची के अंतर्गत विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार इसी आधार पर दिए गए हैं कि आदिवासी समुदाय सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से अलग और विशिष्ट हैं। उमंग सिंघार ने आगे कहा कि
“मेरा कहना बिल्कुल स्पष्ट है कि मैं आदिवासी समाज की अस्मिता, गौरव और उनकी स्वतंत्र धार्मिक पहचान का सम्मान करता हूँ। आदिवासी समाज अपनी प्रकृति-आधारित आस्था, जीवन-शैली और संघर्षशील परंपराओं के साथ इस देश की असली ताकत है।” भाजपा पर निशाना चाहते हुए उमंग सिंघार ने कहा कि “मेरा ध्येय आदिवासी अस्मिता की रक्षा, गौरव की स्थापना और संस्कृति का संरक्षण है। बीजेपी आदिवासी अस्मिता को मान्यता देने से हमेशा बचती रही है; उनके लिए आदिवासी सिर्फ वोट बैंक हैं।”
उमंग सिंघार के मत पर आपत्ति दर्ज कराते हुए भाजपा के आदिवासी नेताओं ने अपना मत रखा है। केंद्रीय मंत्री दुर्गादास उइके ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने जनजातीय समाज को सनातन धर्म से अलग बताकर समूचे जनजातीय समाज का अपमान किया है। वास्तव में जनजातीय समाज के लोग हिंदू धर्म में रचे-बसे हैं। भगवान महादेव के वंशज जनजातीय समाज के लोग उनके आराधक भी हैं। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री सांसद गजेंद्र पटेल ने कहा कि मैं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के छिंदवाड़ा में दिए गए बयान को सिरे से खारिज करता हूं, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘गर्व से कहो हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं’। भारत के संविधान में भी आदिवासी समाज को हिंदू समाज का अभिन्न अंग माना गया है। 1951 की जनगणना में भी इसी परिधि में हमारे आदिवासी समुदाय को गिना गया है। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता व सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी ने कहा कि उमंग सिंघार ने अपने बयान से पूरे आदिवासी समाज को कलंकित किया है। सिंघार को अपने बयान को लेकर देश से माफी मांगनी चाहिए। दुर्गादास उइके ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का बयान तथ्यों और प्रमाणों रहित तथा अज्ञानता पर आधारित है। वास्तव में जनजातीय समाज हिंदू धर्म में रचा-बसा है। जनजातीय समाज के लोग भगवान महादेव के वंशज, पूजक और आराधक रहे हैं। अधिकांश गोंड राजाओं के किलों में मां काली और भगवान महादेव के मंदिर आज भी मिलते हैं। भगवान राम ने जनजातीय समाज की माता शबरी के झूठे बेर खाकर उन्हें सम्मानित किया था, तो महाभारत काल में कुंती पुत्र भीम ने जनजातीय समाज की बहन हिडिंबा से विवाह किया। उनके पुत्र घटोत्कच हुए और उनके बर्बरीक की खाटू श्याम जी के रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। रानी दुर्गावती हों या भगवान बिरसा मुंडा, जनजातीय योद्धाओं ने मुगलकाल और अंग्रेजों के समय में सनातन मूल्यों और संस्कृति की रक्षा में अमूल्य योगदान दिया है। ऋग्वेद ने जिन पांच तत्वों और प्रकृति की आराधना की बात कही गई है, हमारा जनजातीय समाज भी प्रकृति की पूजा करता है। उइके ने कहा कि हमारे जनजातीय समाज के सभी भाई-बहन सभी प्रकार के हिंदू पर्व होली, दीपावली, रक्षाबंधन आदि सभी पर्वों को अत्यंत धूमधाम के साथ मनाते हैं। उन्होंने कहा कि मैं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार से यह कहना चाहता हूं कि वे जनजातीय समाज के बारे में कुछ भी कहने से पहले समाज के गौरवशाली इतिहास का अध्ययन और मंथन करें, बाद में बयान दें। गजेंद्र पटेल ने कहा कि उमंग सिंघार वोट बैंक की राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समूचा आदिवासी समाज वोट बैंक की राजनीति करने वाली कांग्रेस को इसका करारा जवाब देगा। देश और प्रदेश के सभी आदिवासी भाईयों के साथ-साथ मैं नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के बयान को पूरी तरह खारिज करता हूं। सुमेर सिंह सोलंकी ने कहा कि मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अपने बयान से पूरे जनजातीय समाज को धार्मिक रूप से बदनाम किया है। आदिवासी समाज सनातन संस्कृति को मानने वाला हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है। उमंग सिंघार ने घटिया राजनीति करके हमारे आदिवासी समाज के भाइयों और बहनों को धार्मिक रूप से बदनाम करने की कोशिश की है। सिंघार की भाषा समाज को भ्रमित करने वाली है। जनजातीय समाज सिंघार के भ्रमित करने वाले बयान के लिए माफ नहीं करेगा।
तो यह है राजनीतिक मतों के आधार पर अलग-अलग दलों के राजनेताओं के मत। हैरानी वाली बात यह है कि आम आदिवासी अभी भी अपने जीवन यापन के लिए हर दिन जूझ रहा है। उसे राजनीति का मतलब आज भी सिर्फ यही समझ में आता है कि चुनाव के समय मतदान करने वाला एक त्यौहार भी आता है। लगता है कि ऐसे गंभीर मुद्दों पर जनता की राय को तवज्जो दी जानी चाहिए। और जनता की राय राजनीति से अछूती रह सके, इसके व्यापक प्रबंध किए जाने चाहिए। और तब हर वर्ग वास्तव में खुद के अस्तित्व पर गर्व कर सकेगा…।
लेखक के बारे में –
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।





