भारत विशाल विषमताओं का देश है। यहाँ धर्म, जाति, क्षेत्र,भाषा आदि के अतिरिक्त भौगोलिक एवं आर्थिक हितों के कारण जनता के विभिन्न वर्गों की अलग-अलग माँग और इच्छाएँ होती है। सरकार, विपक्ष, विधायिका, न्यायपालिका अथवा मीडिया बहुधा सबसे मुखर वर्ग की माँग के दबाव में आ जाते हैं।नीतियां भी सबसे मुखर वर्ग को चुप करने के लिए ही बनायी जाती है।
मध्य प्रदेश में प्राइमरी और मिडिल स्कूल खोलने के विरोध में मध्य प्रदेश अभिभावक संघ के अध्यक्ष ने बयान देकर कहा है कि इस समय स्कूल खोलना छोटे बच्चों के लिए ख़तरनाक होगा। ये वही अभिभावक है जो बाज़ार में बिना मास्क के घूमते हैं और वायरस घर में लाने का ख़तरा मोल लेते हैं। वे अपने बच्चों की ऑन लाइन पढ़ाई से संतुष्ट हैं। मैं अपनी दोनों ग्रेंडडाटर को भारत की सर्वोत्कृष्ट प्रकार की ऑनलाइन शिक्षा लेते देख रहा हूँ जिसमें वे शिक्षा के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी विकसित हो रही हैं। लेकिन ऐसी शिक्षा सबको उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों के अभिवावकों का दृष्टिकोण शहरों से ठीक विपरीत है।’इमरजेंसी रिपोर्ट ऑफ़ स्कूल एजुकेशन’ के सर्वे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के 97% माता-पिता तत्काल स्कूल खोले जाने के पक्ष में हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि जहाँ शहरी क्षेत्रों के 47% छात्र नियमित रूप से पढ़ रहे हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे 28% छात्र है। सर्वे से यह भी पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में 19% तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 37% छात्रों को ऑनलाइन पढ़ाई की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह स्थिति मध्य प्रदेश, बिहार, यू पी और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों में और भी भयावह है।ग्रामीण क्षेत्रों के माता-पिता को अपने बच्चों के लिए स्कूल में मिड डे मील का बहुत सहारा था। डेढ़ वर्ष से गरीब बच्चों को कोई पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है। राज्य सरकारों ने मिड डे मील को घरों में सीधे बाँटने की घोषणा की है परन्तु धरातल में वास्तविक स्थिति सुखद नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि सामान्य सावधानियों का पालन करते हुए टीका युक्त शिक्षक छोटे बच्चों को निरापद रूप से पढ़ा सकते हैं। अनुभव बताता है कि छोटे बच्चों के लिए कोविड संक्रामक और घातक नहीं है। अनेक विशेषज्ञों का यह कहना है कोविड-19 स्वास्थ्य से बढ़कर शिक्षा के लिए एक त्रासदी है। राज्य सरकारों ने यह मान कर कि ऑनलाइन कक्षाओं से छात्रों ने ज्ञान अर्जित कर लिया है, उन्हें जनरल प्रमोशन देते हुए अगली कक्षा में प्रवेश देने के निर्देश दे दिए हैं।यह बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है।शिक्षाविदों ने इस तथ्य पर ध्यान आकृष्ट किया है कि बड़ी संख्या में छात्र न केवल पढ़ाई से वंचित रहे हैं, अपितु वे पूर्व का पढ़ा हुआ ज्ञान भी भूल चुके हैं। उदाहरण स्वरूप जो छात्र कक्षा १ में थे और कक्षा २ ऑनलाइन के द्वारा पढ़ कर अब प्रमोट होकर कक्षा ३ में आ गए हैं वे वास्तव में अपनी कक्षा १ की पढ़ाई भूलकर निरक्षरता की स्थिति में आ गए हैं। कक्षा ३ के ऑनलाइन विद्यार्थी जिन्हें अब कक्षा चार में भेजा जा रहा है वे वास्तव में अपनी कक्षा दो की पढ़ाई भी भूल चुके हैं। अतः आवश्यक है कि राज्य सरकारों को स्कूल खुलने के बाद सभी प्राइमरी के छात्रों को एक संक्षिप्त पुराने पाठों की पुनरावृत्ति के लिए ट्रांजिशन कोर्स चलाना चाहिए। अगले सत्र में स्कूलों को इस प्रकार के कोर्स की योजना, कार्यान्वयन और उसका सत्र में उचित समायोजन करना होगा। राज्य सरकारों कों प्राइवेट स्कूलों पर अनावश्यक नियंत्रण का प्रयास करने के बजाय अपने स्कूलों पर ध्यान देना चाहिए। राज्य सरकारों के शिक्षा विभागों के अधिकारियों की अक्षमता और शिक्षकों को प्राप्त राजनीतिक संरक्षण के कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ाई पहले से ही दयनीय है। एक सरकारी नियमित शिक्षक को एक औसत प्राइवेट शिक्षक की तुलना में कहीं अधिक वेतन और सुविधाएँ मिलती है, लेकिन वह पढ़ाने का काम बहुत कम करता है। सर्वे बताते हैं कि प्रत्येक ४ सरकारी शिक्षकों में से एक शिक्षक ( यानी २५%) सदैव गैरहाज़िर रहता है। उपस्थित शिक्षकों में आधे पढ़ाने का काम नहीं करते हैं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अब निर्धन वर्ग के लोग भी येन केन प्रकारेण अपने बच्चों को सस्ते प्राइवेट स्कूल में ही भेजना चाहते हैं। भारत में लगभग आधे बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं जो बहुत बड़ी संख्या है। सरकार को अपनी पुरानी लचर प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था को सुधार कर कोविड-19 से हुई महान क्षति को भी पूरा करना होगा।
अनेक विख्यात अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कोविड-19 से शिक्षा में हुए व्यवधान से भविष्य में बहुत बड़ी आर्थिक क्षति होने वाली है। ऐसी स्थिति में सभी राज्य सरकारों को तत्काल स्कूलों को खोल देना चाहिए। यदि शहरों में इसका विरोध होता है तो कम से कम ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों को पूरी तरह से खोल देना चाहिए क्योंकि वहाँ पर कोविड-19 का ख़तरा और ख़ौफ़ अपेक्षाकृत कम है। भारत को अपने सुनहरे भविष्य के लिए अपने बच्चों का भविष्य सँवारना होगा। सरकारों को बच्चों की शिक्षा को बहुत गंभीरता से लेना होगा। भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ की राजनीति के लिए वर्तमान स्तरहीन शिक्षा कोई मुद्दा नहीं है।
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