सत्ता की राजनीति में स्कूल अस्पताल बना बड़ा अजेंडा

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सत्ता की राजनीति में स्कूल अस्पताल बना बड़ा अजेंडा

गरीबी , भ्रष्टाचार , आरक्षण , मंदिर – मस्जिद के मुद्दों ने दशकों से चुनावीं राजनीति को प्रभावित किया | सत्तर वर्षों के दौरान समाजवाद , साम्यवाद , पूंजीवाद के नाम पर प्रगतिशील कहलाने वाले एक वर्ग ने सत्ता के समर्थन विरोध पर असर डाला | 2014 में नरेंद्र मोदी ने विकास और गुजरात मॉडल को प्रमुख आधार बनाया | फिर प्रधान मंत्री बनकर  देश के विभिन्न क्षेत्रों  में कन्या  शिक्षा ,  योग और आयुष्मान भारत से स्वास्थ्य , गरीब को  घर – गैस , छोटे किसान को बैंक खाते में छह हजार रुपये आदि के लाभ देकर 2019 में अच्छा बहुमत समर्थन पा लिया | अब मोदी के इसी फॉर्मूले को आधार बनाकर आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने स्कूल अस्पताल यानी शिक्षा और स्वास्थ्य को राजनीति का प्रमुख अजेंडा बना दिया है | निश्चित रुप से दिल्ली के उनके दावे गलत हैं और केवल प्रचार अधिक हैं | लेकिन पंजाब या गुजरात ही नहीं अन्य राज्यों और आगामी लोक सभा चुनाव के लिए शिक्षा स्वास्थ्य महत्वपूर्ण मुद्दे सत्ता की राजनीति तथा लोकतंत्र को सही दिशा देंगे | तभी तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले नई शिक्षा नीति बनवाई और अब देश के सरकारी स्कूलों के कायाकल्प के लिए बड़ी योजना और बजट की घोषणा कर दी है |

  शायद लोग इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे कि भारत ही नहीं ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भी सत्ता की राजनीति में नेशनल हेल्थ सर्विस , सस्ती शिक्षा प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं | आप हाल के ब्रिटिश प्रधान मंत्री चुनाव या अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा , ट्रम्प आदि के चुनावी अभियान के मुद्दे सुन लें | ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवाएं इस समय चरमराई हुई है | भारत के मुकाबले बहुत कम आबादी के बावजूद इस साल 60 हजार बच्चों को सरकारी स्कूलों में जगह नहीं मिल सकी | आधिकारिक जानकारी के अनुसार स्थिति में सुधार नहीं होने पर 2024 में 1 लाख 20 हजार बच्चों को सरकारी स्कूलों में जगह नहीं मिल सकेगी | प्राइवेट स्कूल वहां बहुत मंहगे हैं और सामान्य परिवार वह खर्च नहीं उठा सकते हैं | आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि  बच्चे के जन्म से पहले उसके  स्कूल में प्रवेश के लिए पंजीकरण करा लिए जाते हैं | सरकारी या प्राइवेट स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में प्रबंधन की गड़बड़ी , अपर्याप्त स्टाफ , सेकंडरी में प्रवेश की समस्याओं पर रिपोर्ट जारी हुई हैं |

 इस दृष्टि से भारत में जातिगत , सांप्रदायिक  या घिसे पिटे कागजी सिद्धांतों – नारों से  हटकर जनता के वर्तमान और भविष्य के  असली मुद्धों को केंद्र में लाना आवश्यक है | उचित शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य  के बिना क्या कोई रोजगार मिलना देना – खेती या व्यापार संभव है ? बहरहाल प्रधान मंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग  इंडिया ( पी एम् श्री ) योजना के तहत 14597 सरकारी स्कूलों को आदर्श सरकारी स्कूल के रुप में विकसित करने के लिए करीब 18 हजार करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान स्वागत योग्य है | यह पहल पांच वर्षों में एक नई दिशा दे सकती है | मिस्टर केजरीवाल की यह आपत्ति बेतुकी है कि एक साथ देश के दस लाख स्कूलों के लिए यह योजना लागू क्यों नहीं की जा रही है |सरकारी नौकरी में रह चुके केजरीवाल क्या यह नहीं जानते कि आज भी शिक्षा राज्य सरकारों के अधीन है और बड़े पैमाने पर योजना लागू करने के लिए कितने बड़े बजट की आवश्यकता होगी | हाँ , एक मॉडल होने पर राज्य सरकारें भी अपने अन्य स्कूलों को सुधार सकती हैं | अभी तो मोदी  सरकार द्वारा लाइ गई नई शिक्षा नीति को ही देश में सही ढंग से क्रियान्वयन की चुनौती है |

हमसे अधिक हमारे पिता , दादाजी प्रसन्न होते | बचपन से उन्हें  इस बात पर गुस्सा होते देखा – सुना था कि अंग्रेज चले गए , लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था का  भारतीयकरण नहीं हुआ | पिता और काका  शिक्षक थे और माँ को प्रौढ़ शिक्षा से जोड़ रखा था | उनकी तरह लाखों शिक्षकों के योगदान से भारत आगे बढ़ता रहा , लेकिन उनके सपनों का  भारत बनाने का क्रांतिकारी महा यज्ञ अब शुरू हुआ है  | लगभग ढाई लाख लोगों की राय , शिक्षाविदों के गहन विचार विमर्श के बाद अब शिक्षा नीति लागू हो रही है  | मातृभाषा , भारतीय भाषाओँ को सही ढंग से शिक्षा का आधार बनाने और शिक्षा को जीवोपार्जन की दृष्टि से उपयोगी बनाने के लिए नई नीति में सर्वाधिक महत्व दिया गया है | केवल  अंकों के आधार पर आगे बढ़ने की होड़ के बजाय सर्वांगीण विकास से नई पीढ़ी का भविष्य तय करने की व्यवस्था की गई है | संस्कृत और भारतीय भाषाओँ के ज्ञान से सही अर्थों में जाति , धर्म , क्षेत्रीयता से ऊँचा उठकर समूर्ण मानव समाज के उत्थान के लिए भावी पीढ़ी को जोड़ा जा सकेगा |

अंग्रेजी और विश्व की अन्य भाषाओँ को भी सीखने , उसका लाभ देश दुनिया को देने पर किसीको आपत्ति नहीं हो सकती | बचपन से अपनी मातृभाषा और भारतीय भाषाओँ के साथ जुड़ने से राष्ट्रीय एकता और आत्म निर्भर होने की भावना प्रबल हो सकेगी | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करने के बाद यह सबसे बड़ा क्रांतिकारी निर्णय किया है | महायज्ञ होने पर आस पास मंत्रोच्चार के साथ बाहरी शोर भी स्वाभाविक है | सब कुछ अच्छा कहने के बावजूद कुछ दलों , नेताओं अथवा संगठनों ने  शिक्षा नीति पर आशंकाओं के साथ सवाल भी उठाए हैं | कुछ नियामक व्यवस्था नहीं रखी जाएगी  तब तो अराजकता होगी | राज्यों के अधिकार के नाम पर दुनिया के किस देश में अलग अलग पाठ्यक्रम और रंग ढंग होते हैं | प्रादेशिक स्वायत्तता का दुरूपयोग होने से कई राज्यों के बच्चे पिछड़ते गए |

महात्मा गांधी  ने कहा था, “सच्ची शिक्षा वह है, जो बालकों के आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा शारीरिक विकास हेतु प्रेरित करती है। उसे संपूर्ण बनाने का प्रयास करती है।” इसी तरह पूर्व राष्ट्रपति तथा महान शिक्षाविद  डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, “शिक्षा केवल आजीविका प्राप्त करने का साधन नहीं है, न ही यह नागरिकों को शिक्षित करने का अभिकरण है, न ही यह प्रारंभिक विचार है। यह जीवन में आत्मा का आरंभ है, सत्य तथा कर्तव्यपालन हेतु मानवीय आत्मा का प्रशिक्षण है। यह दूसरा जन्म है, जिसे दिव्यात्म जन्म कहा जा सकता है।”

   नई शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण यह भी है कि स्कूली व उच्च शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं स्थापित की जाएंगी। विभिन्न संस्थानों की अधिकतम फीस तय करने के लिए पारदर्शी व्यवस्था विकसित की जाएगी, ताकि निजी संस्थान अपनी मनमानी न कर सकें। स्कूल शिक्षा के लिए एक नया और व्यापक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम एन.सी.एफ.एस.ई. और एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति  के सिद्धांतों, अग्रणी पाठ्यचर्या आवश्यकताओं के आधार पर राज्य सरकारों, मंत्रालयों, केंद्र सरकार और संबंधित विभागों और अन्य विशेषज्ञ निकायों सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श करके तैयार किया जाएगा और इसे सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा। 5 से 10 वर्ष में इस पाठ्यक्रम की समीक्षा एवं अद्यतनीकरण भी किया जाएगा। आज राष्ट्रीय तथा अंतररष्ट्रीय आवश्यकताओं और चुनौतियों को देखते हुए परंपरागत ज्ञान एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजाइन थिंकिंग, हॉलिस्टिक हेल्थ, ऑर्गेनिक लिविंग, पर्यावरण शिक्षा, वैश्विक नागरिकता शिक्षा तथा डिजिटल शिक्षा जैसे विविध आयामों से छात्रों का परिचय अनिवार्य है, इसलिए छात्रों के फाउंडेशन या बुनियादी स्तर से ही इन सब की शिक्षा पर जोर दिया गया है। अब केवल एक दल या चुनाव की बात नहीं है , राजनीति और समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने से ही लोकतंत्र और प्रगति के सपने साकार हो सकेंगे |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं )