science of Baasee Rotee: आइये कलेवा करते हैं, क्योंकि बासी का गणित बड़ा तगड़ा है।

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  science of Baasee Rotee:आइये कलेवा करते हैं, क्योंकि बासी का गणित बड़ा तगड़ा है।

अक्सर घरों में रात की बनी हुई रोटी बच (Raat ki bachi Roti) जाती है और फिर इस बासी रोटी को सुबह खाने से लोग कतराते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बासी रोटी खाने से सेहत से जुड़े कई सारे फायदे होते हैं. सदियों से भारतीय घरों में बासी रोटी (Stale Roti) खाई जाती है, क्योंकि पुराने समय में लोग इसके फायदों को जानते थे, आयुर्वेद इसे ओवरऑल हेल्थ को बढ़ावा देने वाला मानता है. बासी रोटी को सही तरीके  से खाया जाए तो ये खाने में टेस्टी तो लगती ही है, साथ ही सेहत को भी लाभ पहुंचाती है.

बासोड़ा, शीतला अष्टमी का एक और नाम है. यह उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक हिंदू त्योहार है. हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, हर साल चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को बासोड़ा मनाया जाता है. साल 2024 में, यह 2 अप्रैल को मनाया गया. इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है और उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. इस दिन लोग बासी और ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं. 

बासी भोजन वास्तव में सभी फर्मेंटेशन उत्पादों की जननी है।और इस बेमिसाल विज्ञान पद्धति के जनक हैं हमारे अदिवासी और वनवासी भाईबंधु तथा भारतीय समाज की कुशल गृहणियाँ।
इन्होंने ही अनगिनत भोज्य पदार्थों की रेसिपी ढूंढी है, जो देश के अलग अलग हिस्सों में तब से अब तक उपयोग की जाती आ रही हैं। छत्तीशगढ़ के बासी की चर्चा भी आगे होगी। लेकिन अभी इतना जान लीजिए कि जब किसी भोज्य पदार्थ को ताजा उपयोग में न लाकर इसे कुछ या बहुत लंबे समय बाद उपयोग के लिए रख दिया जाता है। तो वह बासी एवं संरक्षित भोज्य पदार्थ की सूची में आ जाती है। इसमें से जिस भोज्य पदार्थ को नमी के साथ बाद में उपयोग के लिए रखा जाता है, उसमें किण्वन होने से वह और अधिक उपयोगी हो जाता है। लेकिन गौर करने वाली बात है कि एक किण्वन से उपयोगी भोज्य पदार्थ बनते हैं जबकि दूसरे तरह से भोजन विषाक्तता हो सकती है। आखिर हमारे प्राचीन रसोई वैज्ञानिकों (दादी- नानियो) ने कैसे इस महत्वपूर्ण अंतर को समझा होगा? इस रहस्य को डिकोड करेंगे यहीं, इसी पोस्ट में, बने रहियेगा।



वैसे एक बात बताऊँ, आप सभी ने कभी न कभी भुना हुआ भात और रोटी पोहा जरूर खाया होगा। या अधिकांश लोग बासा भोजन करते रहते हैं, क्या…? आप बासा खाने वालों में से नही हैं? अगर आपको ऐसा लगता है तो फिर गलतफहमी का त्याग कर दें। क्योंकि आप अक्सर इसे खाते रहते हैं, कैसे? तो जबाब सुनिये- आप जब भी कभी घर से बाहर रेस्टोरेंट वगेरह में भोजन करते हैं तो कोई आपके लिए बिल्कुल ताजा भोजन परोस दे खासकर चावल यह सम्भव नही है। क्योंकि ये जो जीरा फ्राय है न बासे बने भात को फ्राय करके ही बनाया जाता है, कोई नया चावल तुरंत नही बनाया जाता है। इस तरह बेबकुफ़ बनकर अधिक कीमत देकर बासा भोजन करने वाली हमारी नई पीढ़ी हमारे पारंपरिक ज्ञान को समझना ही नही चाहती है।

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होटल या रेस्टोरेंट में ये बड़े चाव से वह सब कुछ डकार आते हैं, जिसके लिए घर मे नाक-भौं सिकोड़ने का खेल होता है। वैसे इन सबके कई और कारण भी हैं, जैसे कि अधिक पैसा चुकाने से थोड़े समय अमीरियत का एहसास बना रहता है और दूसरा यह कि वहाँ आजकल ढेर सारे घोषित और अघोषित सेल्फी पॉइंट होते हैं। भोजन करना जैसे आवश्यकता नही बल्कि स्टेटस सिम्बोल बन गया है। और यही व्यंजन जब घर पर माँ बनाये तो बासी भोजन के नाम पर न जाने क्या क्या अटरम- शटरम साइंस बताने और गिनाने लग जाते हैं। कि पेट दुखेगा, नींद आयेगी आदि आदि।

शायद इन बच्चों को लगता है कि हमारे पूर्वजों ने या बड़े बुजुर्गों ने साइंस नही पढ़ी है। अरे पढ़ी है भई! खूब अच्छी तरह पढ़ी है। लेकिन स्कूली किताबो से नही बल्कि जिंदगी की किताब से पढ़ी है। यूँ ही नही दुनिया भर के सभी किताबी आविष्कार हमारे देश से संबंध रखते हैं। और यही ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता हुआ आज भी सुरक्षित है। इसीलिये इसे सनातन कहा जाता है, जो बहुत पहले से है, आज भी है और भविष्य में वही रहेगा। ज्ञान केवल धार्मिक ग्रंथों की शक्ल में हो यह आवश्यक नही, यह मौखिक भी हो सकता है, बिल्कुल हमारी रसोई परंपरा की तरह। इसमें से बहुत कुछ छिपा दिया गया, बहुत कुछ मिटा दिया गया। लेकिन भोजन परम्परा का यह मौखिक ज्ञान हमारी, दादी-नानी व माताओं के माध्यम से आज भी सुरक्षित है। तो चलिए आपको बासी भोजन के फायदे बताता हूँ।
हालाकि बासी नामक व्यंजन स्वयं एक पारंपरिक व्यंजन छत्तीसगढ़ में प्रचलित है। लेकिन बासी का शाब्दिक अर्थ- बनाने के बाद 6 से लेकर 24 घंटे बाद खाया जाने वाला व्यंजन है। जिसकी गुणवत्ता कई मायनों में किण्वन/ fermentation और curing द्वारा पहले की तुलना में अधिक बढ़ जाती है। हमारे देश के अलग अलग हिस्सों में बासी रोटी या #बासी चावल/ भात को खाना प्रचलन में था और कुछ स्थानों में आज भी प्रचलन में है। छत्तीशगढ़ में खाया जाने वाला बासी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसमे पके हुए भात/ चावल को रात भर पानी मे डालकर फरमेंट किया जाता है और फिर सुबह अचार, प्याज व चटनी के साथ खाया जाता है।

यह कोई गरीबी के कारण किया हुआ कार्य नही है, न ही किसी तरह की बेवकूफ़ी बल्कि यह पूरी बात तथ्यों पर आधारित है, कि फेरमेंटेशन से न सिर्फ स्वाद में इजाफा होता है बल्कि इसके कारण खाद्य सामग्री/ भोजन पचने में आसान बन जाता है। इसमें विटामिन ए सहित कार्बनिक अम्लों का बहु निर्माण हो जाता है, जो शरीर की कई मेटाबोलिक क्रियाओं में आवश्यक होते हैं। यकीन नही हो रहा है, हैना…? चलिये इस तरह से सोचिए कि आप जो अचार, खट्टे पापड़ चिकोड़ी, इडली, दोसा, जलेबी, ब्रेड, केक आदि बनाते हैं, तो क्या करते हैं आटे/ मिश्रण के साथ, और क्यो…? दिमाग हिल गया न? इसीलिये कहता हूँ, पूर्वजो के ज्ञान का सम्मान करें।
ऐसे ही दो खास व्यंजन हैं ) fried chapatis (भुंजी रोटियाँ या रोटी पोहा) और fried rice (भूँजा चावल) जिनकी फ़ोटो पोस्ट में शामिल हैं, इन्हें अक्सर हम बनाते रहते हैं। घर पर अक्सर भोजन बच जाता है, क्योंकि माँ कहती है कि थोड़ा बच जाए लेकिन अगर खाते में एक दो लोग भी एआ जाएं तो कम न पड़े इतना भोजन घर की रसोई में बनना ही चाहिए। तो बचे हुए भोजन से अगले दिन का नाश्ता तैयार हो जाता है, गाँव मे नाश्ता के लिए सभ्य समाज मे अल्पाहार और स्वल्पाहार शब्द प्रचलित है, जबकि हमारे गाँव मे – कलेवा। अगर आपने इन्हें पहले कभी नही खाया तो चलिए मैं आपको सिखाता हूँ। घर पर ट्राय जरूर कीजियेगा…

1) रोटी पोहा/मालवा में कूसकरा  fried chapatis 
ये #रोटी पोहा  या fried chapatis / भूंजी हुयी बासी रोटियां कितनी महत्वपूर्ण और #पौष्टिक है ये आपको अंदाजा भी नहीं होगा। प्रचलन के हिसाब से देखें तो यह अब घरों की रसोई से काफी दूर हो गए हैं लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह वर्तमान में खाये जाने वाले नाश्तों में सबसे अधिक पौष्टिक और पचने में आसान है। बासी रोटियां लाभदायक बॅक्टीरिया द्वारा आंशिक #फर्मेंटेशन हो जाने के कारन यह ताज़ी रोटी से भी अधिक लाभदायक हो जाती है, और इसमे #विटामिन ए का भी समावेश हो जाता है।

जिम जाने वाले लोगो, कठोर परिश्रम करने वालो और #मधुमेह के रोगियो को भी बासी #रोटी खाने की सलाह दी जाती है। अब तो कई तरह की रिसर्च करने के बाद अब बहुत से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी बासी रोटी के फायदों के कायल हो चुके है। गाँव देहात में बासी रोटी का कलेवा तो जैसे उनकी जीवनचर्या का हिस्सा ही बन गया था।
इसे बनाने के लिए बासी रोटियों के बारीक टुकड़े कर लें फिर इन्हें हाथों से रगड़ते हुये बारीक पीसते हुये महीन टुकड़े कर लें। उंसके बाद बिल्कुल पोहा बनाने की विधि से इसे फ्राई कर दें।

2) बासे भात का पुनर्जन्म:  भुंजा हुआ भात/ चावल
इसे बनाने के लिए रात्रि का बचा हुआ चावल ले लें। कटी हुई मिर्च, प्याज, हरा धनिया, कड़ी पत्ता और सामान्य मशाले नमक आदि के साथ इसे कढ़ाई ओर बघार लगायें और चांद मिनटों में लाजबाब नाश्ता तैयार है। इसे आज भी ज्यादातर घरों में बनाया जाता है।


बासी रोटियों के बाद अब बात करते हैं कि बासी चावल कितनी महत्वपूर्ण और पौष्टिक है ये यह एक ऐसा पौष्टिक नास्ता है जिसे सभी ने बचपन में इसी तरह इसी नाम से खाया होगा, और आजकल जीरा राइस, मसाला राइस आदि नामों से बड़े बड़े होटल्स में बेवकूफ बनकर खा रहे हैं। 
घर की बात करें तो धीरे धीरे आधुनिकता की दौड़ में यह प्रचलित व्यंजन जाने कहाँ खो गया था। लेकिन मैं अब भी इसे खाता रहता हूँ। जब कभी घर पर रात्रि भोज का चावल बच जाता है, तो इसे सुबह इसी तरह नया रूप देकर नास्ते के रूप में परोस दिया जाता है। हालाकि यह कभी किसी मेहमान को नही परोसा जाता क्योंकि मेहमान को बासा खिलाना हमारे संस्कार में नही है। परंतु मुझे इसे ग्रहण करने में कोई परहेज नही होता, क्योंकि एक तो मैं इसके फायदे जनता हूँ और दूसरा यह कि मैं अनाज को फेकने या जूठा छोड़ने के सख्त खिलाफ हूँ। आज भी थाली चाट चाट कर खाने पर अड़ा हुआ हूँ।

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लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह वर्तमान में खाये जाने वाले नाश्तों से यह कही अधिक स्वादिष्ट, पौष्टिक और पचने में आसान है। इसमें लाभदायक बॅक्टीरिया द्वारा आंशिक फर्मेंटेशन हो जाने के कारन यह ताजे चावल से भी अधिक लाभदायक हो जाते है। हालाकि मधुमेह के रोगी इसे खाने से बचते हैं, लेकिन हल्के फुल्के नास्ते के रूप में यह सभी के लिये अच्छा विकल्प है। अब तो कई तरह की रिसर्च करने के बाद अब बहुत से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी बासी के फायदों के कायल हो चुके है। हमारे देश के अलग अलग हिस्सों में बासी रोटी या बासी चावल/ भात और कई अन्य बासे व्यंजन सदियों से प्रचलन में है। मेरा बासा भुंजा भात, छत्तीसगढ़ की बासी से अलग है, किन्तु फायदेमंद तो है ही। बगीचे में टहलते हुये या बैठकर इसे खाने का मजा ही निराला है। अगर आपने भी बासा भुंजा हुआ चावल/ भात या रोटी पोहा या अन्य कोई भी बासा व्यंजन खाया हो तो उसका नाम और आपका अनुभव बतायें। साथ ही आपके क्षेत्र में बासी व्यंजन के कौन कौन से रूप प्रचलित हैं, उनके बारे में बतायें…{उपयोग से पहले अपने आहार विशेषज्ञ , चिकित्सा आहार विशेषज्ञ से सलाह लें .}


डॉ विकास शर्मा { फेसबुक वाल से} 
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाडा (म.प्र.)