परदे के किरदारों ने इन कलाकारों को भगवान बनाया!

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परदे के किरदारों ने इन कलाकारों को भगवान बनाया!

वरिष्ठ पत्रकार अनुराग तागड़े का कॉलम

धार्मिक फिल्में बनाना और उनमें किरदार निभाना आसान है, परंतु दर्शकों की प्रतिक्रिया के बारे में सोचना बेहद कठिन है। खासतौर हमारे देश में जहां धार्मिक भावनाएं बहुत ज्यादा हावी होती हैं। हाल ही में रिलीज हुई ‘आदिपुरुष’ के बाद जो विवाद हुआ, वह सभी जानते है। परंतु कई फिल्में और टेलीविजन सीरियल ऐसे भी हुए जिनमें किरदार निभाने के बाद कलाकारों को बहुत प्रसिद्धि मिली। उनके साथ अलग-अलग घटनाएं भी हुई और परिस्थितियां उनके लिए बदल गई। यहां ऐसे तीन किरदारों के बारे में चर्चा जिनकी जिंदगी ऐसी फिल्म करने के बाद बदल गई।

परदे के किरदारों ने इन कलाकारों को भगवान बनाया!

प्रभात फिल्म कंपनी ने वर्ष 1936 में फिल्म ‘संत तुकाराम’ रिलीज की। फिल्म में संत तुकाराम का किरदार विष्णुपंत पागनीस ने निभाया था। वे उन दिनों मराठी नाटकों में महिलाओं की भूमिका भी निभाते थे और बचपन से ही नाटकों में भाग लिया करते थे। वे अच्छे कीर्तनकार भी थे। संत तुकाराम का किसी भी प्रकार का फोटो नहीं था और न ऐसा कोई प्रमाण था जिसे देखकर वे अपनी एक्टिंग में उसे शामिल कर सके। उन्होंने स्वयं अध्ययन कर फिल्म में इस किरदार का अभिनय किया। इस फिल्म को पसंद किया गया। 1936-37 में इसे वेनिस फिल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित किया गया। इसे विश्व की सर्वश्रेष्ठ तीन फिल्मों में बताया जा रहा था। विष्णुपंत पागनीस के निभाए संत तुकाराम के किरदार को प्रसिद्धि मिली।

परंतु, विष्णुपंत पागनीस अलग ही मानसिक अवस्था से गुजर रहे थे। वे जहां पर भी जाते लोग उनके पैर पड़ने लगते थे, उनकी पूजा करते थे। वे स्वयं अपने आप में बदलाव महसूस करने लगे थे। संत तुकाराम की जगह विष्णुपंत पागनीस के फोटो लगने लगे। क्योंकि, संत तुकाराम की कोई फोटो ही नहीं थी। विष्णुपंत के पास फिल्म निर्माता उनका मानधन देने गए। फिल्म ने काफी अच्छा लाभ कमाया था, परंतु विष्णुपंत ने मानधन लेने से इंकार कर दिया। निर्माताओं ने दोगुना, चौगुना मानधन देने की बात की, परंतु वे नहीं माने। दरअसल, विष्णुपंत को जनता ने संत का दर्जा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने दूसरी फिल्में भी की, परंतु उनके और आम जनता के मन से संत तुकाराम की छवि नहीं गई।

परदे के किरदारों ने इन कलाकारों को भगवान बनाया!

इसी तरह अनिता गुहा ने ‘जय संतोषी माँ’ में संतोषी मां का किरदार निभाया था। फिल्म के बारे में कहा जाता है कि 25 लाख की बजट वाली फिल्म ने 5 करोड़ कमाएं थे। परंतु, असली कहानी यह है कि फिल्म को मात्र एक लाख ज्यादा में निर्माता से किसी ओर ने खरीद लिया था। इसलिए निर्माता को तो फायदा नहीं हुआ और फायदा कोई ओर ले गया। अनिता गुहा के घर तक लोग आशीर्वाद लेने जाने लगे थे। परंतु, अनिता गुहा को सफेद दाग की बीमारी लग गई। फिल्म हिट होने के बाद और अच्छी कमाई करने के बाद भी स्वयं संतोषी माता का किरदार निभाने वाली नायिका को कष्ट ही भोगने पड़े।

परदे के किरदारों ने इन कलाकारों को भगवान बनाया!

रामानंद सागर निर्मित रामायण सीरियल में श्री राम का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल के बारे में सभी जानते है। आज भी लोग उनमें प्रभु श्री राम की छवि देखते है। साल भर पहले की ही बात है, जब हवाई अड्डे पर एक महिला ने उनके पैर छुए और अपने बीमार पति के लिए आशीर्वाद मांगा। इतना ही नहीं अरुण गोविल ने दूसरी फिल्में करने का प्रयत्न भी किया, परंतु दर्शकों ने नकार दिया। यही कारण है कि धार्मिक फिल्मों के कारण कलाकार की दशा भी बदल जाती है और करियर की दिशा भी बदल जाती है। ऐसे कई अन्य उदाहरण भी है जिसमें कलाकार टाईप्ड हो जाते है और उन्हें जिंदगी भर एक जैसे ही किरदार मिलते है।

बीआर चोपड़ा के सीरियल ‘महाभारत’ में नितीश भारद्वाज ने श्री कृष्ण का किरदार निभाया था। उनका कृष्ण का किरदार पसंद किया गया। इस किरदार से उनको ऐसी कामयाबी मिली कि वो रातों- रात स्टार बन गए। कृष्ण के किरदार को उन्होंने इतनी सादगी से निभाया था कि था कि आज भी लोग इस किरदार को याद करते है। ऐसे कई किस्से जुड़े हैं, जब उन्हें लोगों ने रास्ते में रोका और उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लिया।

परदे के किरदारों ने इन कलाकारों को भगवान बनाया!

1993 में रामानंद सागर की टीवी सीरीज ‘कृष्‍णा’ भी टीवी पर हिट रही थी। इसमें सर्वदमन डी बनर्जी ने भगवान कृष्ण और रेशमा मोदी ने राधा का किरदार निभाया था। इस सीरियल के बाद दोनों किरदार काफी चर्चा में आए और दोनों को आज भी दर्शक ‘राधा कृष्ण’ ही मानते है। इसी सीरियल में किशोर श्रीकृष्ण के रूप में स्वप्निल जोशी नजर आए थे। वह इस किरदार में इतने प्यारे लगे कि कई सालों तक यह किरदार उनकी जीवन का हिस्सा बना रहा और इसने उन्हें खूब लोकप्रियता दिलाई।